AVN News Desk New Delhi: लोकसभा चुनाव के पहले चरण की वोटिंग से ठीक तीन दिन पहले सुप्रीम कोर्ट में EVM-VVPAT से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई होगी. और सर्वोच्च न्यायालय यानी सुप्रीम कोर्ट इससे जुड़ी दो याचिकाओं पर एकसाथ सुनवाई करेगा. हम ऐसे में समझते हैं कि ये मामला क्या है? और चुनाव से पहले EVM-VVPAT का मुद्दा फिर से क्यों उठा है?
लोकसभा चुनाव से पहले एक बार फिर EVM के सभी वोटों की गिनती VVPAT की पर्चियों से कराने की मांग उठी है. यह मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गया है. वही इस मामले पर सुनवाई की अगली तारीख 16 अप्रैल तय की गई है.
मार्च 2023 में एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) ने 100% EVM वोटों और VVPAT की पर्चियों का मिलान करने की मांग को लेकर एक याचिका दायर की थी. वही सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की बेंच इस पर सुनवाई कर रही है.
वही इससे पहले एक्टिविस्ट अरुण कुमार अग्रवाल ने भी ऐसी ही मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. वही उनकी याचिका पर जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने चुनाव आयोग को नोटिस भी जारी किया था. लेकिन अब 16 अप्रैल को इन दोनों ही याचिकाओं पर जस्टिस खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की बेंच सुनवाई करेगी.
एडीआर (ADR) ने अपनी याचिका में कहा है कि स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के लिए EVM के वोटों और VVPAT की पर्चियों को क्रॉस-वेरिफाई भी किया जाना चाहिए. एडीआर (ADR) ने सुझाव दिया है कि ये प्रक्रिया जल्दी हो सके, इसके लिए VVPAT पर बारकोड का इस्तेमाल भी किया जा सकता है.
हालांकि, ये पहली बार ऐसा नहीं है जब EVM में दर्ज वोटों और VVPAT की पर्चियों के मिलान को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर हुई हो.
वही अभी क्या होता है?
2019 के लोकसभा चुनाव से पहले ही 21 विपक्षी पार्टियों ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की थी. इस याचिका में विपक्षी पार्टियों ने मांग की थी कि हर लोकसभा क्षेत्र के 50% EVM वोटों को VVPAT की पर्चियों से मिलान की जाए.
वही इस पर चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में जवाब दिया था कि अगर हर लोकसभा के 50% EVM वोटों को VVPAT से मिलान किया जाएगा, तो इससे नतीजे आने में कम से कम 5 दिन का समय लग जाएगा.
इसके बाद ही 8 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने इस पर फैसला सुनाया था. सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में कहा है कि हर लोकसभा की 5 EVM और VVPAT में डाले गए वोटों को मिलान करने का आदेश दिया था.
वही सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से पहले तक चुनाव आयोग एक EVM में दर्ज वोटों को VVPAT की पर्चियों से मिलान करता था.
बाद में फिर 21 विपक्षी पार्टियों ने सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार भी दाखिल की थी, जो कि खारिज हो गई थी. सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया था कि वो पुराने फैसले को नहीं बदलना चाहती है.
ये VVPAT क्या है?
भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BEL) और इलेक्ट्रॉनिक कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (ECIL) ने 2013 में VVPAT यानी वोटर वेरिफाएबल पेपर ऑडिट ट्रेल मशीनों को डिजाइन की थीं. ये दोनों ही वही सरकारी कंपनियां हैं, जो EVM यानी इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनें भी बनाती हैं.
आप को बता दें कि VVPAT मशीनों का सबसे पहले इस्तेमाल 2013 के नागालैंड विधानसभा चुनाव के दौरान हुआ था. फिर इसके बाद से 2014 के लोकसभा चुनाव में कुछ सीटों पर भी इस मशीन को लगाया गया था. वही बाद में 2017 के गोवा विधानसभा चुनाव में भी इनका इस्तेमाल किया गया था.
और 2019 के लोकसभा चुनाव में पहली बार VVPAT मशीनों का इस्तेमाल पूरे देशभर में किया गया था. उस चुनाव में 17.3 लाख से ज्यादा VVPAT मशीनों का इस्तेमाल भी किया गया था.
कैसे काम करती है ये VVPAT ?
वही मतदान यानी वोटिंग प्रक्रिया में पारदर्शिता लाने के लिए VVPAT को लाया गया था. ये सभी मशीन EVM से कनेक्ट रहती है.
जैसे ही वोटर यानी मतदाता वोट डालता है, वैसे ही एक पर्ची निकलती है. वही इस पर्ची में उस कैंडिडेट का नाम और चुनाव चिन्ह होता है, जिसे उसने वोट दिया होता है.
