सुप्रीम कोर्ट सोमवार को तीन प्रमुख मुद्दों पर अपना अंतरिम फैसला सुनाएगा। इनमें एक मुद्दा यह है कि क्या वक्फ घोषित की गई संपत्तियों को अदालतें वक्फ की सूची से हटा (डिनोटिफाई करना) सकती हैं या नहीं। इसके साथ ही यह भी देखा जाएगा कि क्या कोई संपत्ति उपयोग के आधार पर वक्फ (वक्फ बाय यूजर) या किसी दस्तावेज के जरिए वक्फ (वक्फ बाय डीड) घोषित की जा सकती है। ये सभी मुद्दे वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान उठे थे।
सुप्रीम कोर्ट CJI बीआर गवई वाली अध्यक्षता अंतरिम आदेश सुरक्षित
चीफ जस्टिस (CJI) बीआर गवई की अध्यक्षता वाली बेंच ने 22 मई को इन तीनों पर दोनों ही पक्षों की दलीलों को सुना था, जिसके बाद अंतरिम आदेश सुरक्षित रख लिया गया था। वही शीर्ष कोर्ट की वेबसाइट पर 15 सितंबर की कार्य सूची के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट सोमवार को इस मामले पर अपना आदेश सुनाएगी। इन मुद्दों में एक बड़ा मुद्दा यह है कि अगर किसी जमीन को पहले अदालत ने वक्फ घोषित कर दिया हो, तो क्या सरकार बाद में उसे वक्फ की सूची से हटा सकती है या नहीं। यह मामला वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 से जुड़ा है।

वही,आदेश सुरक्षित रखने से पहले बेंच ने तीन दिनों तक लगातार सुनवाई की थी, जिसमें संशोधित वक्फ कानून (Waqf Law) को चुनौती देने वाले वकीलों और केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की दलीलें सुनी गईं थीं। सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने पहले ही इन तीन प्रमुख मुद्दों की पहचान कर ली थी, जिन पर याचिकाकर्ताओं ने रोक लगाने की मांग की थी और जिन पर कोर्ट अब अंतरिम आदेश देने जा रही है।
सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल करने वालों ने डिनोटिफिकेशन के मुद्दे के अलावा राज्य वक्फ बोर्ड और केंद्रीय वक्फ परिषद के ढांचे पर भी सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि इन संस्थाओं को सिर्फ मुसलमानों द्वारा ही चलाया जाना चाहिए, सिर्फ वे लोग छोड़कर जो अपने सरकारी पद की वजह से अपने-आप सदस्य बनते हैं। तीसरा मुद्दा एक ऐसे प्रावधान से जुड़ा है, जिसमें कहा गया है कि यदि जिला कलेक्टर यह जांच कर रहा हो कि कोई संपत्ति सरकारी जमीन है या नहीं, तो उस समय उस संपत्ति को वक्फ नहीं माना जाएगा।
सरकार ने वक्फ कानून का किया बचाव
केंद्र सरकार ने इस कानून का मजबूती से बचाव किया है। सरकार का कहना है कि वक्फ अपने आप में एक ‘धर्मनिरपेक्ष’ व्यवस्था है। इसलिए इसे रोका नहीं जा सकता, क्योंकि जो कानून संसद से पास होता है, उसे संविधान सम्मत माना जाता है। सरकार ने यह भी कहा कि भले ही वक्फ एक इस्लामी अवधारणा है, लेकिन यह इस्लाम का कोई अनिवार्य हिस्सा नहीं है।
याचिकाकर्ताओं का क्या कहना है?
याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए। उन्होंने कहा कि यह अधिनियम ऐतिहासिक कानूनों और सांविधानिक सिद्धांतों से पूरी तरह अलग है और इसका मकसद वक्फ की संपत्ति पर गैर-कानूनी तरीके से नियंत्रण करना है। 25 अप्रैल को केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 का बचाव करते हुए सुप्रीम कोर्ट (SC) में 1,332 पन्नों का प्रारंभिक हलफनामा दाखिल किया था। इस हलफनामे में अदालत से अनुरोध किया गया था कि वह इस कानून पर कोई ‘सामूहिक रोक’ न लगाए, क्योंकि यह कानून संसद ने पारित किया है और इसे संविधान-सम्मत माना जाना चाहिए।

पांच अप्रैल को राष्ट्रपति ने दी थी मंजूरी
केंद्र सरकार ने आठ अप्रैल को वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 को अधिसूचित किया था। इससे पहले पांच अप्रैल को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने इस अधिनियम को मंजूरी दी थी। लोकसभा और राज्यसभा ने क्रमशः तीन और चार अप्रैल को वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2025 को पारित किया था।