Supreme Court : देश में सीवर यानी गटर (पक्का नाला) सफाई के दौरान होने वाली मौत की घटनाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (20 अक्टूबर) को काफी गंभीर गंभीर रुख अपनाया है.सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सरकारी अधिकारियों को मरने वालों के परिजनों को 30 लाख रुपये का मुआवजा (Compensation) देना होगा.
जस्टिस एस. रवींद्र भट और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार की बेंच ने कहा है कि सीवर यानी नाला की सफाई के दौरान स्थायी दिव्यांगता का शिकार होने वालों को न्यूनतम मुआवजे (Compensation) के रूप में 20 लाख रुपये का भुगतान यानी अदायगी किया जाएगा.
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट के पीठ ने कहा है कि, “केंद्र और राज्य सरकारों को यह सुनिश्चित (Ensure) करना चाहिए कि हाथ से मैला ढोने की प्रथा पूरी तरह से खत्म हो जाए. ” फैसला सुनाते हुए जस्टिस एस. रवींद्र भट ने कहा है कि यदि कोई सफाईकर्मी अन्य दिव्यांगता से ग्रस्त है तो अधिकारियों को 10 लाख रुपये तक का भुगतान (Payment) करना होगा.
सुप्रीम कोर्ट ने कई निर्देश जारी किए हैं, जिन्हें पढ़ा नहीं गया. पीठ ने निर्देश दिया है कि सरकारी एजेंसियों को यह सुनिश्चित करने के लिए समन्वय (Coordination) करना चाहिए कि ऐसी घटनाएं न हों और इसके अलावा, उच्च न्यायालयों को सीवर यानी नाला से होने वाली मौतों से संबंधित मामलों की निगरानी करने से न रोका जाए.
13 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने केंद्र सरकार (Central government) से कहा था कि वह देश भर के राज्यों के सेक्रेटरी के साथ मीटिंग करे और हाथों से मैले की सफाई रोकने को लेकर तमाम पहलुओं पर बातचीत करे। मैन्युअल स्केवेंजर्स (हाथ से मैले की सफाई) को रोकने के लिए कोर्ट ने जल्द से जल्द कदम उठाने को कहा था। सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर हाथ से मैले की सफाई रोकने के लिए अर्जी दाखिल की गई है। सुप्रीम कोर्ट ने फरवरी में केंद्र सरकार से कहा था कि वह बताए कि इस मामले में बने 2013 के कानून को लागू करने के लिए क्या कदम उठाए हैं। कोर्ट ने कहा था कि केंद्र बताए कि 2014 के सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट के तहत जारी गाइडलाइंस (Guidelines) को लागू करने के लिए क्या कदम उठाए हैं।
सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट में क्या था?
सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में एक ऐतिहासिक फैसले में हाथ से (मैन्युल तरीके से) कचरे और गंदगी की सफाई रोकने के लिए तमाम निर्देश जारी किए थे। साथ ही कहा था कि सीवर की खतरनाक सफाई के लिए किसी मजदूर को न लगाया जाए। बिना सेफ्टी के सीवर लाइन में मजदूर को न उतारा जाए। कानून का उल्लंघन (Violation) करने वालों को सख्त सजा का भी प्रावधान किया गया था।
सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस पी. सथासिवम की बेंच ने देश भर के तमाम राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया था कि वह 2013 के उस कानून को लागू करे जिसमें हाथ से कचरा उठाने की प्रथा को खत्म करने के लिए कानूनी प्रावधान किया गया था और पीड़ितों के पुनर्वास के लिए प्रावधान किया गया था।
सफाई कर्मचारी (Cleaners) आंदोलन की ओर से इस मामले में एक जनहित याचिका दायर की गई थी और कहा गया था कि हाथ से कचरा हटाने और खतरनाक सीवर लाइन में बिना सेफ्टी गार्ड के मजदूरों के उतरने आदि को लेकर कानून का पालन करने का निर्देश दिया जाए। सुप्रीम कोर्ट में केस पेंडिंग रहने के दौरान ही केंद्र सरकार ने एक्ट (प्रोहिबिशन ऑफ इंप्लायमेंट एस मैन्युअल स्कैविंजर एंड देयर रिहेबिलेशन एक्ट 2013) बनाया था। याचिका में कहा गया था कि उनके जीवन के अधिकार और समानता के अधिकार की रक्षा की जाए।यह फैसला एक जनहित याचिका पर आया. विस्तृत आदेश की प्रतीक्षा है.
पिछले पांच सालों में कितने लोगों की जान गई?
जुलाई 2022 में लोकसभा में उद्धृत यानी सरकारी आंकड़ों के अनुसार, पिछले पांच वर्षों में भारत में सीवर यानी नाला और सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान कम से कम 347 लोगों की मौत हुई, जिनमें से 40 प्रतिशत मौतें उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु और राजधानी दिल्ली में हुईं.