लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने हाल ही में एक बड़ा बम फोड़ा। उन्होंने खुलकर चुनाव आयोग पर गंभीर आरोप लगाए — वो भी हवा में नहीं, बल्कि तथ्यों, आंकड़ों और दस्तावेज़ों के साथ। उनका दावा है कि इस बार के लोकसभा चुनाव में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी और धांधली हुई है।

राहुल गांधी द्वारा उठाए सवाल और दिया गया आंकड़ों पर मीडिया क्यों मोन?

राहुल गांधी ने अपने भाषण में साफ-साफ बताया है कि कैसे कई सीटों पर वोटों का अंतर अचानक रातों-रात बदल गया, ईवीएम मशीनों और वीवीपैट से जुड़े डेटा में गड़बड़ियां सामने आईं, और गिनती के दौरान पारदर्शिता पूरी तरह से नदारद थी। उन्होंने ये भी सवाल उठाया है कि अगर चुनाव प्रक्रिया ईमानदार और पारदर्शी है, तो फिर इन आंकड़ों को सार्वजनिक करने में इतनी हिचक क्यों है?

लेकिन असली सवाल ये है — जब इतने बड़े आरोप और सबूत सामने आए, तो बीजेपी और उनकी करीबी मानी जाने वाली मीडिया (जिसे आम बोलचाल में ‘गोदी मीडिया’ कहा जाता है) को इतनी मिर्ची क्यों लग गई?

दरअसल, एक लोकतंत्र में चुनाव की निष्पक्षता पर सवाल उठना सबसे गंभीर मामला होता है। लेकिन यहां हालात उल्टे हैं — सवाल पूछने वाले को ही देशद्रोही, विरोधी एजेंडा चलाने वाला और लोकतंत्र को नुकसान पहुंचाने वाला बता दिया जाता है। टीवी चैनलों पर राहुल गांधी के आरोपों की जगह उनका मज़ाक उड़ाने, विषय को भटकाने और विपक्ष को बदनाम करने का खेल शुरू हो जाता है। जबकि देश की सबसे बड़ी पार्टी और पूरे विपक्ष के नेता और उनकी बातों को मीडिया को टीवी और अखबार में पहले पन्ने पर होनी चाहिए लेकिन ऐसा नहीं है, और टीवी पर मुर्गा का बांग लड़ाने का कार्यक्रम जारी है। मगर जनता के हितों की बात कोई भी बड़ी मीडिया नहीं करेगी क्योंकि मीडिया का माय-बाप तो सरकार है। क्योंकि सरकार से विज्ञापन मिलता है। देश के लोकतंत्र के लिए ख़तरा बन बैठा है आज का कुछ मीडिया हाउस।

राहुल

बीजेपी के नेताओं की प्रतिक्रिया भी देखने लायक थी। किसी ने आरोपों को “बेकार की राजनीति” कहा, तो किसी ने इसे “हार का बहाना” करार दिया। मगर किसी ने भी तथ्यों पर बहस करने या सबूतों का जवाब देने की कोशिश नहीं की।

यहां आम जनता भी सवाल पूछ रही है —

अगर आरोप झूठे हैं, तो चुनाव आयोग और सरकार इन आंकड़ों को साफ-साफ सामने क्यों नहीं रख देते?

मीडिया में खुली बहस और जांच क्यों नहीं हो रही?

क्या सचमुच वोट की गिनती और चुनाव प्रक्रिया में पारदर्शिता सिर्फ किताबों में रह गई है?

राहुल गांधी का यह कदम राजनीतिक हो सकता है, लेकिन इसमें उठाए गए सवाल हर उस भारतीय से जुड़े हैं जो लोकतंत्र में अपना वोट डालता है और चाहता है कि उसका वोट सुरक्षित और सही जगह पहुंचे।

आज जरूरत है कि देश की मीडिया सत्ता की गोद से उठकर जनता के बीच जाए, सच दिखाए, और सवाल पूछने वालों को चुप कराने की बजाय सत्ता से जवाब मांगे। लोकतंत्र में सवाल करना गुनाह नहीं, बल्कि सबसे बड़ा अधिकार है — और इस अधिकार की रक्षा हर नागरिक की जिम्मेदारी है।

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