बिहार की राजनीति इस समय एक ऐसे मोड़ पर है जहाँ राजद (RJD ) और कांग्रेस (INC) , जो महागठबंधन के दो बड़े स्तंभ हैं, एक दूसरे से सहमति बनाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। कोई खुली लड़ाई नहीं है अभी, लेकिन खिंचतान भी साफ है।
बिहार में महागठबंधन क्या है हालात?
1. सीट बंटवारे की लड़ाई
कांग्रेस इस बार महागठबंधन में सिर्फ “नाम की” हिस्सेदारी नहीं चाहती। वह मांग कर रही है कि उसे वो सीटें मिलें जहाँ जीत की संभावनाएँ अधिक हो। पिछले बिहार विधानसभा चुनाव (2020) में कांग्रेस ने करीब 70 सीटों पर चुनाव लड़ा था, लेकिन सिर्फ 19-20 सीटें जीती थीं।
राजद को चिंता है कि कांग्रेस की ये मांगें ज़्यादा हों तो गठबंधन की एकरूपता पर असर पड़ेगा।
2. राजनैतिक दबाव और आत्म-मूल्यांकन
कांग्रेस खुद मानती है कि पिछले बिहार चुनाव में उसकी स्थिति कमजोर रही थी, कई सीटों पर हार बहुत बड़े अंतर से हुई। इस बार वो “जिताऊ सीटों” (वो सीटें जहाँ जीत की गुंजाइश है) पर जोर दे रही है।
राजद कहता है कि कुछ सीटें राजनीतिक, सामाजिक या जातीय समीकरण से उन्होंने बनाई हुई हैं, और कांग्रेस को वही “कमज़ोर” हिस्से मिलें तो वोट बंटाव (vote split) या हार का जोखिम बढ़ जाएगा।
3. छोटी पार्टियों की दावेदारी
सिर्फ राजद-कांग्रेस नहीं, विकासशील इंसान पार्टी, वीआईपी, वाम दल आदि भी सीटों की मांग कर रहे हैं। उनके दबाव से राजद-कांग्रेस को कुछ समझौते करने पड़ रहे हैं।
4. संयम और सार्वजनिक छवि
जनता देख रही है कि गठबंधन कितने सच्चे हैं। महागठबंधन के नेता आए दिन मंचों पर मिलते हैं, “एकता” की बात करते हैं, लेकिन पीछे की बातचीत (सीट-बंटवारा, प्रत्याशियों की सूची आदि) में असंतोष की हवा है। अगर ये खींचतान खुल कर सामने आये तो वोटर निराश हो सकते हैं।

बिहार के आम लोगो की भावनात्मक और सामाजिक पहलू
उम्मीद और भरोसा: बिहार के आम लोग महागठबंधन से बदलाव की उम्मीद कर रहे हैं। गरीबी, बेरोज़गारी, ज़मीनी समस्या, अभाव – ये सब मुद्दे हैं जिन पर राजनैतिक पार्टियां जो वादे कर रही हैं, उसकी क्रियान्विति की उम्मीद है।
घबराहट और असमंजस: कांग्रेस के कार्यकर्ता और समर्थक सोच रहे हैं कि अगर उन्हें “कमज़ोर” या हारने की संभावना वाली सीटें दी गईं तो उनकी मेहनत बेकार हो सकती है। वहीं राजद समर्थकों में डर है कि गठबंधन ज्यादा “समझौता” करता गया तो राजद की मजबूती कमजोर पड़ सकती है।
राजनीतिक स्वाभिमान: पार्टियों के लिए सिर्फ जीत ही नहीं बल्कि अधिकार, स्वाभिमान, पहचान का मसला है। कांग्रेस चाहती है “साथी-पार्टनर” की भूमिका से आगे आये, सिर्फ “गठबंधन की फुटकर इकाई” न बने।
जनता की निराशा: अगर ये खींचतान इतनी बढ़ जाये कि साझा प्रत्याशा न बन पाए, प्रत्याशी नामांकन लेट हो जायें, या सत्ता बदलने की इच्छा से गठबंधन अस्थिर दिखे – तो जनता में भरोसा टूट सकता है। कई लोग इस बात से चिंतित हैं कि नेताओं की आपसी लड़ाई वोटर के हित से ज़्यादा पार्टी-हित पर हो रही है।
अभी भी मौका है — लेकिन…
हाँ, इस स्थिति में अभी किसी तरह की खुली दरार नहीं दिख रही है। बहुत सारे संकेत हैं कि राजद और कांग्रेस समझौता करना चाहते हैं। राजद-कांग्रेस मीटिंगें हो रही हैं, आलाकमान शामिल है, और बातचीत जारी है।
