दिल्ली के दिल में बसा सदर बाज़ार, कभी व्यापारियों की शान और दिल्ली के सबसे व्यस्त थोक मार्केट्स में गिना जाता था। लेकिन आज वही सदर बाज़ार अवैध पटरी दुकानों, गंदगी, ट्रैफिक जाम और प्रशासन की लापरवाही की तस्वीर बन चुका है।
दिल्ली सदर बाज़ार में पटरी पर कब्ज़ा, व्यापार चौपट
सदर बाजार में वर्षों से व्यापार कर रहे छोटे-बड़े दुकानदारों की मानें तो आज हालत इतनी बिगड़ चुकी है कि ग्राहक उनकी दुकानों तक पहुंच ही नहीं पाते। फुटपाथों पर अवैध दुकानें, रेहड़ियां और ठेले वालों ने रास्ता ही बंद कर दिया है। जिन रास्तों से कभी ग्राहक बेफिक्र होकर खरीदारी करते थे, आज वहां कदम रखने तक की जगह नहीं बची।
“हमने जीवन भर की पूंजी लगाकर दुकान खोली, लेकिन आज हमारी दुकानों के सामने ही पटरी दुकानदारों ने कब्ज़ा जमा लिया है। ग्राहक आते हैं और वापस चले जाते हैं।“
— रमेश गुप्ता, 30 साल से सदर बाजार में दुकानदार
गंदगी और ट्रैफिक जाम की जड़
फुटपाथ पर लगने वाली अस्थायी दुकानों से न सिर्फ भीड़भाड़ होती है बल्कि कचरे का ढेर भी बढ़ता जा रहा है। प्लास्टिक बैग, खाने के डिब्बे, कागज – सारा कुछ सड़कों पर फेंक दिया जाता है। ये गंदगी सिर्फ दिखने में खराब नहीं लगती बल्कि बीमारियों की वजह भी बनती है।
इसके साथ ही, बाजार में गाड़ियों का आना-जाना लगभग नामुमकिन ही हो गया है। जाम की वजह से ना एंबुलेंस निकल पाती है, ना ही फायर ब्रिगेड। कई बार दुकानदार खुद किसी बीमार को पीठ पर लाद कर बाज़ार से बाहर लेकर जाते देखे गए हैं।
सदर बाजार व्यापारी संघ की सालों से चल रही मुहिम
सदर बाजार का व्यापारी संघ कोई नया शोर नहीं मचा रहा है। पिछले कई वर्षों से प्रशासन को पत्र, ज्ञापन और मीटिंग के ज़रिए इस समस्या से अवगत करवा चुका है, लेकिन नतीजा वही ढाक के तीन पात।
“हमने कई बार पुलिस और नगर निगम से अपील की है, लेकिन कार्रवाई सिर्फ एक-दो दिन की दिखावे वाली होती है। फिर वही हालात वापस।“
— संजय बंसल, अध्यक्ष, सदर बाजार व्यापारी संघ
प्रशासन की चुप्पी: सवालों के घेरे में
अब सवाल यह उठता है कि प्रशासन आखिर किसका पक्ष ले रहा है?
क्या वैध तरीके से टैक्स भरने वाले दुकान मालिकों की आवाज़ अनसुनी रह जाएगी? या फिर अवैध कब्जों को राजनीतिक संरक्षण मिल रहा है?
ये बात किसी से छुपी नहीं कि फुटपाथ पर दुकानें लगाने वाले कई लोग स्थानीय नेताओं और अधिकारियों की शह पर काम करते हैं। यही वजह है कि लाख कोशिशों के बावजूद हालात नहीं सुधरते।
भावनात्मक पहलू: दुकानदारों की पीड़ा सिर्फ व्यापार नहीं, ये दुकानदारों का सम्मान और जीवन यापन का जरिया है। कोई बुजुर्ग अपनी पेंशन तक इन दुकानों में लगाता है, तो कोई अपने बच्चों की फीस इन्हीं दुकानों से निकालता है।
“मेरा बेटा बीमार है, दुकान से ही इलाज करवाता हूं। अब अगर ग्राहक ही नहीं आएंगे तो घर कैसे चलेगा?“
— अशोक कुमार, स्टेशनरी दुकानदार

दिल्ली सदर बाज़ार में समाधान की ज़रूरत, और तुरंत
सदर बाजार जैसे ऐतिहासिक और आर्थिक रूप से अहम मार्केट को संवेदनशील योजना और सख्त प्रशासनिक कार्रवाई की जरूरत है।
फुटपाथ पर अवैध कब्जों को हटाना चाहिए
गंदगी फैलाने वालों पर जुर्माना लगे
ट्रैफिक के लिए वैकल्पिक व्यवस्था बनाई जाए
और सबसे ज़रूरी, प्रशासन को ईमानदारी से अपनी जिम्मेदारी निभानी चाहिए।
क्योंकि जब कानून का कोई भी डर नहीं होगा, तब हर कोई सड़क पर दुकान लगाएगा – और तब सिर्फ सदर नहीं, पूरी दिल्ली का सिस्टम पटरी से ही उतर जाएगा।
