बिहार की राजनीति हमेशा से रोमांच और उतार-चढ़ाव से भरी रही है। यहां कभी जातीय समीकरण हावी होते हैं तो कभी विकास के वादे। अब जब विधानसभा चुनाव 2025 का माहौल गरमा रहा है, तो एक नाम बार-बार चर्चा में आ रहा है – प्रशांत किशोर (PK) और उनकी नई राजनीतिक सोच जनसुराज अभियान। सवाल यही है कि क्या PK और उनकी पार्टी वाकई बिहार की राजनीति में भूचाल ला पाएंगे?

प्रशांत किशोर की पहचान और पृष्ठभूमि

प्रशांत किशोर कोई नया नाम नहीं हैं। वह चुनावी रणनीतिकार के तौर पर देश के बड़े-बड़े नेताओं और पार्टियों के लिए काम कर चुके हैं – मोदी से लेकर ममता बनर्जी और राहुल गांधी तक। उनकी रणनीति कई बार गेमचेंजर साबित हुई है। लेकिन अब PK केवल चुनावी मैनेजर नहीं, बल्कि खुद एक नेता के रूप में जनता के बीच उतर चुके हैं।

2022 से ही उन्होंने जनसुराज पदयात्रा शुरू की और गांव-गांव घूमकर जनता की नब्ज टटोली। इस दौरान वे बार-बार कहते रहे – “बिहार को बदलने के लिए जनता को खुद आगे आना होगा।” जब तक जनता जागरूक नही होगी तब तक बिहार का हालात नहीं बदलने वाला।

जनसुराज का विज़न

जनसुराज पार्टी खुद को किसी जाति-धर्म की पार्टी नहीं, बल्कि “विकास आधारित राजनीति” की ताकत बताती है। और सब को साथ लेकर चलने की बात करती है।

शिक्षा और स्वास्थ्य को प्राथमिकता

युवाओं को रोजगार

भ्रष्टाचार और लालफीताशाही पर लगाम

पंचायत स्तर तक मजबूत नेतृत्व

PK बार-बार इस बात पर ज़ोर देते हैं कि बिहार को 20-30 साल की लंबी योजना की ज़रूरत है, न कि केवल चुनावी वादों की।

कितना असर डाल पाएंगे PK?

अब सबसे बड़ा सवाल – क्या PK वाकई चुनावी मैदान में कुछ कर दिखा पाएंगे?

1. युवाओं का आकर्षण:
आज का युवा, खासकर बेरोजगार वर्ग, PK की बातों में दम देखता है। लाखों नौजवान जो नौकरी और अवसरों की तलाश में हैं, वे जनसुराज को उम्मीद की नज़र से देख रहे हैं।

2. जातीय राजनीति से अलग पहचान:
बिहार की राजनीति हमेशा जातीय समीकरणों में फंसी रही है। PK अगर इस गणित को तोड़ने में कामयाब होते हैं, तो यह ऐतिहासिक बदलाव होगा।

3. ग्राउंड कनेक्ट:
उनकी पदयात्रा ने गांव-गांव में चर्चा पैदा की है। लेकिन चर्चा को वोट में बदलना सबसे बड़ी चुनौती है।

4. संगठन की कमजोरी:
अभी जनसुराज के पास बूथ स्तर तक मजबूत संगठन नहीं है। चुनाव जीतने के लिए ज़रूरी है कि हर गांव-टोले तक कार्यकर्ता खड़े हों।

भावनात्मक पहलू – जनता की उम्मीदें

बिहार की जनता हर चुनाव में उम्मीद करती है कि इस बार हालात बदलेंगे।

किसान चाहते हैं कि उनकी मेहनत की सही कीमत मिले।

युवा चाहते हैं कि उन्हें पलायन न करना पड़े।

महिलाएं चाहती हैं कि शिक्षा और स्वास्थ्य की बेहतर सुविधा मिले।

PK ने जनता को यह सपना दिखाया है कि “बिहार भी बदल सकता है।” लेकिन जनता के मन में यह डर भी है कि कहीं यह सपना भी अधूरा न रह जाए, जैसा पहले भी कई नेताओं ने किया।

नतीजा क्या हो सकता है?

अगर PK 2025 में 20–30 सीटें भी जीत जाते हैं, तो यह बिहार की राजनीति में बड़ी घटना होगी। क्योंकि यह दिखाएगा कि जनता अब जातीय राजनीति से हटकर विकास आधारित सोच की तरफ बढ़ रही है।
लेकिन अगर जनसुराज अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाई, तो इसे जनता का भरोसा जीतने में असफलता माना जाएगा।

बिहार

 

पीके बिहार के चुनावी हवा में कितना असर डाल पाएंगे

प्रशांत किशोर और जनसुराज इस बार बिहार की राजनीति में चर्चा का बड़ा केंद्र हैं। वे चुनावी हवा में कितना असर डाल पाएंगे, यह तो नतीजे ही बताएंगे। लेकिन इतना तय है कि PK ने बिहार की जनता को सोचने पर मजबूर किया है कि “क्या अब समय आ गया है राजनीति बदलने का?”

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