बिहार हमेशा से शिक्षा और मेहनती युवाओं की धरती रही है। यहां के बच्चे छोटे कस्बों और गांवों से निकलकर बड़े-बड़े सपने देखते हैं—कभी सरकारी नौकरी का, कभी प्राइवेट सेक्टर में बेहतर करियर बनाने का। लेकिन अफसोस की बात ये है कि इन सपनों को पूरा करने के लिए जिस सहारे की ज़रूरत होती है, वही सरकार इनसे मुंह मोड़े खड़ी दिखाई देती है।
रोजगार के नाम पर सिर्फ वादे
हर चुनाव के वक्त सरकारें बड़े-बड़े वादे करती हैं—कभी 10 लाख नौकरी देने की बात, कभी लाखों युवाओं को रोज़गार देने का दावा। लेकिन ज़मीनी हकीकत ये है कि बिहार में आज भी लाखों डिग्रीधारी युवा हाथों में डिग्री लेकर दर-दर भटक रहे हैं। सरकारी नौकरी की भर्तियां सालों-साल लटकती रहती हैं, परीक्षा हो भी जाए तो रिज़ल्ट और नियुक्ति आने में बरसों लग जाते हैं।
बिहार में ताज़ा आंकड़े
1. बेरोज़गारी दर की स्थिति
बिहार आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 के अनुसार, राज्य में शहरी क्षेत्रों की बेरोज़गारी दर लगभग 7.3% है, जबकि ग्रामीण इलाकों में यह औसतन 2.6% तक है।
साथ ही, जुलाई 2022-जून 2023 की श्रम-बलों की सर्वेक्षण रिपोर्ट में बिहार की बेरोज़गारी दर 3.9% थी, जो देश के औसत (3.2%) से अधिक है।
15-29 वर्ष की आयु वर्ग में बेरोज़गारी दर 13.9% दर्ज की गई थी, जो युवाओं के बीच जोखिम को स्पष्ट दिखाती है।
2. नौकरी मिलने वालों की संख्या
बिहार सरकार ने दावा किया है कि वर्ष 2023-24 में लगभग 26,843 युवाओं को रोजगार मिला है।
लेकिन यह संख्या उन युवाओं की तुलना में बहुत कम है जो नौकरी की तलाश में हैं, ख़ासकर उन इलाकों में जहाँ शिक्षा की पहुँच कम है।

भर्ती घोटाले और विवाद
1. टीचर भर्ती घोटाला
नवंबर 2024 में ख़बर आई कि बिहार में टीचर भर्ती में बड़ी धोखाधड़ी हुई है। लगभग 24,000 अभ्यर्थियों को नौकरी मिलने का दावा था, लेकिन बाद में यह सामने आया कि उनमें से कई फर्जी प्रमाणपत्रों या अवैध तरीकों से चयनित थे, जिससे उनकी स्थिति खतरें में आ गई।
विरोधियों ने “Money for Jobs” यानी पैसे लेकर नौकरी देने की शिकायत की है। भर्ती परीक्षा में अवैध हस्तक्षेप, प्रमाणपत्रों का फर्जी उपयोग और मेरिट की अनदेखी का आरोप है।
2. पुलिस भर्ती घोटाला
बिहार की पुलिस कांस्टेबल भर्ती (2023) में 21,391 पदों पर भर्ती का मामला है, जिसमें कथित धोखाधड़ी की शिकायतें हैं। ED (Enforcement Directorate) ने इस मामले की जांच शुरू की है।
आरोप है कि भर्ती प्रक्रिया में मध्यस्थों, एजेंसियों या अन्य प्रभावशाली लोगों ने दखल दिया, और कई उम्मीदवारों को भर्ती में लाभ पहुंचाने के लिए पैसे और सिफारिशों का इस्तेमाल हुआ।
3. पेपर लीक उद्योग
बिहार में प्रतियोगी परीक्षाओं और विशेष रूप से भर्ती परीक्षाओं में पेपर लीक की घटनाएँ लगातार सामने आ रही हैं। गर्मियों में हुई रिपोर्ट्स में बताया गया कि “पेपर लीक उद्योग” अब एक व्यवस्थित समस्या बन गया है।
इस तरह की लीक घटनाएँ युवाओं के आत्मविश्वास को हिला देती हैं, क्योंकि वो महसूस करते हैं कि मेहनत और अध्ययन से नहीं बल्कि किसी “जुगाड़” या प्रभाव से ही सफलता मिलती है।
4. “Land-for-Jobs” घोटाला
