बिहार से दिल्ली: जब 2014 में नरेंद्र मोदी जी ने दिल्ली की सत्ता संभाली, तब देशभर के युवाओं को लगा कि अब उनके दिन फिरेंगे। “हर साल 2 करोड़ रोजगार”, “बिहार को विशेष पैकेज”, “स्टार्टअप इंडिया”, “मेक इन इंडिया”, “डिजिटल इंडिया”—इन नारों और योजनाओं ने युवाओं में जोश भर दिया। लेकिन 2025 में खड़े होकर जब बिहार के नौजवान अपने गांव और शहरों की सड़कों पर खड़े होते हैं, तो सवाल करते हैं—”रोजगार कहां है?”

बिहार का सच: आंकड़े जो चुभते हैं

बिहार की बेरोजगारी दर जून 2025 में: 16.8% (CMIE रिपोर्ट)

राष्ट्रीय औसत बेरोजगारी दर: 7.3%

बिहार से हर साल औसतन पलायन करने वाले मजदूरों की संख्या: 25-30 लाख

श्रम मंत्रालय के मुताबिक, बिहार देश का टॉप 3 राज्य है जहाँ से सबसे ज़्यादा लोग रोजगार की तलाश में बाहर जाते हैं।

उद्योग का योगदान बिहार की जीडीपी में: मात्र 18% (जबकि राष्ट्रीय औसत 29% है)

नीतीश-मोदी की जुगलबंदी और युवाओं का मोहभंग
नीतीश कुमार पिछले 18 सालों से कभी लालू विरोधी, कभी बीजेपी के साथ तो कभी उसके खिलाफ, राजनीति की ‘सी-सा’ पर सवार हैं। और अब पिछले 11 साल से मोदी जी की अगुवाई में केंद्र में वही बीजेपी है, जिसकी सरकार बिहार के युवाओं को कभी विशेष राज्य का दर्जा, तो कभी स्मार्ट सिटी, और कभी रोजगार मेला देने का वादा करती रही।

लेकिन जमीनी सच्चाई क्या है?

आईटी कंपनियां बिहार में नहीं आ रही।

फैक्ट्रियां अब भी यूपी, गुजरात, महाराष्ट्र चली जाती हैं।

शिक्षा के बाद नौकरी की उम्मीद अब सपना बन गई है।

वादों का साल-दर-साल लेखा-जोखा

साल वादा हकीकत
2014 हर साल 2 करोड़ नौकरी CMIE के अनुसार, हर साल औसतन सिर्फ़ 60 लाख नई नौकरियाँ ही आई
2015 बिहार को विशेष पैकेज (1.65 लाख करोड़) 2022 तक 40% भी खर्च नहीं हो पाया
2018 मेक इन इंडिया से बिहार में फैक्ट्री निवेशक सम्मेलन हुआ, लेकिन ज़मीन, बिजली और कानून की दिक्कत से कोई उद्योग नहीं आया
2020 आत्मनिर्भर भारत योजना कोरोना में लाखों बिहारी मजदूर पैदल लौटे, लेकिन राहत सिर्फ़ कागजों पर
2024 स्टार्टअप हब बिहार सिर्फ़ 87 स्टार्टअप पंजीकृत, सक्रिय मात्र 20%

पलायन: सिर्फ मजदूरी नहीं, पहचान का संकट

बिहार का नौजवान जब पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र या दिल्ली में मजदूरी करता है, तो उसे ‘बिहारी’ कह कर बुलाया जाता है—एक ताना बन चुका है ये शब्द। और इससे भी बड़ा दर्द ये है कि पढ़े-लिखे युवाओं को भी अब बाहर जाकर Zomato, Swiggy या Ola/Uber में काम करना पड़ रहा है।

बिहार

भावनात्मक पहलू: एक युवा की आपबीती

“मैंने B.Sc किया, फिर कंप्यूटर कोर्स किया, लेकिन कोई नौकरी नहीं मिली। मजबूरी में दिल्ली आकर डिलीवरी बॉय बना हूं। घर में मां-बाप को बोलता हूं कि कंपनी में काम करता हूं। शर्म आती है, पर क्या करूं?”
– राजेश यादव, सहरसा (बिहार)

सरकारें जवाबदेह कब होंगी?

आज सवाल ये नहीं कि लालू सही थे या नीतीश। सवाल ये भी नहीं कि मोदी जी के वादे झूठ थे या अधूरे। सवाल सीधा है—11 साल केंद्र में, लगभग 18 साल राज्य में सत्ता में रहकर भी अगर युवा को रोजगार नहीं दे पाए, तो आपकी नीति और नीयत दोनों पर सवाल उठेगा।

 बिहार का युवा अब और बहकावे में नहीं

बिहार का युवा अब सिर्फ भाषण नहीं, एक्शन चाहता है। “हर साल 2 करोड़ नौकरी” की जगह अब वो पूछता है—”मेरे शहर में फैक्ट्री कब खुलेगी?” “मुझे बाहर क्यों जाना पड़ता है?” और “क्यों हर साल रोजगार के नाम पर चुनावी जुमले मिलते हैं?”

अब वक्त है कि बिहार के विकास को सिर्फ चुनावी मंच का हिस्सा नहीं, जमीनी हकीकत बनाया जाए। वरना पलायन और बेरोजगारी बिहार की नियति बन जाएगी।

(यह लेख आम जनता की आवाज़ और सरकारी वादों के बीच की हकीकत को उजागर करता है। अगर आप भी इससे जुड़े हैं, अपनी कहानी हमें भेजें।)

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