भारत के इतिहास में कुछ ऐसे नेता हुए हैं जिनका कद उनके पद से कहीं बड़ा था। उन्हीं में से एक नाम है लाल बहादुर शास्त्री जी, जो भारत के दूसरे प्रधानमंत्री बने। भले ही उनका कार्यकाल केवल 19 महीने का रहा हो, लेकिन उनकी सादगी, ईमानदारी और देशभक्ति ने उन्हें करोड़ों भारतीयों के दिलों में हमेशा के लिए अमर कर दिया।

सादगी भरा जीवन

लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर 1904 को उत्तर प्रदेश के मुगलसराय (अब पंडित दीनदयाल उपाध्याय नगर) में हुआ। वे बचपन से ही बेहद साधारण और अनुशासनप्रिय थे। उनके पिता की जल्दी मृत्यु हो गई थी, जिससे परिवार आर्थिक कठिनाइयों से गुज़रा। बावजूद इसके, शास्त्री जी ने कभी हार नहीं मानी। वे पैदल ही कई किलोमीटर चलकर स्कूल जाया करते थे। यह संघर्ष उनके भीतर की मजबूत इच्छाशक्ति और मेहनत की पहचान थी।

भारत की राजनीति में ईमानदारी का प्रतीक

शास्त्री जी राजनीति में आने के बाद भी अपनी सादगी और ईमानदारी के लिए जाने जाते रहे। कहा जाता है कि प्रधानमंत्री बनने के बाद भी उनके पास न तो निजी कार थी और न ही किसी तरह का दिखावा। यहां तक कि एक बार उनकी पत्नी ने किस्त पर पंखा खरीदा, तो शास्त्री जी ने प्रधानमंत्री होते हुए भी उस किस्त का भुगतान अपनी जेब से किया।

जय जवान, जय किसान का नारा

साल 1965 में जब भारत-पाक युद्ध हुआ, तब शास्त्री जी ने देश को साहस और आत्मविश्वास से भर दिया। उन्होंने “जय जवान, जय किसान” का नारा देकर यह संदेश दिया कि देश की रक्षा और देश का अन्नदाता दोनों ही भारत की ताकत हैं। इस नारे ने किसानों और सैनिकों दोनों को गर्व और प्रेरणा से भर दिया। आज भी यह नारा हर भारतीय के दिल को छूता है।

ताशकंद समझौता और रहस्यमयी मृत्यु

भारत-पाक युद्ध के बाद 10 जनवरी 1966 को शास्त्री जी ने ताशकंद (अब उज्बेकिस्तान) में शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए। लेकिन उसके कुछ ही घंटे बाद उनकी रहस्यमयी मृत्यु हो गई। यह खबर सुनकर पूरा देश स्तब्ध रह गया और लाखों लोगों की आंखों से आंसू बह निकले। उनकी मृत्यु आज भी एक रहस्य बनी हुई है, लेकिन लोगों के दिलों में उनकी छवि एक सच्चे और ईमानदार नेता की है। उनकी सादगी, देशभक्ति और ईमानदारी के लिये मरणोपरान्त भारत रत्‍न से सम्मानित किया गया

भारत
शास्त्री जी ने ताशकंद (अब उज्बेकिस्तान) में शांति समझौते पर हस्ताक्षर करते हुए

भावनात्मक पहलू

लाल बहादुर शास्त्री का जीवन हमें यह सिखाता है कि सच्चा नेतृत्व पद या ताकत से नहीं, बल्कि सादगी, ईमानदारी और जनता के प्रति समर्पण से आता है। वे इतने सरल और सहज थे कि आज के समय में उनकी तुलना किसी से करना मुश्किल है। आज जब हम उनके जीवन को याद करते हैं तो यह भाव अपने आप उमड़ आता है कि काश हमारे नेताओं में भी शास्त्री जी जैसी सादगी और ईमानदारी होती।

छोटे कद वाला इंसान भी अपने कर्मों से इतिहास में महान बन सकता

लाल बहादुर शास्त्री जी केवल एक प्रधानमंत्री नहीं, बल्कि सादगी और सच्चाई की मिसाल थे। उन्होंने यह साबित किया कि छोटे कद वाला इंसान भी अपने कर्मों से इतिहास में महान बन सकता है। उनके विचार और नारे आज भी देश को नई ऊर्जा और दिशा देते हैं।

शास्त्री जी की याद हर भारतीय के दिल में आज भी एक भावनात्मक लहर जगाती है—कि सच्चा देशभक्त वही है, जो देश और जनता के लिए पूरी ईमानदारी से काम करे।

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