बिहार में माइक्रोफाइनेंस लोन के जाल में कैसे फंसते जा रहे हैं लोग?
“आसान किस्तों में लोन” का सपना, लेकिन हकीकत – कर्ज का दलदल।
AVN News, Bihar : बिहार जैसे गरीब और ग्रामीण राज्यों में माइक्रोफाइनेंस कंपनियां अब गरीबों के लिए वरदान नहीं बल्कि अभिशाप बनती जा रही हैं। सरकार की निगरानी की कमी और कंपनियों की मनमानी नीतियों के कारण ये लोन अब गरीबों को गरीबी से उबारने के बजाय उन्हें कर्ज के जाल में फंसा रहे हैं।

माइक्रोफाइनेंस क्या है?
माइक्रोफाइनेंस वे छोटे-छोटे लोन होते हैं जो गरीब और निम्न आय वर्ग के लोगों को बिना किसी गारंटी के दिए जाते हैं। इनका उद्देश्य होता है कि लोग छोटे व्यापार शुरू करें, गाय-भैंस खरीदें, सब्जी बेचें, या कोई और काम करें और आत्मनिर्भर बनें।
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समस्या कहाँ शुरू होती है?
- बिना जानकारी और शिक्षा के लोन लेना: गाँव की महिलाएं और परिवार लोन के शर्तों को समझे बिना ही दस्तखत कर देती हैं। एजेंट सिर्फ इतना कहते हैं – “बस हर हफ्ते ₹200-300 देने हैं”, लेकिन ब्याज की असल दरें बहुत ज्यादा होती हैं।
- एक से ज्यादा कंपनियों से लोन लेना: जब एक लोन की किस्त चुकाना मुश्किल हो जाता है, लोग दूसरी कंपनी से लोन लेकर पहली की भरपाई करने लगते हैं। इसी तरह तीसरा, चौथा लोन… और अंत में पूरा घर कर्ज में डूब जाता है।
- हफ्तावसूली का दबाव: एजेंट हर हफ्ते किस्त लेने आते हैं। अगर कोई भुगतान नहीं कर पाता तो गाली-गलौज, अपमान और सामाजिक बदनामी तक की नौबत आ जाती है।
- महिलाओं पर सबसे ज्यादा दबाव: ज़्यादातर माइक्रोफाइनेंस लोन महिलाओं के नाम पर होते हैं, क्योंकि कंपनियों को लगता है कि महिलाएं पैसे लौटा देंगी। लेकिन जब परिवार का खर्च ही नहीं निकलता, तो वो क्या करें?

क्या असर हो रहा है बिहार के गाँवों पर?
- गरीबी बढ़ रही है: व्यापार के बजाय लोग लोन से घरेलू खर्च चला रहे हैं।
- समाज में तनाव: हफ्ते की किस्त न भर पाने पर पंचायत में बदनामी, परिवारों में कलह।
- खुदकुशी की घटनाएँ: कर्ज के बोझ से तंग आकर कुछ लोग आत्महत्या तक कर लेते हैं।
- घर और ज़मीन गिरवी: लोन चुकाने के लिए लोग अपनी ज़मीन और घर तक बेचने लगे हैं।
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माइक्रोफाइनेंस कंपनियों की मनमानी:
- 24% से भी ज्यादा सालाना ब्याज दर।
- नियम के बावजूद, एक व्यक्ति को कई लोन दिए जाते हैं।
- एजेंटों का असभ्य व्यवहार और धमकी।
- कोई पारदर्शिता नहीं – कागज़ात खुद एजेंट भरते हैं, लोग कुछ समझते नहीं।
समाधान क्या है?
- सरकारी निगरानी जरूरी है: माइक्रोफाइनेंस कंपनियों पर कड़ा नियंत्रण और रेगुलेशन होना चाहिए।
- वित्तीय साक्षरता बढ़ाई जाए: लोगों को लोन के फायदे और नुकसान के बारे में बताया जाए।
- ग्राम स्तर पर मदद केंद्र: लोन से जुड़ी जानकारी, कागज़ात की जांच, और शिकायत निवारण की सुविधा मिले।
- महिलाओं को मजबूत बनाएं: SHG (स्व-सहायता समूह) के माध्यम से सामूहिक निर्णय हो, अकेली महिला को लोन न दिया जाए।
कुछ ऐसी घटनाएँ लोन के कारण / उदाहरण
- सहरसा: महिलाओं को कई माइक्रोफाइनेंस कंपनियों से कर्ज़ दिया गया है, परेशान होकर तीन परिवारों ने अपने गाँव छोड़ दिए।
Source by: Dainik Bhaskar
- भुगोलपुर / नाउगाचिया: बैंक की किश्त जमा कराने वाले एजेंट ने ₹1.40 करोड़ की राशि जमा नहीं की, महिलाओं को बैंक ने नोटिस भेजे कि कर्ज बकाया है।
Source by: SUBKUZ
- मधेपुरा, जमुई आदि जिलों में: फर्जी फाइनेंस कंपनी ने महिलाओं से लोन देने वसूली की फीस/प्रोसेसिंग चार्ज वसूला, लेकिन लोन नहीं दिया गया।
Source by: Dainik Bhaskar
- मुजफ्फरपुर: 267 लोन लेने वालों से लगभग ₹24 लाख की वसूली की गई है गबन के आरोपों में।
Source by: Live Hindustan
- बाँका जिला: एक परिवार ने कर्ज़ के बोझ से तंग आकर ज़हर खा लिया, कई लोग मारे गए।
Source by: ML Update
निष्कर्ष:
- गरीबों की मदद के नाम पर चल रही ये माइक्रोफाइनेंस कंपनियां आज गरीबों की कमर तोड़ रही हैं। सरकार, समाज और मीडिया को अब जागना होगा। नहीं तो हर गाँव में कर्ज का यह जाल और गहराता जाएगा।
- आइए, मिलकर आवाज उठाएं – “गरीबों को कर्ज नहीं, रोजगार चाहिए।”
Note:
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