टीनएजर्स और बच्चों में नजर आने वाली मानसिक समस्याएं और जाने – क्या हैं इनका इलाज ..
टीनएजर्स और बच्चों में नजर आने वाली मानसिक समस्याएं :
टीनएजर्स और छोटे बच्चे उम्र का वो पड़ाव होते हैं, जहां बच्चे का विकास बहुत तेजी से होता है। इस दौरान बच्चे मानसिक और शारीरिक रूप से तेजी से बदलते रहते हैं। इनमें से कुछ बदलाव प्राकृतिक रूप से हर किसी के साथ होता हैं, वहीं कुछ ऐसे भी बदलाव होता हैं जो कि आसपास के माहौल और वातावरण आदि की वजह से बच्चों और टीनएजर्स में नजर आने लगते हैं।
आज के समय में कम उम्र के छोटे बच्चों और टीनएजर्स में भी स्कूल, पढ़ाई और बिगड़ते माहौल के कारण स्ट्रेस वा तनाव देखा जाने लगा है। आजकल कम उम्र के बच्चों और टीनएजर्स में भी आसपास के माहौल, परिवार की उदासीनता, लड़ाई झगड़े और हिंसा के चलते मानसिक रोग नजर आने लगे हैं।
यह बहुत चिंताजनक स्थिति है क्योंकि जिस उम्र में बच्चों को हंसी खुशी के माहौल में रहते हुए, खेलना कूदना और नया कुछ सीखते रहना चाहिए, उस उम्र में बच्चे मानसिक समस्याओं से ग्रस्त हो जाते हैं।
अगर सही समय पर इन सभी समस्याओं को देखा, समझा और इनका इलाज नहीं किया गया तो यह बच्चे उम्र भर के लइस समस्या से ग्रस्त रहते हैं और इसका समाधान ना मिल पाने के कारण अन्य असामाजिक गतिविधियों में शामिल हो जाते हैं।
चलिए आप को बच्चों में पनप रही मानसिक समस्याओं के बारे में और विस्तार में बताते हैं।
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टीनएजर्स और बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले तत्व वा कारण
एक स्टडी व सर्वे के अनुसार यह पता चला है कि भारत में 5 करोड़ से अधिक बच्चे मानसिक समस्याओं से जूझ रहे हैं। यह नंबर नियमित रूप से और बढ़ता जा रहा है क्योंकि अभी तक बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य को लेकर कोई भी बड़े कदम नहीं उठाए गए हैं। टीनएजर्स और बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले बहुत से तत्व वा कारण होते हैं। दरअसल एडल्ट्स में जो मानसिक समस्याएं देखी जाती हैं वह बचपन से ही चली आ रही किसी न किसी मानसिक समस्या का एक बढ़ा हुआ रूप कहा जा सकता है।
टीनएजर्स और बच्चों को प्रभावित करने वाले तत्त्व उनका परिवार, परिवार में माता-पिता के आपसी संबंध, उनके दोस्त, दोस्तों द्वारा उन पर किसी बात के लिए नियमित रूप से प्रेशर डालना, टेक्नोलॉजी का जीवन में बहुत अधिक हस्तक्षेप, पढ़ाई लिखाई में सफल होने का प्रेशर और सेक्सुअल हिंसा हो सकते हैं।
कुछ बच्चे अन्य बच्चों की तुलना में मानसिक रूप से अधिक परेशान और अकेला महसूस करते हैं। इसकी वजह यह हो सकती है कि वह खुद को किसी न किसी तरह से अन्य लोगों से अलग महसूस करते हैं या महसूस करवाए जाते हैं। अन्य लोगों की तुलना में बच्चे खुद को अलग अक्सर तब महसूस करते हैं जब वह समाज के बनाए गए नियमो के अनुसार खुद को नहीं पाते। इसमें उनकी सेक्सुअलिटी, जाती, क्लास के आधार पर भेदभाव, परिवार में हिंसा, घर में किसी बड़े का सपोर्ट ना होना और हर वक्त बड़ों के द्वारा प्रेशर थोपा जाना बड़े यह बड़े कारण साबित होते हैं।
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किन मानसिक समस्याओं से जूझते हैं टीनएजर्स और बच्चे
