Winter session of Parliament: संसद का शीतकालीन सत्र, जो 25 नवंबर से 20 दिसंबर 2024 तक चला, हंगामे और विवादों के कारण अपेक्षित कार्य नहीं कर सका। सत्र के दौरान लोकसभा में केवल 62 घंटे काम हुआ, जिससे उत्पादकता लगभग 57.87% ही रही है।
संसद में प्रमुख विवाद और हंगामे
अडानी समूह और संभल हिंसा: विपक्ष ने अडानी समूह से जुड़े मुद्दों और उत्तर प्रदेश के संभल में हुई हिंसा पर चर्चा की मांग की, जिससे सदन में तीखी बहस हुई।
बाबासाहेब आंबेडकर का अपमान: गृह मंत्री अमित शाह की एक टिप्पणी, जिसमें उन्होंने कहा था, “अभी एक फैशन हो गया है- आंबेडकर, आंबेडकर…। इतना नाम अगर भगवान का लेते तो सात जन्मों तक स्वर्ग मिल जाता,” को विपक्ष ने आंबेडकर का अपमान बताया है। इस पर पूरा विपक्ष ने जोरदार विरोध प्रदर्शन किया।

धक्का-मुक्की की घटनाएं: सत्र के दौरान विपक्षी और सत्ताधारी सांसदों के बीच धक्का-मुक्की की घटनाएं भी हुईं, जिससे सदन की गरिमा प्रभावित हुई।
विधायी कार्य
हंगामे के बावजूद, कुछ महत्वपूर्ण विधेयक पारित किए गए, जिनमें ‘एक देश, एक चुनाव’ विधेयक शामिल है, जिसे संसद की संयुक्त समिति के पास भेजा गया। इसके अलावा, ‘रेल (संशोधन) विधेयक 2024’, ‘बैंककारी विधियां (संशोधन) विधेयक 2024’, और ‘आपदा प्रबंधन (संशोधन) विधेयक 2024’ भी पारित हुए।
सदन की उत्पादकता
लगातार हंगामे के कारण प्रश्नकाल और शून्यकाल बाधित रहे, जिससे सदन की उत्पादकता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा। राज्यसभा में भी स्थिति समान रही, जहां उत्पादकता लगभग 40% रही। भारत की जनता का गाढ़ी कमाई देश के सांसदों ने स्वाहा कर दिया।
इसका निष्कर्ष
संसद का यह शीतकालीन सत्र हंगामे और विवादों के चलते अपेक्षित कार्य नहीं कर सका, जिससे जनता के महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा नहीं हो पाई। सदन की गरिमा बनाए रखने और उत्पादकता बढ़ाने के लिए सभी सदस्यों को मिलकर प्रयास करने की आवश्यकता है। ताकि जिस जनता ने चुन कर भेजा है बड़ी उम्मीदों के साथ ओर वहां जनता के मुद्दे नहीं न उठा पाए तो जनता को बहुत निराशा होती है।
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