बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले वोटर लिस्ट के विशेष गहन पुनरीक्षण के खिलाफ विपक्षी दलों ने पूरी तरह से मोर्चा खोल रखा है. वही विपक्षी महागठबंधन के नेता 9 जुलाई को सड़क पर भी उतरे, चक्का जाम किया. इस विरोध-प्रदर्शन में बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव, लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी, लेफ्ट के दीपांकर भट्टाचार्य जैसे शीर्ष नेता भी शामिल हुए. विपक्ष के सड़क पर शक्ति प्रदर्शन के बाद अब बारी लीगल बैटल की है.
वोटर लिस्ट के गहन पुनरीक्षण (In-depth review) की लड़ाई सड़क के बाद अब सर्वोच्च अदालत पहुंच चुकी है. वही सुप्रीम कोर्ट में आज गहन पुनरीक्षण को चुनौती देने वाली सभी याचिकाओं पर सुनवाई होनी है. एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की ओर से चुनाव आयोग के इस फैसले को चुनौती देते हुए 5 जुलाई को ही एक याचिका दायर कर दी थी.
एडीआर के बाद राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी), कांग्रेस समेत नौ राजनीतिक दलों ने भी सुप्रीम कोर्ट (SC) में चुनाव आयोग के फैसले को चुनौती दी है. वही सुप्रीम कोर्ट (Suprim Court ) ने इन याचिकाओं को सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया था. इन सभी याचिकाओं पर आज यानी 10 जुलाई को सुनवाई होनी है.
इन याचिकाओं में उठाए गए ये 5 बड़े सवाल
1- संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन
विपक्षी दलों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर के कहा है कि चुनाव आयोग का यह फैसला जनप्रतिनिधित्व कानून 1950 और रजिस्ट्रेशन ऑफ इलेक्टर्स रूल 1960 के नियम 21 ए के साथ ही संविधान के अनुच्छेद 14, 19, 21, 325 और 326 का भी साफ उल्लंघन है.
2- नागरिकता, जन्म और निवास पर मनमानी
एक्टिविस्ट अरशद अजमल और रूपेश कुमार की ओर से दायर याचिका में कहा गया है कि यह प्रक्रिया नागरिकता, जन्म और निवास से संबंधित असंगत दस्तावेजीकरण लागू करने की एक मनमानी है.
3- लोकतांत्रिक सिद्धांत कमजोर करने वाला फैसला
सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में चुनाव आयोग के वोटर वेरिफिकेशन के फैसले को लोकतांत्रिक सिद्धांतों को कमजोर करने वाला बताया गया है.
4- गरीबों पर असमान बोझ
याचिकाओं में यह भी कहा गया है कि चुनाव आयोग की शुरू की गई यह प्रक्रिया गरीब, प्रवासी के साथ ही महिलाओं और हाशिए पर पड़े अन्य समूहों पर असमान बोझ डालने वाली है.
5- गलत समय पर शुरू की प्रक्रिया
आरजेडी (RJD) की ओर से दायर की गई याचिका में इस प्रक्रिया की टाइमिंग को लेकर सवाल उठाए गए हैं. याचिकाकर्ता मनोज झा ने कहा है कि यह प्रक्रिया जल्दबाजी में गलत समय पर शुरू की गई है, जिसकी वजह से करोड़ों वोटर मताधिकार से वंचित हो जाएंगे. उन्होंने कहा है कि यह प्रक्रिया मॉनसून के समय शुरू की गई है, जब सूबे के कई जिले बाढ़ की चपेट में होते हैं और बड़ी आबादी विस्थापित होती है. ऐसे में आबादी के एक बड़े हिस्से के लिए इस प्रक्रिया में शामिल हो पाना असंभव हो जाता है.
बिहार में वोटर लिस्ट पर चुनाव आयोग ने क्या कहा?
विपक्ष के आरोप पर चुनाव आयोग (EC) ने कहा है कि जिन लोगों के नाम एक जनवरी 2003 को जारी की गई वोटर लिस्ट में हैं, उन्हें कोई भी दस्तावेज देने की जरूरत नहीं होगी. वह सभी लोग संविधान के अनुच्छेद 326 के तहत प्राथमिक तौर पर भारत (INDIA) का नागरिक माने जाएंगे. वही जिन लोगों के माता-पिता के नाम तब की मतदाता सूची में दर्ज है, उनको केवल अपनी जन्म तिथि और जन्म स्थान से संबंधित दस्तावेज देने होंगे.