Kawad Yatra Types : भगवान शिव को समर्पित कांवड़ यात्रा 22 जुलाई, सोमवार से शुरू हो गई है। यह यात्रा हर साल सावन के महीने में होती है और हिंदू धर्म में इसका विशेष महत्व है। Kawad Yatra भगवान शिव का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है जिसमें भक्त कांवड़ में गंगाजल भरकर लंबी यात्रा करते हैं और शिवालयों में जाकर जलाभिषेक करते हैं। इन भक्तों को ‘कांवड़िया’ कहा जाता है।
कांवड़ यात्रा की रौनक
हर साल सावन के महीने में Kawad Yatra की रौनक देखते ही बनती है। यह यात्रा केवल शिव भक्ति का प्रतीक नहीं है, बल्कि श्रद्धा और समर्पण का जीवंत उदाहरण भी है। हजारों कांवड़िया कठिन रास्तों पर चलते हुए, अपनी आस्था और भक्ति से भगवान शिव का आशीर्वाद पाने के लिए इस पवित्र यात्रा में शामिल होते हैं।
कांवड़ यात्रा के दौरान, केसरिया वस्त्रों में सजे कांवड़ियों के जत्थे दूर-दूर से गंगाजल भरकर शिवालयों की ओर जाते हैं। आइए जानते हैं कांवड़ यात्रा के प्रकार और इसका इतिहास।
क्या है कांवड़ यात्रा का इतिहास?
शिव पुराण के अनुसार, सावन के महीने में समुद्र मंथन हुआ था। इस मंथन से चौदह प्रकार के रत्नों के साथ हलाहल (विष) भी निकला। इस जहरीले विष से सृष्टि को बचाने के लिए भगवान शिव ने इसे पी लिया। भगवान शिव ने इस विष को अपने गले में रोक लिया, जिससे उनके गले में तीव्र जलन होने लगी।
माना जाता है कि शिव के भक्त दशनंद रावण ने भगवान शिव के गले की जलन को कम करने के लिए उनका गंगाजल से अभिषेक किया था। रावण ने कांवड़ में जल भरकर भगवान शिव का जलाभिषेक किया। तभी से कांवड़ यात्रा का प्रचलन शुरू हुआ। कांवड़ यात्रा का इतिहास जानने के बाद, आइए अब जानते हैं कि यह यात्रा कितने प्रकार की होती है।
Kawad Yatra Types
सामान्य कांवड़ : सामान्य Kawad Yatra में कांवड़िए अपनी सुविधा के अनुसार कहीं भी आराम कर सकते हैं। इनके लिए सामाजिक संगठन पंडाल लगाते हैं, जहां भोजन और विश्राम की व्यवस्था होती है। विश्राम के बाद, कांवड़िए फिर से अपनी यात्रा शुरू करते हैं। आराम के दौरान, कांवड़ को विशेष स्टैंड पर रखा जाता है ताकि यह जमीन से न छुए।
डाक कांवड़ यात्रा : डाक कांवड़ यात्रा को 24 घंटे में पूरा किया जाता है। इस यात्रा में 10 या उससे अधिक युवाओं की टोली वाहनों से गंगा घाट जाती है, जहां वे गंगाजल लेकर निकलते हैं। इस यात्रा में एक या दो सदस्य लगातार नंगे पैर गंगाजल हाथ में लेकर दौड़ते हैं। जब एक थक जाता है, तो दूसरा दौड़ने लगता है। इसी वजह से डाक Kawad Yatra को सबसे कठिन माना जाता है।
झांकी कांवड़ : कुछ शिव भक्त झांकी लगाकर कांवड़ यात्रा करते हैं। ये कांवड़िए 70 से 250 किलो तक की कांवड़ लेकर चलते हैं। इन झांकियों में शिवलिंग बनाया जाता है और इसे लाइटों और फूलों से सजाया जाता है। झांकी में बच्चों को शिव के रूप में सजाकर शामिल किया जाता है, जिससे यात्रा और भी आकर्षक हो जाती है।
दंडवत कांवड़ यात्रा : इस यात्रा में कांवड़िए अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए दंडवत कांवड़ लेकर चलते हैं। यह यात्रा 3 से 5 किलोमीटर लंबी होती है। इस दौरान शिव भक्त दंडवत करते हुए शिवालय तक पहुंचते हैं और गंगा जल शिवलिंग पर अर्पित करते हैं। यह यात्रा उनकी गहरी श्रद्धा और समर्पण का प्रतीक है।
खड़ी कांवड़ यात्रा : इस कांवड़ यात्रा को सबसे कठिन माना जाता है। इसकी खास बात यह है कि शिव भक्त गंगा जल उठाने से लेकर जलाभिषेक तक कांवड़ को अपने कंधे पर ही रखते हैं। इस यात्रा में कांवड़ को आमतौर पर शिव भक्त जोड़े में ही लाते हैं, जो उनकी दृढ़ निष्ठा और भक्ति को दर्शाता है।