भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) का इतिहास

1. संगठन की स्थापना: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (आईएसआरओ) की स्थापना 15 अगस्त 1969 को हुई थी। यह महत्वपूर्ण दिन भारत के विज्ञानिक और तकनीकी क्षेत्र में नए उद्यमों की शुरुआत थी। भारतीय सरकार ने इसरो की स्थापना के साथ ही अंतरिक्ष अनुसंधान में प्रगति करने का संकल्प लिया। इसरो के वर्तमान अध्यक्ष डॉ. एस. सोमनाथ हैं।

2. महत्वपूर्ण मिशन: इसरो ने अपने पहले मिशन ‘आर्यभट्ट’ के साथ संघर्ष और सफलता की शुरुआत की। 19 अप्रैल 1975 को इस मिशन को प्रक्षिप्त किया गया और यह भारत का पहला उपग्रह बन गया। इसके बाद इसरो ने ‘ भास्कर ‘ और ‘रोहिणी’ जैसे उपग्रह प्रक्षिप्त किए, जिनसे भारत ने अपनी तकनीकी प्रतिष्ठा को दुनिया में साबित किया।

3. मंगलयान:  5 नवंबर 2013 को भारत ने अपने द्वारा बनाए गए उपग्रह ‘मंगलयान’ को सफलतापूर्वक मंगल ग्रह की कक्षा में पहुँचाया। यह भारत का पहला मंगल अनुसंधान मिशन था, और इससे भारत ने अंतरिक्ष यातायात के क्षेत्र में अपनी महत्वपूर्ण पहचान बनाई।

4. चंद्रयान 1 मिशन: इसरो के चंद्रयान मिशनों ने चंद्रमा के रहस्यमयी दुनिया को खोजने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। ‘चंद्रयान-1’ को 22 अक्टूबर 2008 को सफलतापूर्वक प्रक्षिप्त किया गया था, जिससे चंद्रमा की कक्षा में पहुँचने की सफलता मिली।

चंद्रयान 1 के उद्देश्य: – चंद्रमा की सतह को उच्च-रिज़ॉल्यूशन रिमोट सेंसिंग से अन्वेषित करना।
– चंद्रमा के त्रि-आयामी एटलस का निकट और दूर से विस्तार करना।
– संपूर्ण चंद्र सतह के रासायनिक और खनिज अध्ययन से मानचित्रण तैयार करना।
– आने वाले सॉफ्ट-लैंडिंग मिशनों के लिए चंद्र सतह पर उप-उपग्रह के प्रभाव की जांच करना।

“चंद्रयान 2 की मुख्य बातें”: -इसरो की रिपोर्ट है कि चंद्रयान 2 ने चंद्रयान 1 के निष्कर्षों को बढ़ावा दिया है।
-मिशन ने चंद्रमा के “दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र” को लक्षित किया, जो पूरी तरह से गुमनाम था।
-मिशन ने चंद्र संरचना में विविधताओं का अध्ययन करने और चंद्रमा की उत्पत्ति और विकास का पता लगाने के लिए चंद्र सतह के व्यापक   मानचित्रण पर ध्यान केंद्रित किया।
– चंद्रयान 2 को चुनौतीपूर्ण मिशन माना गया क्योंकि चंद्रमा का दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र पहले किसी भी अंतरिक्ष एजेंसी द्वारा पूरी तरह से अज्ञात था।
– चंद्रयान-2 के घटक: S200 ठोस रॉकेट बूस्टर, L110 तरल अवस्था, C25 ऊपरी चरण के रूप में शामिल थे।
– मिशन में चंद्रयान, विक्रम लैंडर (डॉ. विक्रम साराभाई के नाम पर) और चंद्र रोवर, प्रज्ञान, शामिल थे।
– इसरो ने ऑर्बिटर, लैंडर और रोवर से मिलकर 14 वैज्ञानिक पेलोड चंद्रमा पर भेजे।
– चंद्रयान-2 का ऑर्बिटर करीब एक साल तक अपना मिशन जारी रखेगा।
– इसरो का यह मिशन भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के तहत आयोजित हुआ था और भारत को अंतरिक्ष विज्ञान में महत्वपूर्ण प्रगति दिलाने का   एक महत्वपूर्ण कदम साबित हुआ।”

