बिहार का जमुई जिला… एक नाम जो सुनने में तो छोटा लगता है लेकिन जब इसकी बदहाली की कहानी सुनी जाए तो आंखें भी भर आती हैं। गरीबी, बेरोजगारी, शिक्षा और स्वास्थ्य की हालत ऐसी है कि लगता है जैसे जमुई को विकास की ट्रेन छूकर ही नहीं गई। सवाल यही है—आख़िर जमुई की इस हालत का जिम्मेदार कौन है?

जमुई की मौजूदा हालत – एक नजर में:
स्वास्थ्य व्यवस्था:

जिले में गिने-चुने सरकारी अस्पताल हैं, डॉक्टरों की भारी कमी है। कई PHC में ताले लटकते हैं। आपात स्थिति में लोगों को पटना , निजी अस्पताल या भागलपुर तक जाना पड़ता है।

शिक्षा का हाल:

बिहार के जमुई जिले में सरकारी स्कूलों में ना शिक्षक समय पर आते हैं, ना बच्चों को किताबें मिलती हैं। उच्च शिक्षा की बात करें तो बच्चों को बाहर जाना पड़ता है।

बिहार के जमुई में बेरोजगारी और पलायन:

यहां रोजगार के साधन ना के बराबर हैं। युवा दिल्ली, पंजाब, गुजरात, महाराष्ट्र पलायन करने को मजबूर हैं। हर साल हजारों लोग गांव से शहर भागते हैं दो जून की रोटी कमाने।

सड़क और इंफ्रास्ट्रक्चर:

जमुई में आज भी कई गांव ऐसे हैं जहाँ पक्की सड़क तक नहीं है। बरसात में तो हालत और भी खराब हो जाती है।

और जब चुनाव में चंद महीने बचे है तब नेता जी सड़क निर्माण का फंड और उद्घाटन किया जा रहा है। सच्चाई सब जानते है।

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गिद्धौर मौरा वाया मांगोबंदर बाईपास सड़क में गड्ढे

बिहार में नक्सलवाद का डर:

जमुई जिले के कई इलाके आज भी नक्सल प्रभावित माने जाते हैं। जिससे विकास योजनाएं वहां तक पहुँच ही नहीं पातीं।

तथ्य और आंकड़े (2024 तक के):
जमुई की साक्षरता दर (2021): लगभग 62% – जो बिहार की औसत दर से भी कम है।

जिला अस्पतालों में डॉक्टरों की कमी: कुल स्वीकृत पदों में से 60% पद खाली।

MNREGA रोजगार योजना: 2023-24 में 60% से ज्यादा युवा प्रवासी के रूप में पंजीकृत।

पेयजल संकट: हर तीसरे गांव में शुद्ध पानी की समस्या है।

नल-जल योजना में खूब घोटाले हुए पानी का फिल्टर लगाया गया कही बंद पड़ा है कही सिर्फ रखा गया है।

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नल जल योजना के बाद भी पेयजल संकट

सरकारी योजनाओं का लाभ: सिर्फ 42% लोग मानते हैं कि सरकारी योजना का लाभ सही तरीके से मिला।

आख़िर जिम्मेदार कौन?

1. स्थानीय जनप्रतिनिधि:

सांसद से लेकर विधायक तक, सबने चुनाव से पहले जमुई को ‘मॉडल जिला’ बनाने का सपना दिखाया लेकिन आज तक धरातल पर कुछ ठोस नहीं उतरा। सिर्फ भाषण और नारों तक सीमित रह गए वादे।

2. राज्य सरकार (नीतीश कुमार सरकार):

20 साल से बिहार में सत्ता में रहने के बाद भी जमुई जैसे जिले उपेक्षा का शिकार हैं। विकास के पैसों का सही उपयोग नहीं, निगरानी नहीं, और ना ही कोई जवाबदेही।

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3. केंद्र सरकार (मोदी सरकार):

‘सबका साथ, सबका विकास’ के नारे तो दिए गए लेकिन जमुई को शायद उस विकास की गाड़ी में टिकट ही नहीं मिला। रेल, सड़क, शिक्षा, AIIMS या उद्योग—कहीं नाम तक नहीं आता।

4. स्थानीय अफसरशाही और भ्रष्ट तंत्र:

योजनाएं कागज़ पर चलती हैं, ज़मीन पर नहीं। अधिकारी, दलाल और ठेकेदारों की मिलीभगत ने जनता को सिर्फ काग़ज़ी लाभ दिए।

इमोशनल पहलू – जमुई की कहानी, एक बुजुर्ग की ज़ुबानी:

“हम 60 साल से जमुई में हैं बेटा… हर चुनाव में उम्मीद करते हैं कि इस बार कुछ बदलेगा। पर आज भी दवा के लिए भागलपुर जाना पड़ता है, पीने का पानी खुद के कुएं से भरते हैं। और बेटा शहर में नौकरी करता है, साल में दो बार आता है।” –
रामसागर यादव, सिकंदरा प्रखंड, जमुई

अब सवाल जनता का है:

क्या हर चुनाव में सिर्फ जाति-धर्म और पार्टी देखकर वोट देना सही है?

क्या जमुई की जनता कभी विकास के मुद्दे पर वोट मांगेगी?

क्या वादा पूरा न करने वालों से हिसाब मांगा जाएगा?

जमुई की बदहाली किसी एक व्यक्ति या सरकार की देन नहीं है, बल्कि एक पूरी व्यवस्था की नाकामी है। लेकिन जब तक जनता सवाल नहीं करेगी, तब तक जवाब भी नहीं मिलेगा। अब वक्त है – जमुई को सिर्फ वोट बैंक नहीं, विकास का केंद्र बनाने का।

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