AVN News Desk New Delhi: लोकसभा चुनावों में एनडीए को बहुमत मिलने और चुनावी राजनीति में प्रवेश के बाद करीब ढाई दशक से बहुमत की सरकारों की कमान संभालने वाले नरेंद्र मोदी बतौर प्रधानमंत्री अपने तीसरे कार्यकाल में पहली बार गठबंधन सरकार का नेतृत्व करेंगे। नई सरकार में बेहतर प्रदर्शन करने वाले टीडीपी (तेलुगू देशम पार्टी ) के मुखिया चंद्रबाबू नायडू और जदयू (जनता दल यूनाइटेड) मुखिया व बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का अब मजबूत दखल होगा। उन्हें इस दौरान लोकसभा में प्रतिनिधित्व करने वाले 12 सहयोगी दलों से भी तालमेल बना कर अब चलना होगा।
वही गौरतलब है, वर्ष 2001 में अचानक ही गुजरात के मुख्यमंत्री बनाए गए नरेंद्र मोदी ने राज्य में तीन बार बहुमत वाली सरकार का नेतृत्व किया है। इसके बाद जब राष्ट्रीय राजनीति में आए तब भी दो बार केंद्र में बहुमत की सरकार की कमान संभाली। बीजेपी के अपने दम पर बहुमत से चूकने के कारण करीब 23 साल बाद प्रधानमंत्री पहली बार गठबंधन की सरकार के मुखिया होंगे।
12 सहयोगियों का है लोकसभा में प्रतिनिधित्व
इस चुनाव में बीजेपी ने अपने दम पर 240 सीटें हासिल की हैं। यह बहुमत से 22 कम है। दूसरी ओर टीडीपी (तेलुगू देशम पार्टी ) के 16 तो जदयू (जनता दल यूनाइटेड) के 12 सांसद जीते हैं। इन दोनों दलों के संयुक्त सीटों की संख्या कुल 28 है। शिवसेना शिंदे गुट की 7 सीटें हैं। इसके अलावा लोजपा (आर) ने 5, जेएनपी, रालोद 2-2, एनसीपी, अपना दल, एजीपी, हम, आजसू और एजीपी के पास 1-1 सीटें हैं। अब जाहिर तौर पर गठबंधन में चंद्रबाबू नायडू, नीतीश कुमार का मजबूत दखल होगा। इसके अलावा शेष दस दलों को भी साधे रखने की खूब चुनौती होगी।
अभी स्थिरता पर खतरा नहीं
गठबंधन सरकार के बावजूद नई सरकार की स्थिरता पर कई कारणों से अभी खतरा नहीं होगा। बिहार में नीतीश कुमार को बीजेपी की ताकत का अंदाजा है, जबकि बतौर मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू को केंद्र के सहयोग की जरूरत पड़ेगी। उनके अलग होने के बावजूद भी मोदी सरकार को बहुमत खोने का अभी डर नहीं रहेगा। हां नीतीश कुमार राज्य के लिए विशेष पैकेज, जल्द चुनाव का दबाव बना सकते हैं। इसके अलावा बिहार में अब बीजेपी के लिए नीतीश कुमार को चेहरा बनाए रखने की अब मजबूरी है।
बड़े एजेंडे पर अब होगा संशय
बीजेपी की योजना प्रचंड बहुमत के साथ सरकार बना कर पूरे देश में यूसीसी (UCC) लागू करने, सभी तरह के चुनाव एक साथ कराने की दिशा में आगे बढऩे की थी। हालांकि गठबंधन सरकार होने के कारण यह देखना अब काफी दिलचस्प होगा कि बीजेपी इन अहम एजेंडे पर कैसे आगे बढ़ती है। वही गौरतलब यह है कि इससे पहले गठबंधन सरकार की मजबूरियों के कारण अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने अनुच्छेद 370, राम मंदिर और यूसीसी को अपने एजेंडे से बाहर कर दिया था।
मंत्रिमंडल में बढ़ेगी अब सहयोगियों की भागीदारी
नई सरकार में पुरानी सरकार की तुलना में सहयोगियों का प्रतिनिधित्व अब बढ़ना तय है। बीती सरकार में मूल शिवसेना और अकाली दल के साथ छोड़ने के कारण सरकार में महज तीन सहयोगियों (आरपीआई, अपना दल और लोजपा-पारस) का ही प्रतिनिधित्व रह गया था। इस बार बीजेपी के अल्पमत में होने के कारण ज्यादा सहयोगियों को मौका मिलना लगभग तय है। इसके अलावा इस बार मंत्रिमंडल में विभाग बंटवारे को लेकर भी संतुलन की स्थिति अब दिख सकती है।
बहरहाल अब ये देखना काफी दिलचस्प होगा कि पीएम नरेंद्र मोदी इस सरकार कैसे चलाते हैं क्योंकि उनको गठबन्धन की सरकार चलाने की आदत नही है । दूसरी और सभी दलों को साथ लेकर चलना और उनको खुश रखना अब इतना आसान नहीं होगा जीतना वो पहले रहते थे.