Bhagat Singh

Bhagat Singh: भगत सिंह की ज़िंदगी के आख़िरी 12 घंटों की कहानी, क्या हुआ था उस रोज़ ! Story of the last 12 hours of Bhagat Singh’s life.

Bhagat Singh:  23 मार्च 1931 को भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी दी गई, और यह दिन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखा गया है। यह दिन भगत सिंह की शहादत का दिन था, और उनकी आख़िरी 12 घंटे की कहानी भारतीयों के दिलों में हमेशा के लिए जीवित रहेगी।

आइए जानते हैं उन आख़िरी घंटों में क्या हुआ था:

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Bhagat Singh

1. सुबह का समय – अंतिम मुलाकातें: 23 मार्च 1931 की सुबह भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी देने से पहले एक अंतर्विदेशी अदालत द्वारा उन्हें अंतिम समय के लिए इजाज़त दी गई थी। सुबह के वक्त उन्हें उनके परिवारजनों और दोस्तों से मिलने का मौका मिला। भगत सिंह ने अपने परिवार से मिले बिना कोई आंसू या पछतावा जताए बिना शांति से मुलाकात की। वे अपने जीवन को गर्व के साथ खत्म करने के लिए तैयार थे।

2. जेल में बिताए गए अंतिम पल: भगत सिंह ने अपनी शहादत के दिन भी अपने आदर्शों से एक कदम भी पीछे नहीं हटे। वह काफी शांत थे, और अपने दोस्तों के साथ बातें करते रहे। वे जानते थे कि यह समय उनका आख़िरी समय है, लेकिन उन्होंने कभी भी घबराहट या डर का अहसास नहीं होने दिया। उन्होंने यह कहा कि “मैं एक क्रांतिकारी हूँ और मुझे किसी भी प्रकार की सजा से डर नहीं है, क्योंकि मेरे लिए देश की स्वतंत्रता सर्वोपरि है।”

3. अंतिम भोजन: फांसी से पहले, भगत सिंह को अपना आख़िरी भोजन देने के लिए कहा गया। वह बहुत सादे मन से भोजन करते हुए भी अपने विचारों में खोए हुए थे। उन्होंने अंतिम समय में अपने संघर्ष और शहादत को लेकर कोई भी संकोच नहीं किया। उन्होंने मन ही मन अपनी शहादत को अपनी अंतिम जीत के रूप में देखा।

4. अंतिम पत्र: भगत सिंह ने अपनी मां को एक पत्र भी लिखा था, जिसमें उन्होंने अपनी शहादत को गर्व के साथ स्वीकार किया। पत्र में उन्होंने अपनी मां से कहा था कि वह दुखी न हों, क्योंकि उनका बलिदान देश की स्वतंत्रता के लिए है, और यह उनका कर्तव्य था। इस पत्र में उनका आत्मविश्वास और देश के प्रति उनका समर्पण स्पष्ट रूप से देखा जा सकता था।

5. जेल से बाहर जाने का समय: सुबह के करीब 7 बजे भगत सिंह और उनके साथी जेल से बाहर जाने के लिए तैयार थे। जेल के अधिकारियों ने उन्हें अंतिम समय के लिए फांसी के तख्ते तक ले जाने का आदेश दिया। वे पूरी तरह से शांत थे, और उनके चेहरे पर न तो कोई डर था, न ही कोई पछतावा। उनका आत्मविश्वास और साहस उनके हर कदम से झलक रहा था।

6. फांसी का समय – आत्मविश्वास और साहस: भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी के तख्ते तक ले जाया गया। जब उन्हें फांसी पर लटकाया गया, तो उन्होंने अपनी शहादत को गर्व के साथ स्वीकार किया। उनके चेहरे पर कोई घबराहट नहीं थी। वे जानते थे कि उनका बलिदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की लहर को और तेज़ करेगा। फांसी के तख्ते पर चढ़ते वक्त भगत सिंह ने “इंकलाब जिंदाबाद” के नारे लगाए, जो उनके जीवन के संघर्ष और उद्देश्य का प्रतीक बन गए।

7. फांसी के बाद: भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की शहादत ने भारतीय समाज को एक नया जोश दिया। उनकी शहादत ने भारतीय युवाओं को जागरूक किया और उन्हें स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के लिए प्रेरित किया। भगत सिंह की शहादत के बाद, उनके विचार और आदर्श भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सबसे प्रेरणादायक पहलुओं में से एक बन गए।

निष्कर्ष: भगत सिंह की ज़िंदगी के आख़िरी 12 घंटे न केवल उनके साहस और दृढ़ता की गवाही देते हैं, बल्कि यह भी बताते हैं कि उन्होंने अपने जीवन को पूरी तरह से देश की स्वतंत्रता के लिए समर्पित किया था। उनके बलिदान ने भारत को नया आत्मविश्वास और प्रेरणा दी, जो आज भी हमारे दिलों में जीवित है। उनका नाम और उनका संघर्ष हमेशा हमारे साथ रहेगा।

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