Lok Sabha Election 2024

Lok Sabha Election 2024: लोकसभा चुनाव अब आम आदमी से दूर, अमीरों को छूट और आम जनता पर टैक्स की लूट..

AVN News Desk: लोकसभा चुनाव में 190 सीटों पर मतदान हो चुका है। भारत में चुनाव लड़ना महंगा होता जा रहा है, यानी पूंजी का बड़ा खेल है। यही कारण है कि सभी पार्टियां पूंजीपतियों के चंदे पर ही निर्भर हैं और चुनावी बांड या दूसरे साधनों से पूंजीपतियों से पैसा लेकर चुनावी मैदान में कूदती हैं। हम चुनावी बांड के आंकड़े से देख सकते हैं कि किस तरह चुनाव के समय ज्यादा चुनावी बांड खरीदे गये हैं। भारत में चुनाव को ‘लोकतंत्र का महापर्व’ कहा जाता है। लेकिन इस ‘महापर्व’ का ढोल खुद भारत के वित्तमंत्री निर्मला सीतारमन यह कहती हुई फोड़ देती हैं कि हमारे पास लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए पैसे ही नहीं हैं। यह भारत की ‘लोकतंत्र’ की दुर्दशा को दर्शाता है, जहां देश के वित्तमंत्री के पास चुनाव लड़ने के लिए पैसा नहीं है। आइए हम समझ सकते हैं कि आम आदमी इस ‘लोकतंत्र के महापर्व’ से कितना दूर है। यही कारण है कि भारत के संसद से आम आदमी दूर होता जा रहा है और वहां पर धन्ना सेठों यानी करोड़पतियों का कब्जा होता जा रहा है। भारत के पन्द्रहवीं लोकसभा (2009) में 315 यानी 58 प्रतिशत सांसद करोड़पति थे तो सोलहवीं लोकसभा, यानी 2014 में 443 यानी कि 82 प्रतिशत सांसद करोड़पति चुने गये और सतरहवीं लोकसभा (2019) में 539 में से 475 यानी 88 प्रतिशत करोड़पति सांसद ‘जनप्रतिनिधि’ के नाम पर संसद में पहुंच गये है। असल में यह सांसद ‘जनप्रतिनिधि’ के नाम पर जाते हैं लेकिन वहां पर पूंजीपतियों का प्रतिनिधित्व करते हैं। बीजेपी सांसद अलफ़ोस ने 10 फरवरी, 2022 को राज्यसभा में कहा है कि अंबानी हो या अडानी हो उनकी पूजा होनी चाहिए। दूसरी तरफ देखा गया है कि संसद में अडानी के मुद्दे पर बोलने वालों को संसद से बाहर कर दिया गया था। भारत पहले से ही पूंजीवाद और पूंजीपतियों का सेवक रहा है, लेकिन वह मुखौटा लगाकर रहता था। मोदी सरकार ने उस मुखौटे को हटा दिया है और वह खुलेआम पूंजीपतियां का बखान करने लगी है। यही कारण है कि मोदी राज में अमीरों और गरीबों के बीच की एक बड़ी खाई बढ़ी है।

Lok Sabha Election 2024:

भारत में आमदनी और संपदा असमानता

वर्ल्ड इनक्वालिटी लैब की भारत में आमदनी और संपदा में असमानता, 1922-2023 के बारे में ‘अरबपति राज का उदय’ शीर्षक रिपोर्ट के अनुसार देश में एक प्रतिशत अमीरों के पास देश की 40.1 प्रतिशत संपत्ति है। यह आसमानता ब्रिटिश राज से भी ज्यादा हो गई है और गैरबराबरी में अमेरिका को भी अब पीछे छोड़ दिया है। इसको राहुल गांधी अपने भाषणों में और छोटा करके बताते हैं कि भारत के 21 अमीर लोगों के पास 70 करोड़ लोगों की संपत्ति के बराबर संपत्ति है। रिपोर्ट बताती हैं कि 1980 के दशक के शुरूआती समय तक अमीरों की संपत्ति में गिरावट देखी गई थी, लेकिन 2000 के दशक में रॉकेट की गति से पूंजीपतियों के पास पैसा बढ़ा है और खासकर 2014 के बाद मोदी राज में गैरबराबरी और ज्यादा बढ़ी है। यही कारण है कि देश की खुशहाली छिनती जा रही है।