एक बहुत बड़ी घटना है जिसमें आरोप है कि बिहार के एक व्यक्ति ने रेलवे विभाग में अपने पुत्र को नौकरी दिलाने के लिए जमीन “गिफ्ट” की थी, ताकि नौकरी सुनिश्चित हो सके। यह “Land-for-Jobs Scam” सीबीआई की चार्जशीट का हिस्सा है।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सुनवाई को तेज़ी से निपटाने के निर्देश दिए हैं और मामले की गंभीरता को स्वीकारा है।
भावनात्मक जुड़ाव के लिए जोड़
भूकंप-सी असर: जब युवा लाखों रुपयों और समय लगाकर पढ़ाई करते हैं, कोचिंग लेते हैं, रातों को जागते हैं, एक टाइम का खाना खा कर पढ़ते है, तो किसी भर्ती में पेपर लीक या फर्जी प्रमाणपत्रों की वजह से उनका नाम कट जाना, उनके मन में एक तरह की न्यायहीनता की भावना पैदा करती है।
आत्मसम्मान का घाव: ‘‘मैंने मेहनत की, पढ़ा-लिखा, स्वप्न देखा, फिर भी बाहर?’’ — ये सवाल हर युवा पूछता है जब मेरिट से पीछे रह जाता है। नौकरी की कमी सिर्फ आर्थिक नहीं, बल्कि आत्मसम्मान को भी चोट पहुंचाती है।
परिवार-परिस्थिति की बेरहम सच्चाई: गांव-गाँव में माता-पिता सालों की मजदूरी जमा कर बच्चों को पढ़ाते हैं, लेकिन नौकरी न मिलना अक्सर परिवार का भरोसा, आत्मविश्वास, योजनाएँ सब बिगड़ देता है।
पढ़ाई पूरी, लेकिन रोजगार अधूरा
बिहार में हर साल लाखों छात्र इंटर, ग्रेजुएशन और प्रोफेशनल कोर्स पास करते हैं। कोचिंग सेंटरों में भीड़ लगी रहती है, घर वाले बच्चों की पढ़ाई पर अपनी कमाई का बड़ा हिस्सा खर्च कर देते हैं। लेकिन आखिर में वही बच्चे बेरोज़गारी की कतार में खड़े रह जाते हैं। नौकरी न मिलने की वजह से कई युवा दूसरे राज्यों की ओर पलायन करने को मजबूर हो जाते हैं—दिल्ली, पंजाब, हरियाणा या फिर मुंबई जाकर मज़दूरी तक करनी पड़ती है।
भावनात्मक पहलू – टूटी उम्मीदें, बिखरे सपने
बेरोजगारी सिर्फ नौकरी का संकट नहीं है, ये युवाओं के सपनों और आत्मविश्वास को तोड़ देती है। कोई लड़का जिसने इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की, वो अगर रिक्शा चलाने को मजबूर हो जाए तो उसका दर्द कौन समझेगा? कोई लड़की जिसने टीचर बनने का सपना देखा, वो सालों तक भर्ती प्रक्रिया का इंतजार करे तो उसके मन पर क्या गुज़रती होगी? ये सिर्फ आंकड़े नहीं, बल्कि हर घर की हकीकत है।
सवाल उठता है – आखिर क्यों?
सरकार के पास योजनाओं और स्कीमों की लंबी लिस्ट है, लेकिन रोजगार पैदा करने की असली मंशा कहीं दिखाई नहीं देती। उद्योग-धंधे बिहार में अब भी न के बराबर हैं। प्राइवेट कंपनियां यहां निवेश करने से हिचकती हैं, क्योंकि ढांचा और माहौल दोनों ही सही नहीं है। ऐसे में सवाल उठता है—क्या बिहार के युवा सिर्फ चुनावी घोषणाओं और पोस्टरों तक ही सीमित रह जाएंगे?

सरकार को समय रहते युवाओं की ओर हाथ बढ़ाना जरूरी
आज जरूरत है कि सरकार सिर्फ आंकड़ों की बाज़ीगरी छोड़कर सचमुच युवाओं की तरफ ध्यान दे। बेरोजगारी सिर्फ आर्थिक संकट नहीं, ये सामाजिक और मानसिक संकट भी है। अगर सरकार ने समय रहते युवाओं की ओर हाथ नहीं बढ़ाया तो यही निराशा कल बड़ा विस्फोट बन सकती है।
बिहार के युवा पूछ रहे हैं—“क्या हमारे सपनों की कोई कीमत नहीं? क्या सरकार ने हमसे पूरी तरह मुंह मोड़ लिया है?”