वैसे तो दुनिया का हर बच्चा एक दूसरे से बेहद ही अलग होता है और वह दुनिया में अभी तक जानी और समझी गई किसी भी मानसिक समस्या से जूझ रहा हो सकता है।
भारत में नेशनल मेंटल हेल्थ सर्वे की 2015 -16 में आई रिपोर्ट के अनुसार 13 से लेकर 17 साल तक की उम्र के 7.4% बच्चे किसी न किसी मानसिक समस्या से गुजर रहे हैं। इस रिपोर्ट में यह बात भी सामने आई है कि शहरी बच्चों में गांव के बच्चों की तुलना में मानसिक रोगों की समस्या अधिक देखी गई है। बच्चों में आमतौर पर ये मानसिक समस्याएं देखी जाती है।
पर्सनालिटी डिसऑर्डर
बहुत से बच्चों में अपने युवावस्था से पहले यानी टीनएजर्स से ही पर्सनालिटी से जुड़े कुछ लक्षण नजर आने लगते हैं। उनका बहुत अधिक गुस्सा करना, लड़ाई झगड़ा करना, चिड़चिड़ापन, मारपीट आदि करना पर्सनालिटी डिसऑर्डर के ही लक्षण कहे जाते हैं।
ईटिंग डिसऑर्डर
बहुत से मामलों में यह देखा गया है कि बच्चे स्ट्रेस में होने पर या तो बहुत अधिक खाने लगते हैं या खानपान को बिल्कुल छोड़ देते हैं। इस तरह के ईटिंग डिसऑर्डर लड़कियों में लड़कों की तुलना में अधिक पाए जाते हैं। ऐसा बॉडी इमेज ईशु की वजह से भी होता है, जहां लड़कियों पर कम उम्र से ही एक खास तरह वा अलग दिखने का प्रेशर होता है। ईटिंग डिसऑर्डर कई तरह के होते हैं। टीनएजर्स से ही बच्चों में बहुत अधिक खाने या खाना बिल्कुल छोड़ देने की समस्या देखी जाती हैं। इनमें एनोरेक्सियानर्वोसा बेहद कॉमन मानसिक और बुलिमिया नर्वोसा और शारीरिक समस्याएं कही जा सकते हैं।
मूड डिसऑर्डर
ये बेहद समान्य मानसिक समस्याएं हैं जहां कम उम्र से ही स्ट्रेस के चलते बच्चों का मूड और व्यवहार बदल जाता है। कभी वह बहुत उदास हो सकते हैं तो कभी वह बहुत हाइपरएक्टिव नजर आते हैं। डिप्रेशन, उदासी, नाराजगी और बाइपोलर डिसऑर्डर मूड डिसऑर्डर है जो बच्चों में बेहद आम तौर पर देखे जाते हैं।
एंजायटी डिसऑर्डर
कई बच्चों को सोशल एंजायटी यानी कि सामाजिक चिंता होती है तो वहीं इन बच्चों को कई तरह के डर घेरने लगते हैं। टीनएजर्स में अभी ये डर बहुत खुलकर सामने नहीं आते हैं, लेकिन अपनी पढ़ाई को लेकर, करियर या किसी खास मामले में यह डर खुलकर बच्चे और टीनएजर्स को अपनी चपेट में ले रहे हैं।
नशा
नशा या एडिक्शन भी एक मानसिक समस्या है जिसके चलते एक बच्चा कम उम्र में ही शराब, सिगरेट या ड्रग का आदी हो जाता है। इस उम्र में उनके सोचने समझने की शक्ति पूरी तरह से विकसित नहीं होती और यही वजह है कि अल्कोहल और ड्रग उन्हें पूरी तरह से अपने बस में कर लेते हैं।
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मानसिक समस्या से जूझ रहे बच्चों और टीनएजर्स में नजर आने वाले लक्षण
यह जानना और समझना बेहद जरूरी है कहीं आपका बच्चा किसी मानसिक समस्या से जूझ तो नहीं रहा है। यह पता लगाना इतना मुश्किल भी नहीं है। अगर आप अपने बच्चों के लक्षणों और उनके हरकतों पर पैनी नजर रखेंगे तो आप समझ सकते हैं कि आपका बच्चा किसी मुश्किल में है और उसे मदद की जरूरत है।
यह लक्षण समझ में आने पर आप अपने बच्चे को किसी मेंटल हेल्थ प्रोफेशनल के पास ले जा सकते हैं, जहां पर टॉक थेरेपी या किसी अन्य प्रकार की मेंटल हेल्थ थेरेपी से बच्चे को अपनी समस्या से निजात मिल सकती है। आईए जानते हैं कि आपको अपने बच्चे की किन लक्षणों पर पैनी नजर रखने की जरूरत है।
