बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस पार्टी अब एक्टिव हो गई है. वही बिहार में अपनी जमीन तलाशने की कवायद में जुटी कांग्रेस की नजर अब दलित वोट बैंक पर है. वही इसी रणनीति के तहत इस साल अब तक राहुल गांधी 2 बार पटना जा चुके हैं. फरवरी में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे की 2 सभाएं होनी हैं. इसके बाद मार्च में वायनाड से सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा का कार्यकम बनाया जा रहा है. कांग्रेस पार्टी की चुनावी टीमों ने बिहार में अपना काम करना भी शुरू कर दिया है.

मल्लिकार्जुन खरगे 22 फरवरी को बक्सर में जनसभा को संबोधित करेंगे. इसके एक हफ्ते के अंदर 28 फरवरी को पश्चिम चंपारण में भी मल्लिकार्जुन खरगे की सभा की तैयारियां की जा रही है. वही खरगे की सभाओं का नाम जय बापू, जय भीम, जय संविधान रखा गया है. इसके जरिए ही कांग्रेस बिहार की दलित आबादी को साधना चाहती है. वही इससे पहले लोक सभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी के दोनों कार्यक्रमों का फोकस दलित आबादी पर ही था. वही पहले संविधान सुरक्षा सम्मेलन में माउंटेन मैन दशरथ मांझी के बेटे भागीरथ मांझी शामिल हुए थे. इसके दो हफ्ते के भीतर ही राहुल गांधी ने दलित समाज से आने वाले स्वतंत्रता सेनानी और वरिष्ठ कांग्रेस नेता जगलाल चौधरी की जयंती के कार्यकम में भी भाग लिया था.

कांग्रेस-आरजेडी गठबंधन में कोई बड़ा दलित नेता नहीं

बिहार में पासवान समाज से लोजपा रामविलास के सुप्रीमो चिराग पासवान और जीतन राम मांझी, मांझी समाज के बड़े नेता हैं और दोनों फ़िलहाल एनडीए का हिस्सा हैं. वही इन दोनों जातियों के अलावा भी बिहार में दलित समाज का बड़ा वर्ग रहता है लेकिन कांग्रेस-आरजेडी गठबंधन में कोई भी बड़ा दलित नेता नहीं है. वही कांग्रेस बिहार में इसी समाज में अपनी पैठ बनाने की कोशिश जुटी हुई है.

लेकिन सवाल यह उठता है कि कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व लगातार बिहार में दौरे क्यों कर रहा है? कहीं कांग्रेस पार्टी बिहार में अकेले चुनाव लड़ने की तैयारी तो नहीं कर रही है?

‘कांग्रेस अपनी ताकत दिखाना चाहती है’

वही सूत्रों का कहना है कांग्रेस अकेले तो चुनाव नहीं लड़ेगी, लेकिन आरजेडी के साथ सीट बंटवारे से पहले कांग्रेस अपनी ताकत दिखाना चाहती है. वही पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को सत्तर सीटें मिली थीं, जिसमें से वो केवल उन्नीस सीटें ही जीत पाई थी. वही संदेश गया कि कांग्रेस के कारण ही तेजस्वी यादव सीएम नहीं बन पाए. ऐसे में इस बार संभावना जताई जा रही है कि आरजेडी कांग्रेस को चालीस से ज़्यादा सीटें देने को तैयार बिलकुल नहीं है. वही विपक्षी गठबंधन में सीपीआई एमएल ज़्यादा सीटों की मांग कर रही है. वही इसके अलावा इस बार वीआईपी पार्टी (VIP Party) के लिए भी कुछ सीटें छोड़नी होंगी. तो अब जाहिर है कांग्रेस को नुकसान उठाना पड़ सकता है.

यही वह वजह है कि कांग्रेस बिहार में मजबूरी का गठबंधन की बजाय गठबंधन में मजबूत पार्टनर की भूमिका निभाना चाहती है. वही अपने कोटे की सीटों की संख्या बरकरार रखने के अलावा कांग्रेस की कोशिश मजबूत सीटें भी हासिल करने की भी होगी. पिछली बार के चुनाव में कांग्रेस को पसंद की सीटें नहीं मिली थीं. वही कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि इस बार पसंद की सीटें मिली तो कुछ कम सीटों पर वो समझौता भी कर सकती है. यही वह वजह है कि कांग्रेस ने अभी से बिसात बिछाना शुरू कर दिया है. वही कांग्रेस अपनी ताकत दिखा कर आरजेडी पर दबाव बनाना चाहती है ताकि उसे सीट बंटवारे में पूरा सम्मान मिले.

राहुल गांधी के सबसे करीबी को बनाया बिहार कांग्रेस का नया प्रभारी

कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह लालू प्रसाद यादव के करीबी माने जाते हैं ऐसे में उनके सामने चुनौती यह है कि गठबंधन में कांग्रेस को जरूरत से ज्यादा कुर्बानी ना देनी पड़े. बहरहाल ऐसी नौबत आई तो कांग्रेस आरजेडी को आंखें भी दिखा सके इसकी तैयारी अभी से ही शुरू हो गई है. वही सब ठीक रहा तो अंत में कांग्रेस के दलित कार्ड का फायदा भी महा गठबंधन को ही मिलेगा.

बिहार
फाइल फोटो: लोक सभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी

पिछले हफ्ते युवा नेता कृष्णा अलावरु को बिहार कांग्रेस का नया प्रभारी बनाया गया जिन्हें राहुल गांधी का बेहद ही करीबी माना जाता है. वही बिहार में भविष्य की टीम तैयार करने के लिए भी कृष्णा को लगाया गया है. वही चुनाव नतीजे चाहे जो भी हों कांग्रेस नेतृत्व बिहार में कांग्रेस के युवा नेताओं को संदेश देना चाहता है कि भविष्य में उसे आरजेडी के साए से बाहर निकलना है.

देश दुनिया की खबरों की अपडेट के लिए AVN News पर बने रहिए।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *