बिहार की राजनीति में चुनावी साल आते ही हवा में हलचल तेज हो जाती है। गांव की चौपाल हो या गांव का चौक चौराहा से लेकर शहर के चाय स्टॉल तक, हर जगह एक ही चर्चा – इस बार कौन जीतेगा?। 2025 के विधानसभा चुनाव अब ज्यादा दूर नहीं, और सूबे की सत्ता पर काबिज होने की जंग अब अपने चरम की ओर बढ़ रही है।

सियासी समीकरण और नए मोड़

बिहार की राजनीति हमेशा से गठबंधन, तोड़-फोड़ और जातीय समीकरणों के इर्द-गिर्द घूमती रही है।

महागठबंधन – जिसमें राजद, कांग्रेस, सीपीई और कुछ छोटे दल शामिल हैं, तेजस्वी यादव की अगुवाई में बेरोजगारी, शिक्षा और किसानों के मुद्दे को लेकर जनता के बीच उतरने की तैयारी में है।

एनडीए – बीजेपी और जेडीयू, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में विकास के काम और कानून-व्यवस्था में सुधार का दावा कर रही है।

तीसरा मोर्चा – छोटे-छोटे दल, जो अलग से चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं, कुछ सीटों पर मुकाबला तगड़ा कर सकते हैं।

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जनता के दिल में कौन?

बिहार की जनता भावनाओं से वोट करती है, लेकिन साथ ही अब युवा वर्ग नौकरी और विकास के मुद्दे पर भी जागरूक हो चुका है।

बेरोजगारी – लाखों युवा आज भी सरकारी नौकरी के इंतजार में बैठे हैं।

महंगाई – घर-घर में रसोई से लेकर बाजार तक महंगाई की मार महसूस हो रही है।

विकास बनाम वादे – जनता देख रही है कि पिछले वादे कितने पूरे हुए और कौन सिर्फ चुनावी भाषण दे रहा है।

गांव-गांव का माहौल

गांवों में जातीय समीकरण अभी भी मजबूत फैक्टर हैं। यादव, कुर्मी, भूमिहार, दलित, मुस्लिम – हर समुदाय अपने हित और सुरक्षा के हिसाब से निर्णय लेता है। लेकिन इस बार एक नई बात है – युवा जाति से ज्यादा रोजगार और पढ़ाई की सुविधा को प्राथमिकता दे रहे हैं।

बिहार में भावनाओं का पारा चढ़ा हुआ है

बिहार के लोग सिर्फ वोट नहीं डालते, बल्कि दिल से अपनी पसंद चुनते हैं। 2025 का चुनाव इसलिए खास है क्योंकि –

यह तय करेगा कि दो दशक से नीतीश कुमार का अनुभव भारी पड़ेगा या तेजस्वी यादव का युवा जोश।

क्या बीजेपी अपने संगठन के बल पर सत्ता में बनी रहेगी या महागठबंधन वापसी करेगा।

नीतीश कुमार के स्वास्थ्य का बिहार की राजनीति पर कितना असर?

सीएम नीतीश कुमार अब 74 साल के हो गए हैं. वही उम्र के साथ उनके स्वास्थ्य को लेकर भी दिक्कतें सामने आई हैं. ऐसे में अब उनके नेतृत्व को लेकर भी सवाल खूब उठ रहे हैं?

नीतीश कुमार के स्वास्थ्य को लेकर पूरी की पूरी राजनीति तैयार की जा रही है. साल 2005 में जब नीतीश कुमार ने सत्ता संभाली थी तो यह कहा जाता था कि बहुत अच्छे शब्द बोलने वाले व्यक्ति के पास सत्ता आई है. वही इससे इतर पिछले दिनों में उनका भाषण देखें, उनका स्टाइल देखें, वह कैसे गुस्सा हो जा रहे हैं. सभी महसूस कर रहे हैं कि उनका स्वास्थ्य अब अच्छा नहीं है. कभी भी कुछ भी बोल देते है कभी किसी अधिकारी के सर पर पौधा रखदेना कभी किसी का हाथ पकड़ लेना।

नीतीश कुमार ने अपने बाद दूसरी पंक्ति का कोई नेता उभरने भी नहीं दिया और 23 साल से पूरी जेडीयू (JDU) उनके ही इर्द गिर्द घूम रही है.

जेडीयू (JDU) में दूसरी पंक्ति में अब अब नीतीश के बेटे निशांत कुमार को आगे किया जा रहा है. अब सवाल यह है कि 40 साल की उम्र पार कर रहा व्यक्ति क्या राजनीतिक विरासत को संभाल पाएगा?

नीतीश कुमार के पास 14 प्रतिशत वोट है और बीजेपी (BJP) भी इस बात को मानती है. यही वजह है कि नीतीश कुमार जिस तरफ जाते हैं, जीत उसी की होती है.

क्या जनता “परिवर्तन” चाहेगी या “स्थिरता” को चुनेगी।

अंतिम लड़ाई – जनता की अदालत में
चुनाव में नेता लाख वादे करें, लेकिन आखिरी फैसला जनता के हाथ में होता है। बिहार का मतदाता भावुक भी है और समझदार भी। 2025 में जो जनता के दिल को जीतेगा, वही पटना की सत्ता की कुर्सी पर बैठेगा।

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