वही VVPAT की स्क्रीन पर ये पर्ची 7 सेकंड तक दिखाई देती है. ऐसा इसलिए होता है ताकि वोटर देख सके कि उसका वोट सही उम्मीदवार को गया है या नहीं. फिर 7 सेकंड बाद ये पर्ची VVPAT के ड्रॉप बॉक्स में गिर जाती है.
VVPAT कैसे आई इस चुनावी व्यवस्था में?
साल 2009 में भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने आरोप लगाया था कि कांग्रेस पार्टी ने 90 ऐसी सीटों पर जीत हासिल की है, जहां जीतना असंभव ही नहीं था.
इसके बाद ही उन्होंने दिल्ली हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की थी. इसमें उन्होंने अदालत से चुनाव आयोग को पेपर ट्रेल सिस्टम का इस्तेमाल करने का निर्देश जारी करने की मांग भी की थी. और 2012 में हाईकोर्ट ने उनकी इस याचिका को खारिज कर दिया था
सुब्रमण्यम स्वामी इसके बाद सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे. सुब्रमण्यम स्वामी की याचिका पर 2013 में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया. और सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों के लिए पेपर ट्रेल जरूरी है. वही अदालत ने VVPAT का मैकेनिज्म लाने का निर्देश भी दिया था.
फिर सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद चुनाव आयोग ने EVM और VVPAT को लेकर मैनुअल जारी किया था. फिर चुनाव आयोग ने ये भी कहा था कि एक EVM के वोटों और VVPAT की पर्चियों का मिलान किया जाएगा.
चुनाव आयोग का क्या है कहना?
मार्च 2023 में एडीआर ने 100% EVM वोटों और VVPAT पर्चियों का मिलान करने की मांग को लेकर याचिका दायर किया गया था. वही सितंबर 2023 में चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर के इसका विरोध भी किया था.
चुनाव आयोग ने याचिका का विरोध करते हुए कहा था कि यह ‘अस्पष्ट और निराधार’ आधार पर EVM और VVPAT सिस्टम पर संदेह पैदा करने की कोशिश की जा रही है.
वही इसके अलावा, चुनाव आयोग ने ये भी कहा था कि सभी VVPAT पर्चियों को मैनुअली गिनना न सिर्फ मेहनत का काम है, बल्कि इससे ‘इंसानी भूल’ भी होने का खतरा होगा.
चुनाव आयोग ने कहा था कि EVM पूरी तरह सुरक्षित है और चुनाव से पहले,चुनाव के दौरान और बाद में भी इससे छेड़छाड़ या हेराफेरी होने की कोई भी गुंजाइश नहीं है.
कितनी सही है VVPAT?
2019 के लोकसभा चुनाव में पहली बार 543 सीटों पर EVM के साथ-साथ VVPAT का भी इस्तेमाल भी किया गया था.
चुनाव आयोग ने 20,625 पोलिंग बूथ पर VVPAT की पर्चियों और EVM में दर्ज वोटों का मिलान भी किया गया था. और इसमें किसी भी तरह की कोई भी गड़बड़ी नहीं मिली थी.
वही चुनाव आयोग ने बताया था कि वोटों की गिनती पूरी होने के बाद पता चला कि VVPAT पर्ची और EVM के वोटों के मिलान में गड़बड़ी का एक भी मामला सामने नहीं आया था.
भारत (India) में कैसे आई EVM?
भारत में पहली बार चुनाव आयोग ने 1977 में सरकारी कंपनी इलेक्ट्रॉनिक्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (ECIL) को EVM बनाने का टास्क दिया था. 1979 में ECIL ने EVM का प्रोटोटाइप पेश किया गया था, जिसे 6 अगस्त 1980 को चुनाव आयोग ने राजनीतिक पार्टियों को दिखाया था.
मई 1982 में पहली बार केरल में विधानसभा चुनाव EVM से कराए गए थे. उस समय EVM से चुनाव कराने का कोई भी कानून नहीं था. 1989 में रिप्रेंजेंटेटिव्स ऑफ पीपुल्स एक्ट, 1951 में संशोधन किया गया और EVM से चुनाव कराने की बात जोड़ी गई थी.
हालांकि, कानून बनने के बाद भी कई सालों तक EVM का इस्तेमाल नहीं हो सका था. 1998 में मध्य प्रदेश, राजस्थान और दिल्ली की 25 विधानसभा सीटों पर EVM से चुनाव कराए गए थे. 1999 में 45 लोकसभा सीटों पर भी EVM से वोट डाले गए थे. फरवरी 2000 में हरियाणा के चुनावों में भी 45 सीटों पर EVM का इस्तेमाल हुआ था.
मई 2001 में पहली बार तमिलनाडु, केरल, पुडुचेरी और पश्चिम बंगाल की सभी विधानसभा सीटों पर EVM से वोट डाले गए थे. 2004 के लोकसभा चुनाव में सभी 543 सीटों पर EVM से वोट पड़े थे. तब से ही हर चुनाव में सभी सीटों पर EVM से ही वोट डाले जा रहे हैं.