“चंद्रयान 3 की मुख्य बातें” :चांद पर खोजबीन करने के लिए द्वारा तैयार किया गया तीसरा चंद्र मिशन है। इसमें चंद्रयान-2 के समान एक लैंडर और एक रोवर होगा, लेकिन इसमें ऑर्बिटर नहीं होगा। ये मिशन चंद्रयान-2 की अगली कड़ी है, क्योंकि पिछला मिशन सफलता पूर्वक चांद की कक्षा में प्रवेश करने के बाद अंतिम समय में मार्गदर्शन सॉफ्टवेयर में गड़बड़ी के कारण सॉफ्ट लैंडिंग के प्रयास में विफल हो गया था, सॉफ्ट लैन्डिंग का पुनः सफल प्रयास करने हेतु इस नए चंद्र मिशन को प्रस्तावित किया गया था। चंद्रयान-3 का लॉन्च सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र शार, श्रीहरिकोटा से 14 जुलाई, 2023 शुक्रवार को भारतीय समय अनुसार दोपहर 2:35 बजे निर्धारित किया गया है।

“चंद्रयान-3 मिशन उद्देश्य” : जिससे लैंडर की चंद्रमा की सतह पर सुरक्षित और सॉफ्ट लैंडिंग हो सके।
चंद्रमा पर रोवर की पैंतरेबाज़ी क्षमताओं का अवलोकन और प्रदर्शन।
चंद्रमा की संरचना को बेहतर ढंग से समझने और इसके विज्ञान को व्यवहार में लाने के लिए चंद्रमा की सतह पर उपलब्ध केमिकल और प्राकृतिक तत्वों, मिट्टी, पानी आदि पर वैज्ञानिक प्रयोग करना।

 

5. गगनयान मिशन: भारतीय अंतरिक्ष यातायात के क्षेत्र में एक नया मानव अंतरिक्ष यातायात मिशन ‘गगनयान’ का आयोजन किया गया है। इसका लक्ष्य मानवों को सफलतापूर्वक अंतरिक्ष में भेजकर उनका अंतरिक्ष में अध्ययन करना है। इसरो का गगनयान मिशन पर काफी समय से काम चल रहा है। गगनयान का लक्ष्य पृथ्वी से 400 किलोमीटर ऊपर अंतरिक्ष में पहुंचना है। यह भारतीय अंतरिक्ष संगठन (ISRO) द्वारा 2024 तक 5 से लेकर 7 दिनोतीन सदस्यीय दल को अंतरिक्ष में भेजने का एक मिशन है। गगनयान मिशन के लिए भारतीय वायुसेना को अंतरिक्ष यात्री चुनने का काम दिया गया गया था। चंद्रयान-3 और आदित्य एल-1 मिशन के बाद इसरो का यह गगनयान मिशन भारत के लिए खास होगा।

6. तकनीकी योगदान: इसरो ने विभिन्न उपग्रह प्रक्षेपण वाहनों के विकास में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है। ‘पोलर सेटलाइट लॉन्च वेहिकल (PSLV)’ और ‘ग्लोबल सेटलाइट लॉन्च वेहिकल (GSLV)’ जैसे वाहन उपग्रहों को सफलतापूर्वक अंतरिक्ष में प्रक्षिप्त करने में सहायक होते हैं।

7. भविष्य की दिशा: आईएसआरओ का भविष्य की दिशा में बेहद उम्मीदवार है। ‘गगनयान’ मिशन के जरिए भारत पहली बार मानवों को अंतरिक्ष में भेजकर उनका अध्ययन करने की योजना है, जिससे देश अंतरिक्ष क्षेत्र में नए मील के पत्थर रखेगा।

समापन:

इसरो के योगदान से भारत ने अंतरिक्ष यातायात और विज्ञान में बड़ी प्रगति की है। उनकी मुख्य उपलब्धियाँ विश्वभर में दिख रही हैं, इससे स्पष्ट होता है कि भारत अंतरिक्ष में अपनी पहचान बना रहा है और विज्ञान और तकनीक में विकास हो रहा है। इसरो ने सिर्फ अंतरिक्ष अनुसंधान में ही नहीं, बल्कि भारतीय विज्ञान और तकनीक को नए दिशानिर्देश दिए हैं, जिससे देश की गरिमा और सामर्थ्य में वृद्धि हुई है।

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