दिल्ली में बसों की कमी से यात्रियों की बढ़ी मुश्किलें

दिल्ली में बसों की कमी से यात्रियों की बढ़ी मुश्किलें — अब पब्लिक क्या करेगी?

New Delhi News:  राजधानी दिल्ली में सार्वजनिक परिवहन प्रणाली एक बार फिर सवालों के घेरे में है। दिल्ली परिवहन निगम (DTC) और क्लस्टर बसों की संख्या में हो रही कमी से रोज़मर्रा के यात्रियों को भारी परेशानी झेलनी पड़ रही है। ऑफिस जाने वाले कर्मचारी, छात्र, मजदूर और आम नागरिक हर दिन बस स्टॉप पर घंटों इंतज़ार करने को मजबूर हैं।

दिल्ली में बसों की कमी — एक बढ़ती हुई समस्या

  • दिल्ली में वर्तमान में डीटीसी और क्लस्टर स्कीम के तहत लगभग “7,000 से 7,500 बसें” सड़क पर चल रही हैं, जबकि राजधानी की वास्तविक ज़रूरत करीब “11,000 से 12,000 बसों” की है। इस अंतर का सीधा असर आम जनता पर पड़ रहा है।
  • पीक आवर (सुबह 8–10 बजे और शाम 6–9 बजे) के दौरान बस स्टॉप पर लंबी कतारें लग जाती हैं। कई बार बसें भरी होने के कारण यात्रियों को चढ़ने का मौका नहीं मिलता और वे मजबूरी में दूसरी बस या महंगे साधनों जैसे ऑटो, टैक्सी या मेट्रो का सहारा लेते हैं।

दिल्ली में बसों की कमी से यात्रियों की बढ़ी मुश्किलें

बस यात्रियों को रोज़ाना की जद्दोजहद

  • लक्ष्मी नगर की रहने वाली “आयुषी राव”, जो रोज़ बस से स्कूल जाती हैं, बताती हैं “पहले हर 10 मिनट में बस मिल जाती थी, अब आधा घंटा या कभी-कभी उससे भी ज़्यादा इंतज़ार करना पड़ता है। अगर बस आ भी 5जाए तो उसमें जगह नहीं होती।”
  • इसी तरह “आईटीओ” से गुज़रने वाले “राजाराम ”, एक छात्र, कहते हैं “बसें इतनी कम हैं कि कई बार क्लास मिस करनी पड़ती है। मेट्रो किराया भी हर बार देना आसान नहीं है।”

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बस कमी के पीछे कारण

पुरानी बसें स्क्रैप हो चुकी हैं – कई डीटीसी बसें 10–12 साल पुरानी थीं, जिन्हें अब सड़क से हटा दिया गया है।

  1. नई बसों की खरीद में देरी – नई इलेक्ट्रिक और सीएनजी बसों की टेंडर प्रक्रिया में लगातार देरी हो रही है।
  2. चालकों और कर्मचारियों की कमी – पर्याप्त ड्राइवर न होने के कारण उपलब्ध बसें भी फुल क्षमता में नहीं चल पा रही हैं।
  3. मेंटेनेंस की समस्या – कई बसें वर्कशॉप में खड़ी हैं, क्योंकि उनकी मरम्मत और सर्विसिंग समय पर नहीं हो पा रही है।

जनता पर बढ़ता बोझ

बसों की कमी के कारण लोगों का रोज़मर्रा का बजट भी बिगड़ रहा है।

जो लोग पहले ₹10–₹20 में बस से सफर कर लेते थे, अब उन्हें ₹100–₹200 रोज़ ऑटो या कैब पर खर्च करने पड़ रहे हैं।

 स्कूल व कॉलेज जाने वाले विद्यार्थी, वबुजुर्ग और महिलाएँ, जिनके लिए बसें सबसे सस्ता और सुरक्षित विकल्प थीं, अब सबसे ज़्यादा प्रभावित हो रही हैं।

प्रशासन क्या कर रहा है?

दिल्ली सरकार ने हाल ही में घोषणा की है कि “2026 तक 8,000 नई इलेक्ट्रिक बसें” सड़क पर उतारी जाएँगी।

साथ ही, कुछ पुरानी डीटीसी बसों की मरम्मत कर उन्हें अस्थायी रूप से फिर से चलाने की योजना भी बनाई जा रही है।

परंतु यात्रियों का कहना है कि योजनाएँ तो बनती हैं, लेकिन ज़मीनी स्तर पर सुधार बहुत धीमा है।

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जनता की उम्मीदें और सवाल

  1. क्या सरकार तुरंत नई बसें खरीदकर सड़कों पर उतारेगी?
  2. क्या डीटीसी पुराने ड्राइवरों की भर्ती बढ़ाएगी?
  3. क्या बसों की फ्रीक्वेंसी और समयबद्धता में सुधार होगा?

जब तक इन सवालों का जवाब नहीं मिलता, दिल्ली की जनता को हर दिन बस स्टॉप पर खड़े होकर “अगली बस का इंतज़ार” ही करना पड़ेगा।

निष्कर्ष

दिल्ली जैसी महानगर में सार्वजनिक परिवहन केवल सुविधा नहीं, बल्कि “ज़रूरत” है। बसों की कमी से न सिर्फ यात्रियों की परेशानी बढ़ रही है, बल्कि सड़क पर ऑटो और निजी वाहनों की संख्या भी बढ़ रही है, जिससे “ट्रैफिक जाम” और “प्रदूषण” में इज़ाफा हो रहा है।

सरकार को चाहिए कि वह बसों की खरीद प्रक्रिया को तेज करे, चालक भर्ती को बढ़ाए और डीटीसी प्रशासन को जवाबदेह बनाए। जब तक पर्याप्त बसें सड़कों पर नहीं उतरतीं, दिल्ली के लोगों के लिए सफर एक “दैनिक संघर्ष” बना रहेगा।

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Note:

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By: KP
Edited  by: KP

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