Mahavir Jayanti : भगवान महावीर का जन्म ईसा से लगभग 599 वर्ष पूर्व चैत शुक्ल त्रयोदशी के दिन हुआ था। वे क्षत्रिय कुल में राजा सिद्धार्थ और रानी त्रिशला के पुत्र के रूप में कुण्डलपुर में जन्मे थे। उनके जन्म के समय विशेष योग था, जिससे राज्य में समृद्धि आई, और उनका नाम वर्धमान रखा गया।
संस्कार और दीक्षा
महावीर जी का पालन-पोषण धार्मिक और संस्कारी वातावरण में हुआ। महज 30 वर्ष की उम्र में, उन्होंने सांसारिक सुखों का त्याग कर दिया और ज्ञान की खोज में निकल पड़े। 12 वर्षों की कठोर तपस्या के बाद, उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई, और वे दिगंबर साधु बन गए।
उपदेश और सिद्धांत
ज्ञान प्राप्ति के बाद, भगवान महावीर ने अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह के पंचशील सिद्धांतों का प्रचार किया। उन्होंने ‘जीओ और जीने दो’ का संदेश दिया, emphasizing कि दूसरों के साथ वही व्यवहार करें जो हम स्वयं के लिए चाहते हैं।
अनुयायी और प्रभाव
भगवान महावीर के उपदेशों से प्रभावित होकर राजा बिम्बिसार, कुनिक और चेटक जैसे कई लोग उनके अनुयायी बने। उनकी शिक्षाओं ने समाज में अहिंसा और सत्य के महत्व को बढ़ाया, जो आज भी प्रासंगिक हैं।
महावीर जयंती: एक उत्सव
महावीर जयंती के अवसर पर, जैन समाज भगवान महावीर की शिक्षाओं का स्मरण करता है। इस दिन, मंदिरों में विशेष पूजा, रथ यात्रा और उपदेश कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। यह दिन समाज में अहिंसा और सत्य के संदेश को फैलाने का अवसर बनता है।
निष्कर्ष
भगवान महावीर का जीवन हमें त्याग, तपस्या और सत्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। उनकी शिक्षाएं आज भी समाज में शांति और सद्भावना का संचार करती हैं।