बिहार की राजनीति में सिकंदरा विधानसभा का नाम आते ही एक चेहरा सबके सामने आ जाता है – उदय नारायण चौधरी। कभी बिहार विधानसभा के अध्यक्ष रह चुके और राजनीति के हर मोड़ को करीब से देखने वाले चौधरी जी आज भी जनता के बीच उसी ऊर्जा और लगन के साथ सक्रिय हैं।
राजद ने एक बार फिर 2025 के विधानसभा चुनाव में सिकंदरा सीट से उदय नारायण चौधरी पर भरोसा जताया है। यह भरोसा यूं ही नहीं है — बल्कि वर्षों की मेहनत, संघर्ष और जनता से गहरे जुड़ाव का नतीजा है।
सिकंदरा की जनता से जुड़ाव ही उनकी सबसे बड़ी ताकत
उदय नारायण चौधरी जमीन से जुड़े नेता हैं। उनका सारा राजनीतिक सफर जनता के बीच से ही शुरू हुआ। शिक्षा, रोजगार, सड़क और किसानों की समस्या — हर मुद्दे पर उन्होंने आवाज उठाई है। विधानसभा अध्यक्ष रहते हुए भी उन्होंने दल से ऊपर उठकर लोकतंत्र की मर्यादा को बनाए रखा।
सिकंदरा के गांवों में आज भी लोग कहते हैं — “उदय बाबू हमरा बेटा जइसन नेता हैं, ऊ हमरा दुख सुख में साथ देलन।” यह भावनात्मक जुड़ाव ही उनकी सबसे बड़ी पूंजी है।

विकास की सोच, संघर्ष की पहचान
सिकंदरा विधानसभा लंबे समय तक उपेक्षा का शिकार रही, लेकिन चौधरी जी ने यहां सड़क, बिजली और शिक्षा के क्षेत्र में बिना विधायक के कई काम कराए।
ग्रामीण इलाकों में सड़क निर्माण की बात
स्कूलों और कॉलेजों में शिक्षा का विस्तार की बात
दलितों और पिछड़ों की आवाज को सशक्त बनाना
हर वर्ग के सुख दुख के साथी हमेशा रहे है
इमोशनल कनेक्शन: जनता के बीच अपनापन
राजनीति में लोग कहते हैं कि “नेता चुनाव में दिखते हैं, लेकिन उदय नारायण चौधरी हर वक्त जनता के बीच रहते हैं।” यही कारण है कि जब भी कोई गरीब, मजदूर या छात्र किसी समस्या में होता है, तो सबसे पहले उदय बाबू का नाम लिया जाता है।
उनकी राजनीति सत्ता पाने की नहीं, बल्कि सिकंदरा को संवारने की राजनीति है।
2025 में फिर उम्मीदों की किरण
राजद ने उन्हें फिर से उम्मीदवार बनाया है क्योंकि पार्टी जानती है कि सिकंदरा की जनता का भरोसा आज भी चौधरी जी पर है। जनता को उम्मीद है कि अगर वे फिर से विधानसभा पहुंचते हैं तो अधूरे काम पूरे होंगे — युवाओं के रोजगार से लेकर गांव की तरक्की तक।
अंत में…
उदय नारायण चौधरी सिर्फ एक नेता नहीं, बल्कि सिकंदरा की पहचान हैं। उनका सफर संघर्षों से भरा जरूर रहा है, लेकिन उनके इरादे हमेशा साफ रहे हैं — “जनता की सेवा और क्षेत्र का विकास।”
2025 का चुनाव केवल एक राजनीतिक मुकाबला नहीं, बल्कि सिकंदरा के सम्मान और विकास की जंग है, और इस जंग में जनता फिर एक बार उदय नारायण चौधरी के साथ खड़ी दिख रही है।