अगर आपके बच्चे में यह लक्षण नजर आ रहे हैं तो आपको जल्द से जल्द किसी चाइल्ड साइकोलॉजिस्ट एक्सपर्ट से संपर्क करना चाहिए।
- भूख ना लगना
- एकाग्रता की कमी
- सुसाइडल महसूस करना
- गिल्ट की भावना बढ़ने लगना
- हर वक्त निराशा महसूस करना
- बहुत अधिक सोना या बिल्कुल ना सोना
- उदास खाली या घबराहट महसूस करना
- बहुत अधिक थकान हर समय महसूस होना
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क्या है बचाव और इलाज
बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में उनका परिवार बहुत बड़ी भूमिका निभाता है। ऐसे में अगर आपको यह समझ में आ रहा है कि आपका बच्चा किसी कारण से मानसिक रूप से परेशान महसूस कर रहा है तो उस बच्चे का सही इलाज कराना बेहद जरूरी है।
टीनएजर्स वैसे ही अपने आप में एक बेहद मुश्किल दौर होता है, ऊपर से मानसिक समस्याएं इसे और भी चैलेंजिंग बना सकता है। इसीलिए परिवार को अपने बच्चे के प्रति बहुत उदार होना चाहिए और उसे बहुत प्यार देना चाहिए।
जब बच्चे महसूस करता है कि उनको परिवार से प्यार और अपनापन मिल रहा है तो उसे अपनी समस्याओं और चिंताओं का सामना करने की हिम्मत मिलती है।
अगर आप ऐसा महसूस कर रहे हैं कि आपका बच्चा पढ़ाई के प्रेशर के तले दबता जा रहा है और इसकी वजह से लगातार घबराहट, डर और निराशा महसूस कर रहा है तो उस पर बेवजह टॉप करने का दबाव न डालें। हर बच्चे की क्षमताएं और काबिलियत अलग-अलग होती है। जरूरी नहीं है कि अगर आपका बच्चा हर विषय में 100 में से 100 नहीं ला सकता तो वह जीवन में कुछ नहीं कर पाएगा। आज के दौर में कैरियर की कोई कमी नहीं है। जिस क्षेत्र में बच्चा चाहे उस क्षेत्र में अपना नाम बना सकता है और पैसे भी कमा सकता है। इसीलिए उस पर डॉक्टर इंजीनियर या एमबीए का दबाव ना डालें।
सभी के लिए घर एक सुरक्षित और सेफ जगह होनी चाहिए। क्या आपका बच्चा घर में असुरक्षित महसूस कर रहा है? अगर ऐसा है तो उसके कारणों का पता लगाएं। क्या कोई व्यक्ति या घटना है जिसकी वजह से आपके बच्चे को घर में असुरक्षा की भावना महसूस हो रही है? अगर ऐसा है तो उस व्यक्ति या घटना से जल्द से जल्द निजात पाएं और अपने बच्चे के लिए एक बेहतर और सेफ घर में माहौल बनाए।
आपका बच्चा मानसिक रूप से परेशान है और वह पर्सनालिटी और मूड से जुड़े लक्षण दिखा रहा है तो उसे किसी चाइल्ड साइकोलॉजिस्ट, थैरेपिस्ट या मेंटल हेल्थ प्रोफेशनल के पास ले जाएं। वह एक्सपोर्ट्स होते हैं जो डॉक्टर की तरह ही आपके बच्चे की समस्या को समझ कर उसकी मुश्किलें आसान करने में मदद कर सकते हैं। अपने बच्चे को बहुत सारा लाड प्यार दें और उसे यकीन दिलाएं कि वह जल्द से जल्द ठीक हो जाएगा। बच्चों के ऊपर किसी भी तरह का अनरियलिस्टिक प्रेशर वा दबाव ना डालें। नियमित रूप से बच्चे से बात करते रहें ताकि अगर उसके मन में कोई भी उलझन है तो वह खुलकर आपको बता सके।
Note:
सुझाव/ अस्वीकरण:- यह ब्लॉग/आर्टिकल सामान्य जानकारी के लिए लिखा गया है| यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है।अगर आप किसी बीमारी से ग्रसित हैं तो कृपया डॉक्टर से परामर्श जरूर लें और डॉक्टर के सुझावों के आधार पर ही कोई निर्णय लें|
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