Haryana Result 2024: हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीजों ने बीजेपी के लिए हैट्रिक लगा दिया गया है। कांग्रेस पार्टी ने इन नतीजों को सही नहीं बताया है। पार्टी नेताओं ने इसे लोकतंत्र नहीं, बल्कि तंत्र की जीत करार दिया है। वही राजनीतिक जानकारों के मुताबिक, अब तो एग्जिट पोल पर भी खूब सवाल उठने लगे हैं।

हरियाणा विधानसभा चुनाव प्रचार में दो ही बातें समझ आती और यहां हुआ कांग्रेस से चूक

वही पूरे चुनाव प्रचार को देखें तो दो ही बातें समझ आती हैं। पहला, अपनी जीत को लेकर कांग्रेस पार्टी ‘आंधी-तूफान’ के चक्कर में फंस गई थी। खुद राहुल गांधी ने भी अपनी जनसभा में कह दिया कि प्रदेश में तो कांग्रेस की आंधी चल रही है। कांग्रेस पार्टी, प्रचंड जीत हासिल करने जा रही है। लिहाजा ऊपरी तौर पर ये बात कुछ गलत भी नहीं थी। कांग्रेस पार्टी की जनसभाओं में भीड़ तो खूब जुट रही थी। वोटरों के बीच भूपेंद्र सिंह हुड्डा और उनके पुत्र दीपेंद्र हुड्डा घूम ही रहे थे। अगर प्रदेश स्तर के नेताओं की बात करें तो मीडिया भी इन्हें ही तव्वजो दे रहा था। हर जगह इन्हीं दोनों का जलवा देखने को मिला था।

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दूसरी तरफ बीजेपी, जिसे लेकर यह प्रचार किया गया कि उसके नेताओं का जबरदस्त विरोध हो रहा है। कई गांवों में किसानों ने तो उन्हें घुसने ही नहीं दिया। इन सबके बीच बीजेपी अपने एक ही ‘रामबाण’ पर चलती रही। पार्टी ने गैर जाट वोटरों पर अपना फोकस रखा। प्रदेश की आबादी में करीब 75 फीसदी हिस्सेदारी वाला यह वर्ग, तकरीबन साइलेंट ही रहा। बीजेपी ने चुनाव को ‘हुड्डा बनाम बीजेपी’ बना दिया। बीजेपी नेताओं ने कहा, अगर कांग्रेस आती है तो हुड्डा ही सीएम होंगे। किसी दूसरे व्यक्ति का नंबर नहीं आएगा। इस प्रचार का असर कल मंगलवार को वोटों की गिनती में देखने को मिला।

प्रदेश की राजनीति को करीब से समझने वाले वरिष्ठ पत्रकार कहते हैं, ये चुनाव पूरी तरह से जातिवाद पर चला गया था। कांग्रेस को उम्मीद थी कि उसे जाट एवं दलित वोटरों का पूर्ण समर्थन मिलेगा। इस भरोसे के पीछे खास वजह लोकसभा चुनाव ही था। प्रदेश की दस लोकसभा सीटों में से कांग्रेस ने पांच सीटें जीती थी। कांग्रेस पार्टी को जाट समुदाय, जिसकी आबादी करीब 25 फीसदी है और दलित समुदाय, जिसकी संख्या लगभग 20 प्रतिशत है, का समर्थन मिला था। कांग्रेस पार्टी को भरोसा था कि उसे विधानसभा चुनाव में इन वर्गों का भी समर्थन मिलेगा। अब विधानसभा वोटों की गिनती में ऐसा कुछ भी दिखाई नहीं पड़ा।

बीजेपी ने लोकसभा चुनाव के बाद अपनी रणनीति बदली। बीजेपी नेताओं को मालूम था कि उसे जाटों के वोट नहीं मिलेंगे। किसान, पहलवान और जवान, कांग्रेस ने इस समीकरण को वोटों में बदलने का भरसक खूब प्रयास किया। मीडिया में इस प्रयास को खूब कामयाबी भी मिलती हुई दिखाई दी। दूसरी तरफ बीजेपी ने गैर जाट वोटों पर फोकस किया। हालांकि बीजेपी प्रवक्ता केके शर्मा बताते हैं, देखिये प्रदेश में हमें सभी जातियों का समर्थन मिला। जाटों के वोट भी मिले हैं तो दलितों ने भी बीजेपी में विश्वास जताया है।

राजनीतिक जानकार बताते हैं, इस चुनाव को लेकर जो एग्जिट पोल आया था, वह ओपेनियन पोल था। इसे सभी मीडिया भी ठीक तरह से प्रस्तुत नहीं कर सका। कांग्रेस, अपनी जीत के प्रति आश्वस्त थी। प्रदेश में 2005 से लेकर अभी तक जाटों ने कांग्रेस पार्टी का पूरा साथ दिया है। कांग्रेस ने भी इस वर्ग को प्रमुखता के साथ अपने से जोड़े रखा। और नतीजा, दूसरे कई वर्ग, पार्टी से दूर होते चले गए। कांग्रेस पार्टी ने इस बार जाट समुदाय के 35 लोगों को टिकट दिया था। ओबीसी के 20 , 17 दलित, 4 ब्राह्मण, 5 मुस्लिम, 6 पंजाबी और वैश्य समुदाय के दो लोगों को टिकट दिया गया था। पार्टी ने राजपूत समुदाय से एक प्रत्याशी चुनाव में उतारा था। बीजेपी ने जाट समुदाय के 16 लोगों को टिकट दिया। ओबीसी के 24 व 11 ब्राह्मण उम्मीदवारों पर भरोसा जताया। दो मुस्लिम व पंजाबी समुदाय के दस प्रत्याशी मैदान में उतारे थे। वैश्य समुदाय के 6 और राजपूत समुदाय के तीन लोगों को टिकट दिया गया था। अब चुनावी नतीजों में बीजेपी की गैर-जाट सोशल इंजीनियरिंग का यह फॉर्मूला कारगर होता हुआ दिख रहा है। वही सोशल इंजीनियरिंग के इसी फार्मूले पर बीजेपी ने 2014 और 2019 का विधानसभा चुनाव जीता था।

