मेरी चंद खामोशी

मेरी चंद खामोशी !.. my little silence..

मेरी चंद खामोशियाँ अक्सर बहुत कुछ कह जाती हैं, उन खामोशियों में वह शब्द छिपे होते हैं, जिन्हें मैं कभी बाहर नहीं ला पाता। इन खामोशियों में अनकहे दर्द, छुपी हुई खुशियाँ और अनजानी उम्मीदें समेटे होते हैं। जब शब्द थक जाते हैं, तो खामोशी सबसे बेहतरीन साथी बन जाते है।

कुछ खामोशियाँ ऐसी होती हैं जो शब्दों से नहीं, बल्कि दिल की गहराइयों से जुड़ी होती हैं। जब हम किसी से बात नहीं करते, तो इसका मतलब ये नहीं कि हमारे पास कहने के लिए कुछ नहीं। कई बार खामोशी भी एक प्रकार की अभिव्यक्ति होती है, जो हमें अपनी भावनाओं और सोच को समझने का मौका देती है।

मेरी चंद खामोशियाँ भी कुछ इसी तरह की हैं। वो खामोशियाँ, जो मेरे अंदर के कई जज़्बातों को बयां करती हैं, जिन्हें शब्द नहीं मिल पाते। कभी यह खामोशी दर्द की होती है, कभी राहत की। कभी यह अकेलेपन की होती है, तो कभी यह आत्मनिरीक्षण का समय होता है।

मेरी चंद खामोशी

मेरी खामोशी कभी डर नहीं होती, बल्कि यह मेरी सोच, मेरी आत्मचिंतन का एक तरीका है। ये खामोशियाँ मुझे अपनी भावनाओं को समझने का अवसर देता हैं, वो एहसास दिलाती हैं, जो शब्दों में नहीं बयां किया जा सकता। कभी यह अकेलेपन का अहसास होता है, तो कभी खुद से मिलने की कोशिश।

सच कहूँ तो, कई बार खामोशी में एक अजीब सा सुकून होता है, क्योंकि इस समय हम खुद से बात करते हैं, अपने आप को समझते हैं। ये खामोशियाँ हमें अपनी असलियत से रूबरू कराती हैं, और हमें सिखाता हैं कि हर विचार को शब्दों में ढालना जरूरी नहीं होता।

सच्चाई यही है कि कभी-कभी हमें अपनी खामोशी में ही सबसे ज्यादा शांति मिलती है। शायद यह खामोशी हमारे भीतर की सबसे सच्ची आवाज़ होती है, जो बिना किसी शोर के हमें खुद से जोड़ती है। मेरी चंद खामोशियाँ मेरे जीवन का हिस्सा हैं, और शायद यही वो खामोशियाँ हैं जो मुझे पूरी तरह से समझने में मदद करती हैं।

निष्कर्ष:

खामोशी का भी अपना एक अहसास है, जो हमें दूसरों से कहीं ज्यादा अपने आप से जोड़ता है। मेरी चंद खामोशियाँ भी वही हैं, एक कहानी, एक एहसास, जो मुझे खुद से मिलने और समझने का मौका देती हैं।

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