विश्व खुशहाली इंडेक्स में भी भारत का 143 देशों में 126वां स्थान है, जिसका मुख्य कारण है महंगाई और बेरोजगारी है। महंगाई की मार से लोगों की बचत कम हो गई है। इसकी पुष्टि भारतीय रिजर्व बैंक के आए हालिया आंकड़ों से भी यह स्पष्ट होता है कि भारत में शुद्ध घरेलू बचत 47 साल के निचले स्तर पर है। वही ग्लोबल हंगर इंडेक्स में 125 देशों में 111 वां स्थान है, और जिसके कारण 80 करोड़ लोगों को मोदी सरकार 5 किलो मुफ्त अनाज दे रही है और वही उसको भी मोदी सरकार चुनावी मुद्दा बना रही है। और वही विश्व भूखमरी में भी हम अपने पड़ोसी देश पाकिस्तान, नेपाल, श्रीलंका और बंग्लादेश से भी खराब स्थिति में है। वही इस देश के पूंजीपति दुनिया के शीर्ष दस पूंजीपतियों में अपना स्थान बनाते हैं। करोना के समय जहां लोगों की कमाई में कमी आई, वहीं जनवरी 2021 से जून 2021 तक, यानी छह माह में अम्बानी की सम्पत्ति 2.61 अरब डॉलर बढ़ी और अदानी की संपत्ति 27.4 अरब डॉलर बढ़ी है। इन दोनां पूंजीपतियों के साथ आधा दर्जन पूंजीपतियों की संपत्ति 6 माह में 44.75 अरब डॉलर बढ़ी है। जिस महामारी के कारण देश की जनता अपनी जान बचाने के लिए पैदल हजारों हजारों किलोमीटर गांवों की तरफ भाग रही थी और वहीं इस देश के पूंजीपतिं जरूरी सामानों की कीमतों में वृद्धि कर अपनी संपत्ति को दुगनी रफ्तार से दौड़ा रहे थे।

अमीरों और आम जनता के बीच की चौड़ी होती जा रही खाई 1991 में लागू की गई ‘नई आर्थिक नीति’ की देन है। यही कारण है कि 2000 के दशक से अमीरों के संपत्ति में भारी वृद्धि होनी शुरू हो गई थी। नई आर्थिक नीति लागू से ध्यान भटकाने के लिए देश के अन्दर ‘रथ यात्रा’ के द्वारा सांप्रदा‍यिक तनाव पैदा किया गया। 2012 में नई आर्थिक नीति को लागू करना मुश्किल हो रहा था तो पूंजीपतियों ने मोदी को आगे बढ़ाना शुरू कर दिया था। यही कारण है कि 2014 में मोदी देश के प्रधानमंत्री बने और 2015 से देश के पूंजीपतियों की संपत्ति ने एक लम्बी छलांग लगाई है।

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अमीरों और धन्ना सेठों को छूट, जनता पर टैक्स

वही मोदी सरकार अमीरों से टैक्स लेने की जगह उनको कई तरह की छूट देती है और अपने दस साल के कार्यकाल में करीब 16 लाख करोड़ रूपये अमीरों और धन्ना सेठों के कर्ज माफ (राइट आफ) कर दिया है। वही इसके विपरीत वह गरीबों के खाते में मिनिमम बैलेंस नहीं रहने पर पांच साल में (2018 से 2023 तक) पांच बैंकों ने पेनाल्टी लगाकर 21 हजार करोड़ रुपयों की कमाई की है। इसी तरह मोबाईल चलाने वालों को कमीशन के रूप में एक प्रतिशत कंपनियां देती हैं, लेकिन उस एक प्रतिशत पर 1 अप्रैल, 2024 से सरकार 20 प्रतिशत टीडीएस काट रही है। पेट्रोल-डीजल सहित पेट्रो उत्पादनों पर टैक्स लगाकर 6 साल (2017-18 से दिसम्बर 2023 तक) में 36.66 लाख करोड़ की कमाई जनता से सरकार ने की है। एक तरफ गरीबों की जेब पर डाका तो दूसरी तरफ अमीरों की तिजोरियों में खूब बढ़ोत्तरी की जा रही है। पूंजीपति मीडिया, जिसको गोदी मीडिया भी कहते हैं, इन सब से ध्यान भटकाने के लिए दिन-रात मोदी सरकार की गुणगान करने में लगी है। मोदी सरकार की गलत नीतियों को भी अच्छा पैकेजिंग करके जनता को दिखाती है।

