बिहार विधानसभा चुनाव से पहले चुनाव आयोग द्वारा किए जा रहे Special Intensive Revision (SIR) यानी वोटर लिस्ट की गहन समीक्षा को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई करेगा. आयोग के आदेश के खिलाफ कोर्ट में एनजीओ, राजनीतिक दलों और सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा 28 याचिकाएं दायर की गई हैं. आयोग ने कोर्ट में एक हलफनामा दायर कर इस प्रक्रिया का बचाव किया है और पूरी तरह पारदर्शी, वैध और लोकतांत्रिक बताया है.
चुनाव आयोग का सुप्रीम कोर्ट में जवाब
चुनाव आयोग का कहना है कि 24 जून को दिया गया SIR का आदेश पूरी पारदर्शिता से लागू किया जा रहा है. इसका मकसद वोटर लिस्ट में करेक्शन करना और अपात्र लोगों को हटाना है. आयोग के मुताबिक, सभी प्रमुख राजनीतिक दलों ने इस प्रक्रिया में हिस्सा लिया और 1.5 लाख से ज्यादा बूथ लेवल एजेंट्स (BLA) को नियुक्त किया गया, जो पात्र वोटर्स से संपर्क कर रहे हैं लेकिन अब यही दल कोर्ट में इसका विरोध कर रहे हैं.
सुप्रीम कोर्ट में दाखिल चुनाव आयोग ने अपने हलफनामे में कहा, “वोट देने का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 326 और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1950 की धारा 16 और 19 और अधिनियम 1951 की धारा 62 के तहत कुछ पात्रताओं पर आधारित है, जैसे कि नागरिकता, उम्र और सामान्य निवास एक वोटर बनने के लिए अहम हैं. अपात्र लोगों को वोट देने का अधिकार नहीं है और इसलिए वे अनुच्छेद 19 और 21 के उल्लंघन का दावा नहीं कर सकते.”
SIR को लेकर याचिकाकर्ताओं की आपत्तियां
सुप्रीम कोर्ट में चुनाव आयोग के आदेश के खिलाफ
याचिकाकर्ताओं में मुख्य याचिकाकर्ता एनजीओ’एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स’ (ADR) है. चुनाव आयोग के जवाब में दायर अपने हलफनामे में एडीआर का कहना है कि यह SIR प्रक्रिया ईआरओ (‘Electoral Registration Officer ) को अनियंत्रित अधिकार देती है जिससे बड़ी संख्या में लोगों के मताधिकार छीने जा सकते हैं.
एनजीओ की दलील है, “चुनाव अयोग का 24 जून का एसआईआर का आदेश अगर रद्द नहीं किया गया तो मनमाने ढंग से और बिना उचित प्रक्रिया के लाखों नागरिकों को अपने प्रतिनिधियों को वोट के अधिकार से वंचित किया जा सकता है, जिससे देश में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव और लोकतंत्र बाधित हो सकता है, जो संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा हैं.” ADR का यह भी आरोप है कि चुनाव आयोग ने आधार कार्ड और राशन कार्ड को स्वीकार्य दस्तावेजों की सूची से हटा दिया है, लेकिन इसके पीछे कोई ठोस कारण नहीं बताया गया है.
बिहार में SIR प्रक्रिया में धोखाधड़ी के आरोप
NGO ने अपने हलफनामे में कहा कि यह पूरी SIR प्रक्रिया “मतदाताओं के साथ एक बड़ा धोखा” है. रिपोर्ट्स के मुताबिक, कई बूथ लेवल ऑफिसर (BLO) खुद फॉर्म भर रहे हैं, मृत लोगों के नाम से आवेदन जमा हो रहे हैं और जिन लोगों ने फॉर्म नहीं भरे हैं, उन्हें SMS द्वारा सूचित किया जा रहा है कि उनका फॉर्म सफलतापूर्वक सबमिट हो चुका है.
ADR ने अपनी याचिका में कहा है, “बिहार के ग्राउंड रिपोर्ट्स में सामने आया है कि BLO बिना मतदाताओं की जानकारी के फॉर्म ऑनलाइन अपलोड कर रहे हैं ताकि चुनाव आयोग का लक्ष्य पूरा किया जा सके. कुछ जगहों पर मृत लोगों के नाम से भी फॉर्म सबमिट हुए हैं.”
राजनीतिक दलों की भूमिका पर सवाल
ADR ने यह भी आरोप लगाया कि आयोग का यह कहना गलत है कि यह SIR प्रक्रिया राजनीतिक दलों की मांग पर शुरू हुई. NGO के मुताबिक, किसी भी राजनीतिक दल ने वोटर लिस्ट की नई समीक्षा की मांग नहीं की थी. एडीआर की याचिका के मुताबिक, असल में पार्टियों की शिकायत यह थी कि असली वोटर्स के नाम हटाए जा रहे हैं और फर्जी वोटर जोड़े जा रहे हैं.
राजद नेता मनोज झा और योगेन्द्र यादव ने अपनी याचिका में क्या कहा?
वोटर लिस्ट रिवीजन को लेकर राष्ट्रीय जनता दल के राज्यसभा सांसद मनोज झा ने भी एक याचिका दायर की है. उन्होंने अपने हलफनामे में कहा कि पहली बार ऐसा हो रहा है जब किसी नागरिक से मतदाता बनने के लिए नागरिकता का दस्तावेजी प्रमाण मांगा जा रहा है. उन्होंने कहा कि फार्म-6 में सिर्फ जन्मतिथि और निवास का प्रमाण देना होता था, जबकि अब “नागरिकता प्रमाण” भी मांगा जा रहा है. योगेन्द्र यादव ने भी एसआईआर को लेकर एक याचिका दायर की, जिसमें उनका कहना है कि इस प्रक्रिया के कारण लगभग 40 लाख वोटर्स का नाम वोटर लिस्ट से हटने की संभावना है.

सुप्रीम कोर्ट की पिछली टिप्पणी
10 जुलाई को जस्टिस सुधांशु धूलिया की अगुवाई वाली वेकेशन बेंच ने चुनाव आयोग को निर्देश दिया था कि आधार, वोटर ID और राशन कार्ड को वैध दस्तावेजों की सूची में शामिल किया जाए. कोर्ट ने आयोग को बिहार में सात करोड़ वोटर्स की सूची में सुधार प्रक्रिया जारी रखने की भी अनुमति दी थी.