समझौता इस तरह हो सकता है कि कांग्रेस को दस-बीस “जिताऊ” सीटें मिलें, राजद अपनी मजबूत वोट बैंक वाली सीटें बरकरार रखे, और कुछ सीटों पर छोटा-मोटा समायोजन हो जाए ताकि सभी को संतुष्टि मिल सके। अगर ये तालमेल अच्छा रहा, तो महागठबंधन की ताकत BJP-जेडीयू-एनडीए के मुकाबले नज़दीक या पार हो सकती है।
कुछ ताज़ा सर्वेक्षण / पोल डेटा
1. Moneycontrol – Vote Vibe Survey
NDA और महागठबंधन (Mahagathbandhan / MGB) के बीच मुकाबला बेहद करीबी पाया गया है। NDA को लगभग 36.2% वोटिंग समर्थन मिल रहा है और महागठबंधन को 35.8%।
युवाओं (18-24 वर्ष) में विरोधी -अधिकारवादी (anti-incumbency) भावना ज़्यादा है, और वे महागठबंधन की ओर झुकाव दिखा रहे हैं।
Tejashwi Yadav बने हैं सीएम पद की पसंद में सबसे आगे, जबकि प्रशांत किशोर जैसे नए चेहरे भी लोकप्रियता बना रहे हैं।
2. Congress की ’Good Seats’ की मांग
कांग्रेस ने कहा है कि सीट-बंटवारे में “अच्छी सीटें” (good seats) मिलनी चाहिए — वो सीटें जहाँ पार्टी पिछले चुनावों में जीत हुई हो या हार बहुत नज़दीकी हुई हो।
2020 में कांग्रेस ने 70 सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन सिर्फ 19 जीती थीं। इसलिए इस बार वह दावा कर रही है कि उसके हिस्से में वो सीटें हों जहां जीत की संभावना हो।
3. CPI(ML) Liberation की दावे
इस गठबंधन की छोटी पार्टियाँ भी अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने की कोशिश कर रही हैं। जैसे CPI(ML) Liberation ने कहा है कि वह इस बार 40 सीटों का दावा कर रही है, क्योंकि पिछले चुनाव में कम जगहों से लड़ने के कारण उसकी भागीदारी सीमित रही थी।
वह कांग्रेस को “वास्तविक” दावों की याद दिला रही है, कि सिर्फ संख्या बढ़ाना ही नहीं, जीतने की संभावना वाले मुकाबले लेना चाहिए।
4. ओपिनियन पोल / छवि प्रश्न
कुछ ओपिनियन पोलों में लोगों ने यह कहा है कि मुख्य मुद्दे अब बेरोज़गारी, विकास, वोटर सूची (electoral roll revision), जातीय-सामाजिक न्याय आदि हैं, न कि सिर्फ नेताओं के बीच की कुर्सी-झगड़ा।
“सीएम विकल्प” (Chief Minister choice) में लोग तीव्रता से Tejashwi यादव को देख रहे हैं।

कुछ पोलों में यह भी पाया गया कि जनता गठबंधनों में ऐसी खींचतान देखना नहीं चाहती- जो दिखे कि पार्टी-हित नेताओं की झड़प हो रही हो, चुनाव प्रचार की जगह लड़ाई सीट-बंटवारे की हो। हालांकि ये भावनाएँ आम राय सर्वेक्षणों में इतने स्पष्ट नहीं आई हैं कि उन्हें आंकड़ों से प्रमाणित किया जा सके।
तो आम भाषा में कहे तो:
अभी राजद-कांग्रेस के बीच खिचड़ी पक रही है — मगर पूरी तरह से नहीं, लेकिन मसाले अभी ज़्यादा हैं।
यह खिचड़ी अभी उबाल पर है, लेकिन अभी तक बनी हुई है खिचड़ी में — कोई बंटवारा नहीं हुआ है।
महागठबंधन की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि दोनों ही पार्टियाँ अपनी महत्वाकांक्षाएँ संभालकर गठबंधन की बड़ी तस्वीर को प्राथमिकता दें।
यदि राजनीति की उम्मीदों के बीच जनता को लगे कि पार्टियों ने सिर्फ अपने स्वार्थ देखे, तो वोटर “निराशा” की स्थिति में जा सकते हैं, और यह गठबंधन की तस्वीर को कमजोर कर सकता है।