2024 का लोकसभा चुनाव

2024 में जब लोकसभा चुनाव हो रहा है तो मोदी सरकार और बीजेपी खुलेआम पूंजीपतियों के पक्ष में खड़े हैं और अमीरों की संपत्ति के सर्वे को नकार रहे हैं। वही गोदी मीडिया मोदी और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के रैलियों और रोड शो को दिन-रात दिखा रही है, वहीं विपक्ष के नेताओं को मीडिया में नाममात्र की जगह दे रही है या उससे भी बचती नजर आ रही है। वही मोदी और बीजेपी के लोग गरीब जनता को टैक्स का डर दिखाकर वोट मांग रही है। वह कह रही है कि कांग्रेस की सरकार के आने से वह आपका मंगलसूत्र छीन लेगी, विरासत टैक्स लगायेगी। जो बात गरीबों के पक्ष में है उसी को मोदी गरीब विरोधी बता रहे हैं। भारत मे गिरती रूपये की कीमत से और दूसरे कारणों से सोने की कीमत में भारी इजाफा हुआ है। जहां 2014 में दस ग्राम सोने का मूल्य 26,703 रूपये था, वहीं अप्रैल 2024 में दस ग्राम सोने की कीमत 71,414 रू. हो गया है। मोदी सरकार गरीबों को मंगलसूत्र छि‍न जाने का डर दिखा कर वोट मांग रही है, जबकि वास्तविकता तो यह है कि गरीबों के लिए सोने का मंगलसूत्र बनाना मुश्किल होता जा रहा है।

वही कुछ जनवादी लोगों की मांग रही है कि 167 धनी परिवारों की संपत्ति पर दो प्रतिशत का अतिरिक्त टैक्स लगाने से देश की आय में .5 प्रतिशत की वृद्धि हो सकती है, जिससे सरकार को गरीबी से लड़ने में मदद मिलेगी। हमारा मानना यह है कि देश के अमीरों पर टैक्स लगना चाहिए, साथ में ही विरासत पर भी टैक्स लगना चाहिए। इससे न केवल गरीबी और अमीरी की असमानता पर रोक लगेगी, बल्कि भ्रष्टाचार पर भी पूरी तरह लगाम लगने की संभावना है। विरासत कर के कारण उनके बच्चे भी वृद्धावस्था में सही से देखभाल करेंगे। ऐसा नहीं है कि आप बिना मां-बाप की सेवा के उनकी संपत्ति का उत्तराधिकारी बन जाएंगे।

वही अमीरों पर टैक्स और विरासत पर भी कर लगाने की मांग के अलावा आम जनता को अपने प्रतिनिधियों और चुनाव लड़ने वाली पार्टियों से यह शर्त रखनी चाहिए कि असमानता वृद्धि की जड़ नई आर्थिक नीति को रद्द करेंगे, मशीनीकरण के युग में काम के घंटे को कम करके बेरोजगारी दूर करेंगे, महंगी होती शिक्षा और वही स्वास्थ्य की चुनौती को भी कम करने के लिए हर जिले और ब्लॉक स्तर पर बड़े अस्पताल, स्कूल और कॉलेज खोले जायेंगे, जिसमें आम जनता को मुफ्त शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं मिल सके और सभी प्राइवेट अस्पतालों और स्कूलों को प्रतिबंधित करें, जिससे कि अमीर और गरीब के बच्चों को एक तरह की शिक्षा मिले ताकि वे भी सभी कंपटीशन में भाग ले सकें।

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