उत्तराखंड में हुए उपचुनाव में बीजेपी को करारी हार का मुंह देखना पड़ा है। दोनों ही सीटें पार्टी के हाथ से निकल गई है। मंगलौर की सीट पर फिर भी भारतीय जनता पार्टी का कभी कब्जा नहीं रहा, लेकिन बदरीनाथ विधान सभा सीट कई मायनों में खास थी। चुनाव प्रचार में भी पूरी ताकत झोंकने के बावजूद भी भाजपा को बदरीनाथ सीट से हाथ धोना पड़ा है।
बदरीनाथ और मंगलौर का चुनावी समर बीजेपी के तेज़ी से आगे बढ़े विजय रथ की कड़ी परीक्षा था, जिसमें भाजपा बिलकुल भी सफल नहीं हो पाई। वही मंगलौर सीट पर बीजेपी ने करतार सिंह भड़ाना को मैदान में उतारा था, लेकिन भड़ाना कांग्रेस प्रत्याशी काजी मोहम्मद निजामुद्दीन से मात खा गए। और वहीं बदरीनाथ में बीजेपी ने राजेंद्र भंडारी पर भरोसा जताया था, लेकिन कांग्रेस के लखपत सिंह बुटोला से राजेंद्र भंडारी मात खा गए।
हार के तीन बड़े मुख्य कारण
बदरीनाथ विधान सभा चुनाव जनता पर थोपा गया
मंगलौर सीट पर बसपा विधायक के निधन के बाद इस सीट पर उपचुनाव कराया जाना था, लेकिन बदरीनाथ विधान सभा में परिस्थिति जबरन पैदा की गई। लोकसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस विधायक राजेंद्र भंडारी बीजेपी में शामिल हो गए थे। राजेंद्र भंडारी खुद तो चले गए, लेकिन कार्यकर्ताओं में बहुत रोष रहा और इसे कांग्रेस पार्टी ने मुद्दा बनाया। नतीजन यह रहा कि बीजेपी की हार तो कांग्रेस पार्टी की कामयाबी का राज बन गया।
नाटकीय तरीके से कांग्रेस विधायक का बीजेपी में शामिल होना
नाटकीय तरीके से जिस तरह कांग्रेस विधायक का भाजपा में शामिल होना जनता को रास नहीं आया। राजेंद्र भंडारी तो बीजेपी में चले गए लेकिन समर्थक कांग्रेस में ही रह गए। वहीं राजेंद्र भंडारी के बीजेपी में आने से बदरीनाथ विधान सभा के भाजपा नेता और कार्यकर्ता बिलकुल भी खुश नहीं थे। उन्होंने खुले तौर पर तो इसका विरोध नहीं किया, लेकिन नतीजे भी संकेत दे रहे हैं। बदरीनाथ और मंगलौर सीट पर बीजेपी की हार ने कांग्रेस पार्टी के लिए एक संजीवनी का काम किया है। लोकसभा चुनाव से पहले गढ़वाल मंडल की यही एकमात्र सीट थी, जो कांग्रेस के पास थी। लेकिन, कांग्रेस विधायक राजेन्द्र भंडारी बीजेपी में शामिल हो गए। यह सब इतने नाटकीय तरीके से हुए की जो भंडारी 24 घंटे पहले जिन कपड़ों में बीजेपी के विरोध में आक्रामक प्रचार कर रहे थे, वही राजेन्द्र भंडारी उन्हीं कपड़ों में दिल्ली में बीजेपी यानी भारतीय जनता पार्टी की सदस्यता ले लेते हैं। मगर मजेदार बात यह है कि भाजपा संगठन को इसकी हवा भी नहीं लगती है। शायद इस बात को न तो बीजेपी के कार्यकर्ता ही पचा पाए और न ही बदरीनाथ विधान सभा की जनता।
मंगलौर सीट: जातीय समीकरण नहीं भेद पाई बीजेपी
मंगलौर विधानसभा सीट पर कांग्रेस पार्टी को जातीय समीकरणों का फायदा मिला। मंगलौर सीट एक ऐसी सीट है जो बीजेपी कभी नहीं जीत पाई है। अल्पसंख्यक बहुल यह सीट एक बार हाजी तो एक बार काजी के पास ही रही है। हालांकि बीजेपी ने करतार सिंह भड़ाना को टिकट देकर कुछ हद तक गुर्जर वोट को अपने पक्ष में किया। अल्पसंख्यक वोट बसपा ओर कांग्रेस में बंटा जरूर, लेकिन इस बार काजी ने यह सीट जीत ली
उत्तराखंड में कांग्रेस की जीत की वजह
बदरीनाथ और मंगलौर विधानसभा सीट पर उपचुनाव में कांग्रेस पार्टी ने अपनों पर विश्वास जताया था। पार्टी ने दोनों ही सीटों पर उन चेहरों को मैदान में उतारा, जो कांग्रेस पार्टी से लंबे समय से जुड़े हुए हैं। वही दिलचस्प बात यह है कि प्रदेश में सत्तारूढ़ बीजेपी ने जिन चेहरों पर दांव लगाया था, वो दोनों ही उसकी सांगठनिक नर्सरी से बिलकुल नहीं थे। और बीजेपी की हार का मुख्य वजह अतिउत्साही होना भी है.