Fact About Hanuman : रामायण ही नहीं, बल्कि महाभारत, भागवत गीता और पुराणों के पन्नों में भी श्री हनुमान जी की भक्ति और पराक्रम की गूंज सुनाई देती है। ऐसा कहा जाता है कि चैत्र महीने की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि पर वानरराज केसरी और अंजना के आंगन में एक दिव्य प्रकाश के रूप में उनका अवतरण हुआ था। तभी से यह दिन ‘हनुमान जयंती’ के रूप में श्रद्धा और शक्ति का प्रतीक बन गया। उन्हें पवनपुत्र, संकटमोचन, अष्टसिद्धि दाता जैसे अनेक अलौकिक नामों से जाना जाता है। चलिए, आज हम उन रहस्यमयी पहलुओं पर नज़र डालते हैं, जो उनके जीवन को और भी अद्भुत बनाते हैं

हनुमान जी 

मंगलवार का मतलब – हनुमान जी का दिन

मंगलवार का सूरज निकलते ही भक्तों के मन में बस एक ही नाम होता है – हनुमान जी का।

कहा जाता है, इस दिन उन्हें चमेली का तेल और सिंदूर चढ़ाने से मन की हर बात पूरी होती है।

बीमारियाँ भी दूर होती हैं, और दुख भाग जाते हैं।

शिव का अवतार – भक्त हनुमान

हनुमान जी कोई साधारण वानर नहीं, बल्कि भगवान शिव के 11वें अवतार माने जाते हैं।

उन्होंने ये रूप सिर्फ एक मकसद से लिया – भगवान राम की सेवा।

हनुमद रामायण – जो वाल्मीकि से भी पहले थी!

जब रामायण पूरी हुई, हनुमान जी हिमालय चले गए।

वहाँ बैठकर, उन्होंने अपने नाखून से एक शिला पर रामकथा लिखी –  इसे ही कहते हैं – हनुमद रामायण।

जब हनुमान जी ने खुद को लाल कर लिया  

हनुमान

एक दिन उन्होंने सीता माता को मांग में सिंदूर लगाते देखा और पूछा – “क्यों लगाती हो?”

सीता बोलीं – “इससे राम जी की उम्र बढ़ेगी।”

बस फिर क्या था – हनुमान जी ने पूरे शरीर पर सिंदूर लगा लिया, ताकि प्रभु राम की उम्र और भी लंबी हो जाए।

पांच चेहरों वाला हनुमान – पंचमुखी रूप

जब राम और लक्ष्मण को मायावी अहिरावण उठा ले गया,

तो हनुमान जी ने पांच दिशाओं में जल रहे दीप एकसाथ बुझाने के लिए पंचमुखी रूप धारण किया।

तभी जाकर प्रभु की रक्षा हो सकी।

सूर्य नमस्कार – हनुमान जी की भेंट

हनुमान जी ने सूर्य देव से ज्ञान सीखा।

गुरु दक्षिणा में जब कुछ मांगा नहीं गया,

तो उन्होंने सूर्य की ओर देख कर योगिक मुद्राओं में वंदना की

यही आज सूर्य नमस्कार के नाम से जाना जाता है।

हनुमान

ब्रह्मचारी हनुमान के पुत्र – मकरध्वज!

यह सुनकर हर कोई चौंकता है – हनुमान जी का बेटा?

लेकिन कहानी दिलचस्प है  कि समुद्र पार करते समय उनके पसीने की बूंद एक मछली (मकर) के मुंह में चली गई,

जिससे जन्म हुआ – मकरध्वज का।

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