साहब, “मैंने दहेज़ नहीं माँगा” ! Sir, “I did not ask for dowry” !..
साहब, मैं थाने नहीं आउँगा, इस घर से कहीं नहीं जाऊँगा, माना कि पत्नी से थोडा मनमुटाव था, सोच में अन्तर और विचारों में खिंचाव था, लेकिन यकीन मानिए साहब, “मैंने दहेज़ नहीं माँगा”..
मैं मानता हूँ, कानून आज पत्नियों के पास है, महिलाओं का समाज में हो रहा विकास है। लेकिन बस एक चाहत थी ये मेरी माँ बाप का सम्मान हो, उन्हें भी समझे अपना माता -पिता, न कभी उनका अपमान हो। पर, अब क्या फायदा.., जब टूट ही गई हर रिश्ते की डोर, यकीन मानिए साहब, “मैंने दहेज़ नहीं माँगा”..
परिवार के साथ रहना इसे पसंन्द नहीं, कहती यहाँ कोई रस, कोई आनन्द नही, मुझे ले चलो इस घर से कई दूर, किसी ओर आशियाने में, कुछ नहीं रखा माँ बाप पर प्यार बरसाने में, छोड़ दो, हाँ छोड़ दो.. इस माँ बाप के प्यार को, नहीं मांने तो याद रखोगे मेरी मार को..,
बस बूढ़े माता पिता का ही मोह, न छोड़ पाया मैं अभागा, यकीन मानिए साहब, “मैंने दहेज़ नहीं माँगा”
फिर शुरू हुआ वत विवाद, माँ बाप से अलग होने का, शायद समय आ गया था, सुख- चैन और सुकून खोने का, एक रोज साफ़ मैंने पत्नी को कह दिया, ना रहुगा माँ बाप के बिना ये उसके दिमाग में भर दिया। बस मुझसे लड़कर पत्नी मायके जा पहुंची, 2 रोज बाद ही पत्नी के घर से मुझे धमकी आ पहुंची, माँ बाप से अलग हो जाओ, नहीं तो सबक सीखा देगे, क्या होता है “दहेज़ कानून” तुझे इसका असर दिखा देगें। परिणाम जानते हुए भी हर धमकी को गले में टांगा, यकींन माँनिये साहब, मेरा “मैंने दहेज़ नहीं माँगा”
जो कहा था पत्नी ने, आखिरकार वो कर दिखाया,
झगड़ा किसी और बात पर था, पर उसने दहेज़ का नाटक रचाया।
एक रोज पुलिस थाने से मुझे फ़ोन आया,
कहा.., क्यों बे, दहेज़ मांगता है पत्नी से, ये कह के मुझे धमकाया।
माता पिता, भाई बहिन, जीजा सभी के रिपोर्ट में नाम दर्ज कराये थे,
घर में सब हैरान और परेशान थे,
अब अकेले बैठ सोचता हूँ मैं, वह क्यों मेरी ज़िन्दगी में आई थी?, मेरी ही मत मारी थी, मैं अभगा ही तो उसे प्रेम करके लाया था।
मैंने भी तो उसके प्रति हर ज़िम्मेदारी निभाई थी।
आखिरकार तमगा मिला हमे “दहेज़ लोभी” होने का,
कोई फायदा न हुआ मीठे मीठे सपने सजोने का।
बुलाने पर, थाने आया हूँ, छूप कर कहीं नहीं भागा,
लेकिन यकींन मानिए साहब, “मैंने दहेज़ नहीं माँगा” दहेज़ नहीं माँगा हैं, “हाँ” मैंने दहेज़ नहीं माँगा।
निष्कर्ष: यह दर्द उन सभी लोगों का है जो “दहेज़” के झूठे आरोपों का सामना कर रहे हैं। अगर दहेज़ लेना अपराध है, तो दहेज़ देना भी उतना ही अपराध होना चाहिए। कानून सभी के लिए समान होना चाहिए, और लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं होना चाहिए। कानून को दोनों पक्षों की दलीलें सुननी चाहिए और निर्णय निष्पक्ष रूप से करना चाहिए, ताकि किसी भी पक्ष के साथ भेदभाव न हो। पिछले कुछ सालों में ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जहां दहेज़ मांगने के झूठे आरोपों की वजह से कई परिवार टूट गए। कई लोग इतने दुखी हो गए कि उन्होंने अपनी ज़िंदगी समाप्त करने का विकल्प चुनना पड़ता है। इसलिए हमारे कानूनी प्रणाली में सुधार और दहेज़ के झूठे आरोपों से बचाव के लिए सख्त कदम उठाए जाने चाहिए। साथ ही, समाज में इस समस्या को लेकर जागरूकता फैलाने की भी ज़रूरत है ताकि लोग सही तरीके से अपनी बात रख सकें और न्याय मिल सके।
ये भी पढ़ें : आया पीरियड्स, हुआ शक और ले ली जान ..
Note:
Disclaimer: यह कविता, आर्टिकल, व लेख केवल सूचना के उद्देश्यों के लिए है। यह कविता, आर्टिकल व लेख सोशल मीडिया के स्रोत से लिया गया है, प्रकाशक किसी भी त्रुटि या चूक के लिए जिम्मेदार नहीं हैं।
|| मुझे उम्मीद है की आपको यह कविता, आर्टिकल, लेख “! साहब, “मैंने दहेज़ नहीं माँगा” !” जरुर पसंद आई होगी। हमारी हमेशा से यही कोशिश रहती है की रीडर को तकनीक (Teck Tips, Tech Knowledge) के विषय में पूरी सही जानकारी प्रदान की जाये।
!!अगर आपको आर्टिकल अच्छा लगा हो तो इसे आपने सोशल मीडिया पर जरूर शेयर करें। इस आलेख को पढ़ने के लिए धन्यवाद। avnnews.in में दोबारा विजिट करते रहें…..!!