बिहार, जो कभी देश के बौद्धिक और राजनीतिक चेतना का केंद्र था, आज राजनीति के गिरते स्तर का शिकार हो चुका है। यह वही बिहार है जिसने चाणक्य की रणनीतियों से लेकर जयप्रकाश नारायण की संपूर्ण क्रांति तक देश को नेतृत्व दिया है। लेकिन आज की राजनीति? इसमें न विचारधारा बची है, न सिद्धांत, न नैतिकता और न ही जनता के प्रति कोई जवाबदेही।

नेतृत्व का पतन: सेवा से सत्ता तक
राजनीति कभी लोकसेवा का माध्यम हुआ करती थी, लेकिन अब यह केवल सत्ता की भूख बन चुकी है। पहले नेता जनता के दुख-दर्द को समझते थे, उनके बीच रहते थे, लेकिन अब वे सिर्फ चुनावी मौसम में ही दिखते हैं। चुनाव जीतने के बाद जनता जाए भाड़ में! क्या यही लोकतंत्र है? क्या यही हमारे सपनों का बिहार है?

जाति और धर्म की राजनीति: विकास का हत्यारा बिहार में जातिवाद और धर्म की राजनीति इतनी गहरी जड़ें जमा चुकी है कि इससे ऊपर उठकर विकास की बात करना ही बेकार लगने लगा है। चुनावी मंचों पर भाषण देने वाले नेता शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार की बात करने की बजाय यह गिनाने में लग जाते हैं कि किस जाति ने उन्हें वोट दिया और किसने नहीं। क्या राजनीति का यही स्तर रह गया है कि लोगों को जाति और धर्म के नाम पर बांटकर वोट बटोरो और बाद में भूल जाओ?

बिहार में विकास के नाम पर खोखले वादे

हर चुनाव में बड़े-बड़े वादे किए जाते हैं—सड़कों का जाल बिछा देंगे, शिक्षा को सुधार देंगे, युवाओं को नौकरी देंगे। लेकिन नतीजा? बेरोजगारी बढ़ती जा रही है, सरकारी स्कूल और अस्पताल बदहाल हैं, उद्योग धंधे दम तोड़ चुके हैं।

युवा रोजी-रोटी के लिए पलायन कर रहे हैं, गांवों में सिर्फ बूढ़े मां-बाप बच गए हैं, और हमारे नेता… वे अपनी कुर्सी बचाने के लिए दल बदलने में लगे हैं। सत्ता के लिए सौदेबाजी हो रही है, न कोई स्थिर सरकार बन पा रही है, न ही कोई ठोस नीतियां।
आखिर कब तक बिहार ऐसे ही अंधेरे में भटकता रहेगा?

बिहार

जनता की चुप्पी: सबसे बड़ा अपराध
लेकिन क्या सिर्फ नेता ही जिम्मेदार हैं? नहीं! जनता की चुप्पी भी उतनी ही दोषी है। हम चुनाव में जाति, धर्म, और छोटे-मोटे लालच के आधार पर वोट देते हैं, फिर नेताओं को कोसते हैं। अगर हमें राजनीति के इस गिरते स्तर को रोकना है, तो हमें खुद जागरूक होना होगा। हमें ऐसे नेताओं को चुनना होगा जो काम करें, सिर्फ भाषण न दें।

अब भी समय है, बदलाव लाओ!

बिहार को फिर से अपने पुराने गौरव को हासिल करना होगा। यह तभी संभव है जब हम जात-पात , धर्म से ऊपर उठकर, विकास और सुशासन को प्राथमिकता दें। हमें ऐसे नेताओं को चुनना होगा जो सच में बिहार को आगे ले जाना चाहते हैं, न कि सिर्फ सत्ता का खेल खेलना जानते हैं।

आइए, अपने सपनों के बिहार के लिए सही राजनीति को चुनें और इस गिरते स्तर को रोकें, वरना आने वाली पीढ़ियां हमें माफ नहीं करेंगी।

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