क्या देश बड़ा है या धर्म? ये सवाल जितना सीधा दिखता है, जवाब उतना ही पेचीदा और भावनाओं से भरा हुआ है। भारत जैसे देश में, जहां हर गली-मोहल्ले में मंदिर की घंटी, मस्जिद की अज़ान, चर्च की प्रार्थना और गुरुद्वारे का कीर्तन सुनाई देता है, वहां धर्म इंसान की आत्मा से जुड़ा विषय है। लेकिन जब बात देश की आती है, तब क्या धर्म की दीवारें बनाकर देश को बांटा जा सकता है?

देश – सबका आशियाना, सबका सम्मान

भारत एक राष्ट्र नहीं बल्कि एक भावना है, एक ऐसा घर जो करोड़ों जातियों, धर्मों, बोलियों और विचारधाराओं को एक छत के नीचे समेटे हुए है। संविधान कहता है – “हम भारत के लोग…” – इसमें न हिन्दू लिखा है, न मुसलमान, न ईसाई, न सिख। इसका मतलब है कि सबसे पहले हम “भारतीय” हैं, फिर कुछ और।

1947 में जब देश बंटा, तो वो धर्म के नाम पर ही बंटा था। लाखों लोग मारे गए, हजारों महिलाओं की इज़्ज़त लूटी गई। तब हमारे पूर्वजों ने एक आवाज़ उठाई – अब कभी देश को धर्म से मत बांटिए।

धर्म – आस्था का विषय, राजनीति का नहीं धर्म हमें जोड़ने के लिए है, तोड़ने के लिए नहीं। रामायण, कुरान, बाइबल, गुरु ग्रंथ साहिब – हर ग्रंथ ने इंसानियत की बात की है। लेकिन आज राजनीति ने धर्म को हथियार बना लिया है।

आज नेता धर्म के नाम पर वोट मांगते हैं, दंगे कराते हैं, और इंसान को इंसान से लड़वाते हैं। कभी ‘लव जिहाद’ के नाम पर, कभी ‘घर वापसी’ के नाम पर, कभी ‘हलाल बनाम झटका’ के नाम पर। क्या यही धर्म है? नहीं, ये राजनीति है धर्म के लबादे में।

देश बड़ा है, क्योंकि वो सबको संभालता है जब बाढ़ आती है, तो सरकार हिंदू, मुस्लिम देखकर राहत नहीं देती। जब सर्जिकल स्ट्राइक होती है, तो जवान की गोली ये नहीं पूछती कि सामने वाला कौन से मज़हब का है। जब कोई अस्पताल में ऑक्सीजन के लिए तड़पता है, तब उसका धर्म नहीं, बल्कि उसकी जान मायने रखती है।

देश वही है, जो संकट में सबके साथ खड़ा हो। 2019-2020 की कोरोना महामारी ने ये साबित कर दिया कि देश बड़ा है, क्योंकि डॉक्टरों ने बिना धर्म देखे जानें बचाईं, और पड़ोसी ने बिना जात-पात देखे खाना बांटा।

धर्म जरूरी है, लेकिन निजी स्तर पर

हर व्यक्ति को अपने धर्म पर गर्व होना चाहिए, लेकिन जब वो गर्व दूसरों को नीचा दिखाने लगे, तब वो घमंड बन जाता है। और जब घमंड धर्म का रूप ले ले, तो वो समाज में जहर घोल देता है। यही कारण है कि बाबा साहब अंबेडकर ने कहा था — “धर्म को कभी राष्ट्रवाद से ऊपर मत रखो।”

तथ्य क्या कहते हैं?

संविधान का अनुच्छेद 25 कहता है कि भारत में हर नागरिक को धर्म की स्वतंत्रता है, लेकिन साथ ही अनुच्छेद 14 ये भी कहता है कि सभी नागरिक कानून की नजर में एक बराबर हैं।

भारत में 84% लोग धर्म के नाम पर हिंसा को गलत मानते हैं, फिर भी हर साल 200 से भी ज्यादा सांप्रदायिक घटनाएं होती हैं। क्यों?

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के अनुसार, 2022 में देश में धार्मिक दंगे के 378 मामले दर्ज हुए। यानी हर दिन औसतन एक दंगा। ये क्या दर्शाता है?

भावनात्मक सवाल – अगर देश न हो, तो धर्म कैसे बचेगा?

सोचिए, अगर भारत जैसा लोकतांत्रिक देश न होता, तो क्या हम सबको इतनी आज़ादी होती कि हम खुलेआम पूजा कर सकें? क्या एक मुस्लिम भाई नमाज़ पढ़ सकता, क्या एक हिन्दू भाई यज्ञ कर सकता, क्या एक ईसाई भाई चर्च में घंटी बजा सकता?

देश ही वो ढांचा है जो धर्म को जीवित रखता है। अगर देश बचेगा, तभी मंदिर, मस्जिद, चर्च और गुरुद्वारा भी बचेंगे।

देश

पहले देश, फिर धर्म

हमें ये समझना होगा कि धर्म निजी आस्था है, और देश सामूहिक जिम्मेदारी। अगर देश नहीं होगा, तो धर्म की रक्षा कौन करेगा? अगर देश टूटेगा, तो मंदिर-मस्जिद भी राख हो जाएंगे।

देश वो मां है, जो सबको पालती है। और धर्म उस मां का संस्कार है। अगर मां ही नहीं बचेगी, तो संस्कार कैसे बचेगा?

तो सवाल का जवाब साफ है —

धर्म जरूरी है, लेकिन देश सबसे बड़ा है।
पहले देश, फिर धर्म — तभी भारत मजबूत रहेगा।

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