वही राजनीतिक जानकार ओम प्रकाश तंवर बताते हैं, बीजेपी ने जाटों सहित सभी जातियों को टिकट दिया था। कांग्रेस ने जाट समुदाय पर ज्यादा फोकस किया। बीजेपी ने चुनाव में कुमारी शैलजा और दलित का मुद्दा खूब भुनाया। इससे जाट बनाम गैर-जाट का नैरेटिव और ज्यादा सेट हो गया था। पूर्व सीएम ने कुछ सोच विचार कर ही शैलजा को लेकर यह बयान दिया था कि राजनीति में कुछ भी संभव है। उनसे पूछा गया था कि क्या शैलजा, बीजेपी ज्वाइन कर सकती हैं। वोटिंग से एक सप्ताह पहले बीजेपी ने प्रदेश में यह नेरेटिव सैट कर दिया कि ये चुनाव हुड्डा बनाम बीजेपी का है। कांग्रेस का मतलब हुड्डा है। अगर कांग्रेस आती है तो हुड्डा ही सीएम बनेंगे। यह बात गैर जाटों को एक दूसरा ही संदेश दे गई थी। कांग्रेस पार्टी ने जाटों को टिकट भी खूब बांटे थे। बीजेपी ने अहीरवाल में यह संदेश दे दिया कि जब पंजाबी और सैनी समुदाय से सीएम बन सकता है तो आने वाले समय में यादव बिरादरी से भी किसी नेता को मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है। अगर कांग्रेस सत्ता में आती है तो केवल हुड्डा या उनका बेटा ही सीएम बनेगा।

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बीजेपी ने दलितों को भी आपस में बांटने का प्रयास किया। चमार और गैर चमार का मुद्दे को आगे बढ़ा दिया। इनके आरक्षण को वर्गीकृत करने की बात कही। हरियाणा में एससी ‘ए कैटेगरी’ में आते हैं। इस समुदाय में चमार ज्यादा हैं। बीजेपी ने वादा किया है कि हम इसमें वर्गीकरण कर देंगे।

बीजेपी ने दलितों को भी आपस में बांटने का प्रयास किया। चमार और गैर चमार का मुद्दे को और आगे बढ़ा दिया। इनके आरक्षण को वर्गीकृत करने की बात कही। हरियाणा में एससी ‘ए कैटेगरी’ में आते हैं। इस समुदाय में चमार ज्यादा हैं। बीजेपी ने वादा किया है कि हम इसमें वर्गीकरण कर देंगे।

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इससे गैर चमार जाति के वोट भी प्रमुखता से बीजेपी को मिल गए। इसके अलावा कुमारी शैलजा के मामले को लेकर चमार नाराज हो गए। इन दोनों ही बातों का फायदा बीजेपी को मिल गया। ओबीसी में शामिल यादव भी बीजेपी के साथ आ गए। सैनी और गुर्जर भी मिल गए। पंजाबी, ब्राह्मण, ठाकुर व बनियां समुदाय का समर्थन पहले से ही बीजेपी के साथ रहा है। प्रदेश में किसान, जवान और पहलवान का मुद्दा, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मीडिया में छाया रहा, लेकिन यहां पर भी एक तर्क दिया गया था।

राजनीतिक जानकार के मुताबिक, ये मुद्दे भी एक जाति विशेष के आसपास ही घूमते हुए दिखाई पड़े। बीजेपी ने इन्हें एक जाति से ही जोड़ दिया। चुनाव प्रचार में कांग्रेस ने इन्हें जबरदस्त तरीके से आगे बढ़ाया गया। कांग्रेस को उम्मीद थी कि वोटिंग के दौरान ये मुद्दे दूसरे समुदायों के साथ रंग दिखाएंगे। इन मुद्दों ने रंग तो दिखाया, मगर ये एक ही जाति से बंधकर रह गए। इनके आंदोलन या प्रदर्शन को दूसरे समुदायों का समर्थन नहीं मिल सका। बीजेपी ने इस बात को बखूबी समझा। चुनाव के लिए एक विशेष जाति समीकरण तैयार कर दिया गया। कांग्रेस इस बात को समझ ही नहीं सकी। उसने दूसरी जातियों को अपनी तरफ आकर्षित करने का ज्यादा प्रयास नहीं किया। इतना ही नहीं, चुनावी रैलियों में लोगों का जोश देखकर कांग्रेस को यह भ्रम भी हो गया कि प्रदेश की छत्तीस बिरादरी हमारे साथ है। तंवर के अनुसार, कांग्रेस ने यह समझाने का प्रयास नहीं किया कि उनकी रैलियों में जो भीड़ आ रही है, कहीं वो एक या दो समुदायों की तो नहीं है। इस वजह कांग्रेस अपनी जीती बाजी हार गई.

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