Panchyat Raj : महात्मा गांधी ने विश्वास किया कि गांवों की सुरक्षा और विकास ही देश के विकास की गारंटी है। उन्होंने पंचायती राज को मजबूत करके गांवों को सशक्त बनाने का संदेश दिया। 1992 में संविधान में किया गया 73वां संशोधन उनके सपने को हकीकत में बदलने का एक प्रयास था, जिससे गांवों के नेतृत्व में जनता स्वयं अपने विकास के निर्णय ले सके।
भारतीय समाज की जड़ उसके गांवों में है, और इन गांवों से ही देश की पहचान होती है। देश में लगभग छह लाख से अधिक गांव हैं, जो विभिन्न ब्लॉक और जिलों में बांटे गए हैं। हमारा देश एक लोकतांत्रिक राज्य है, और सिर्फ केंद्र और राज्य सरकारों के प्रयास ही इसे पूरी तरह से संचालित नहीं कर सकते। इसके लिए स्थानीय स्तर पर भी प्रशासन की व्यवस्था की जाती है, जिसे हम पंचायती राज कहते हैं। यह व्यवस्था गांवों को सशक्त और स्वायत्त बनाती है, और लोगों को अपने विकास में सहयोग प्रदान करती है।
पंचायती राज में, गांव स्तर पर ग्राम सभा, ब्लॉक स्तर पर मंडल परिषद और जिला स्तर पर जिला परिषद होते हैं। इन संस्थानों के सदस्यों का चुनाव होता है जो जमीनी स्तर पर शासन की बागडोर संभालते हैं और गांवों के विकास में सहयोग करते हैं।
कब मनाया जाता है पंचायती राज दिवस
पंचायती राज दिवस को 24 अप्रैल को मनाया जाता है। इस दिन का महत्व 2010 में शुरू हुआ था, जब संविधान के 73वें संशोधन अधिनियम के तहत किया गया। इसे पंचायती राज के नाम से जाना जाता है। प्रति वर्ष, पंचायती राज मंत्रालय इस अहम दिन को राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस के रूप में मनाता है।
कैसे हुई पंचायती राज की शुरुआत
पंचायती राज व्यवस्था का जनक माने जाने वाले लॉर्ड रिपन ने 1882 में स्थानीय संस्थाओं को एक लोकतांत्रिक ढांचा प्रदान किया था। इस व्यवस्था को सबसे पहले राजस्थान में लागू किया गया था। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का मानना था कि गांव देश की रीढ़ की हड्डी होते हैं, और यदि गांवों को खतरा हुआ तो पूरे देश को खतरा हो सकता है। उन्होंने ग्राम स्वराज का सपना देखा था और कहा था कि पंचायतों को सभी अधिकार होने चाहिए।
1992 में संविधान में 73वां संशोधन करके पंचायती राज संस्थान की स्थापना की गई, जिससे स्थानीय निकायों को अधिक से अधिक शक्तियां प्राप्त हुईं। इस कानून ने उन्हें आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय की शक्ति और जिम्मेदारियाँ देने का अवसर प्रदान किया।
कैसे चलता है पंचायती राज
पंचायत शब्द का अर्थ है ‘पांच’ और ‘सभा’, जो कि पंच सदस्यों की सभा को बताता है। यहाँ पांच सदस्यों की सभा में स्थानीय समुदायों के विकास और उत्थान के लिए काम किया जाता है, और विवादों को हल भी किया जाता है। शुरूआती दिनों में, सरपंच पंचायत या गांव का प्रमुख व्यक्ति होता था, जो सभी समस्याओं का समाधान करता था। हर कोई उसकी बात को सुनता था और उसकी शक्ति पर विश्वास किया जाता था। परंतु, समय के साथ कई बदलाव आया है।
आजकल, गांव, ब्लॉक और जिला स्तर पर चुनाव होते हैं और प्रतिनिधियों को चुनने का प्रक्रिया अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और महिलाओं के लिए आरक्षित होता है। अब पंचायती राज संस्थानों को अधिक शक्तियां और जिम्मेदारियां दी गई हैं ताकि वे अच्छे तरीके से काम कर सकें।