AVN News Desk New Delhi: आप यानी आम आदमी पार्टी की रणनीति अब तक काफी सफल रही है। सीएम अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी के विरोध में उसने न केवल समूचे विपक्ष को एकजुट करने में सफलता पाई, बल्कि रामलीला मैदान में 31 मार्च को एक बड़ी रैली कर लोकसभा चुनाव के पहले अपनी ताकत दिखाने में भी सफलता हासिल किया था।

बीजेपी और आम आदमी पार्टी दोनों एक दूसरे पर खूब हमलावर हैं। बीजेपी शराब घोटाले को लेकर आम आदमी पार्टी और सीएम अरविंद केजरीवाल जैसे नेताओं को भ्रष्ट बताते हुए उन्हें कटघरे में खड़ा कर रही है, वहीं आम आदमी पार्टी के नेता भी ईडी-सीबीआई की कार्रवाई को लेकर केंद्र सरकार के इरादों पर सवाल खड़े कर रहे हैं। वही इसी कड़ी में रविवार को बीजेपी ने ‘शराब से शीश महल तक’ की यात्रा कर जहां अरविंद केजरीवाल को घेरा, तो आम आदमी पार्टी नेताओं ने उपवास रखकर अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी के खिलाफ प्रदर्शन किया है। लेकिन इस पूरी प्रक्रिया में आम आदमी पार्टी और सीएम अरविंद केजरीवाल लगातार चर्चा के केंद्र में बने हुए हैं। अरविंद केजरीवाल अनजाने में ही बीजेपी के खिलाफ विपक्ष की पूरी मुहिम के केंद्र में आ गए हैं। ऐसे में क्या बीजेपी की यह रणनीति ‘बैकफायर’ कर सकती है और क्या दिल्ली सीएम अरविंद केजरीवाल कहीं ज्यादा मजबूत होकर उभर सकते हैं?

आम आदमी पार्टी (आप) की रणनीति अब तक काफी सफल

वैसे आम आदमी पार्टी की रणनीति अब तक काफी सफल भी रही है। अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी के विरोध में उसने न केवल समूचे विपक्ष को एकजुट करने में सफलता पाई है, बल्कि रामलीला मैदान में 31 मार्च को एक बड़ी रैली कर लोकसभा चुनाव के ठीक पहले अपनी ताकत दिखाने में भी सफल रही है। इस रैली के बहाने ही आम आदमी पार्टी ने दिल्ली से लेकर पंजाब तक के अपने कार्यकर्ताओं में ऊर्जा भरने का काम भी कर दिया है।

जिस तरह कांग्रेस नेता राहुल गांधी, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार और सपा मुखिया अखिलेश यादव  , उद्धव ठाकरे जैसे नेताओं ने केजरीवाल के पक्ष में बयानबाजी की, उससे भी अरविंद केजरीवाल की विपक्ष के एक मजबूत नेता के तौर पर पहचान मजबूत हुई है। आम आदमी पार्टी दिल्ली में लोकसभा चुनाव की बैठकों में अरविंद केजरीवाल की इस मजबूत भूमिका को पुरजोर तरीके से उठा रही है। लोकसभा चुनावों में उसे इसका लाभ मिल सकता है। जबकि इस रैली की सह आयोजक होने के बाद भी कांग्रेस पार्टी दिल्ली में अपनी चुनावी तैयारियों में यही बात कहने की स्थिति में नहीं है।

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इंडिया गठबन्धन फाइल फोटो

अरविंद केजरीवाल हो सकते हैं मजबूत

वही राजनीतिक विश्लेषक का कहना  है कि जिस तरह अरविंद केजरीवाल विपक्ष के पूरे राजनीतिक अभियान के केंद्र में आते हुए दिख रहे हैं, आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल को इसका लाभ मिल सकता है। वे ज्यादा ताकतवर होकर उभर सकते हैं। इसके पहले जिस तरह शराब घोटाले का मामला सामने आया था और जिस तरह मुख्यमंत्री आवास के निर्माण में कथित अनियमितताएं होने की बात सामने आई थी, उससे अरविंद केजरीवाल की छवि पर नकारात्मक असर भी पड़ा था। उससे आप को नुकसान हो सकता था। लेकिन अब जिस तरह लगातार हमलों के कारण अरविंद केजरीवाल मीडिया के चर्चा में आए हैं, उससे वे ज्यादा मजबूत होकर उभर सकते हैं।

वही जानकार ने कहा है कि अरविंद केजरीवाल राजनीति के शातिर खिलाड़ी हैं। यह ध्यान रखना चाहिए कि उनकी पूरी राजनीतिक यात्रा उनके शानदार मीडिया प्रबंधन और मीडिया के कुशल उपयोग करने पर ही आधारित रही है। आज भी जब विपक्ष इस बात का आरोप लगा रहा है कि उसकी आवाज मीडिया में नहीं उठाई जा रही है, अपनी कोशिशों से आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल न केवल चर्चा में बने हुए हैं, बल्कि उसे अपने पक्ष में मोड़ने की पूरी कोशिश भी कर रहे हैं।

उन्होंने कहा है कि जिस तरह आम आदमी पार्टी ने सुनीता केजरीवाल का उपयोग कर इमोशनल कार्ड खेला है, उससे भी उसे लाभ मिल सकता है। मीडिया का उपयोग कर अरविंद केजरीवाल इस कार्ड को बहुत मजबूती के साथ खेल रहे थे। शायद इसीलिए बीजेपी ने केजरीवाल पर हमलों में बांसुरी स्वराज और शाजिया इल्मी जैसे महिला नेताओं को सामने कर दिया है। लेकिन इस प्रकरण से अरविंद केजरीवाल पर हमला करने की रणनीति पर बीजेपी को पुनर्विचार करने की जरूरत पड़ सकती है।

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दिल्ली सीएम अरविंद केजरीवाल

विधानसभा चुनाव में हो सकते ये हैं कारगर

राजनीतिक विश्लेषक विवेक सिंह ने कहा है कि लोकसभा चुनाव पूरी तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि के इर्द गिर्द सिमट जाता है। वही लोकसभा चुनाव और राज्यों के विधानसभा के चुनाव में बीजेपी को मिलने वाले वोटों का अंतर इस बात को प्रमाणित करता है। ऐसे में 2024 में भी इस बात की संभावना है कि पूरा चुनाव मोदी के आसपास ही सिमटा रहे और ऐसे में इस बात की संभावना भी है कि लोकसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल उतने ज्यादा प्रभावी न साबित हों। लेकिन लगभग साल भर बाद जब दिल्ली में विधानसभा के चुनाव होंगे, तब अरविंद केजरीवाल की दावेदारी मजबूत हो सकती है।

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