आख़िर महागठबंधन क्यों हारी बिहार? – जानें हार के कारण..
महागठबंधन (INDIA / MGB) की बिहार में हार के कई कारण हैं — नीचे विस्तार से चर्चा किया है .. “आख़िर महागठबंधन क्यों हारी बिहार?” — सामाजिक, रणनीतिक, राजनीतिक, और संगठनात्मक स्तर पर:
महागठबंधन (MGB) की हार के मुख्य कारण
- नेतृत्व और समन्वय की कमी
गठबंधन में RJD, कांग्रेस और अन्य पार्टियों के बीच नेतृत्व को लेकर असमंजस और लड़ाई रही।
- सीट-शेयरिंग में देरी और स्पष्ट रूप से रणनीति न बनने की वजह से गठबंधन एकजुट नज़र नहीं आया।
- “Tejashwi-centric” अभियान: महागठबंधन का प्रचार अधिकतर तेजस्वी यादव के इर्द-गिर्द घूमता दिखा, जिससे अन्य सहयोगी पार्टियों (जैसे कांग्रेस, लेफ्ट) को बराबर जगह नहीं मिली।
- जाति समीकरण में गलत गणना
RJD ने बहुत अधिक यादव उम्मीदवार उतारे (लगभग तीस फीसदी), जिससे “यादव-पहचान” वाली छवि और गहरी हो गई।
- महागठबंधन ने उम्मीद की थी कि पिछड़े (EBC) और अन्य वर्ग उनसे जुड़ेंगे, लेकिन ऐसा बहुत हद तक नहीं हुआ; कुछ विश्लेषकों ने कहा कि EBC वोट बहुत हद तक NDA की ओर खिंचे रहे।
- इसलिए, बनाये गए जातिगत गठबंधन (या वोट मैथमेटिक्स) पूरी तरह वैसे काम नहीं कर पाया जैसा सोचा गया था।
- कांग्रेस का कमजोर प्रदर्शन
- कांग्रेस गठबंधन की सबसे कमजोर कड़ी रही।
- उसके पास जमीनी संगठन (ग्राउंड नेटवर्क) काफी कमजोर था, बूथ मैनेजमेंट में कमी थी, और स्थानीय स्तर पर कांग्रेस ने पर्याप्त प्रभाव नहीं जमाया।
- कांग्रेस की वोट शेयर गिर गई, और उसके उम्मीदवारों की चयन पॉलिसी पर असंतोष भी रहा।
- आलोचनात्मक (Negative) एजेंडा पर निर्भरता
- महागठबंधन ने बहुत ज्यादा “एंटी-इंकम्बेंसी” (वर्तमान सरकार विरोध) को अपनी रणनीति का आधार बनाया।
- उन्होंने “वोट चोरी”, “संस्थान सुधार” जैसी बातों को प्रचार में आगे रखा, लेकिन यह मुख्य वर्गों तक व्यापक रूप से नहीं पहुंचा या प्रत्यक्ष असर नहीं दिखा।
- इसके बजाय, NDA ने विकास, महिला कल्याण, और स्थिरता का सकारात्मक एजेंडा जारी किया — जैसे “महिला रोजगार योजना” आदि।
- महागठबंधन की बातों में क्लियर और आकर्षक विजन की कमी थी — वे सिर्फ शिकायत नहीं छोड़ सकें, कुछ ठोस और नए वादे नहीं दे पाए।
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- सहयोगी पार्टियों की कमजोर कड़ी और संगठनात्मक ढीलापन
- कुछ सहयोगी पार्टियों (जैसे VIP) का प्रदर्शन बहुत खराब रहा, जिससे गठबंधन के वोट बैंक मजबूत नहीं हो पाए।
- गठबंधन के भीतर “फ्रेंडली लड़ाइयाँ” (same alliance के अंदर दूसरे उम्मीदवार) भी हुई हैं, जिससे वोट बंटा।
- स्थानीय स्तर पर संगठन की सक्रियता (पत्रकारों में, बूथ स्तर पर) कम थी — बहुत जगह गठबंधन का जनसमर्थन और वर्कर लेवल पर मजबूती नहीं दिखा।
- राजनीतिक छवि और रणनीति में चूक
- महागठबंधन का “प्रो-मुस्लिम” इमेज कुछ मतदान क्षेत्रों में उनकी मजबूती नहीं बढ़ा पाया, और कुछ लोगों ने इसे एक पहचान पर आधारित राजनीति माना।
- पार्टी ने पुराने वोटबैंक (मुस्लिम-यादव) पर बहुत भरोसा किया, लेकिन नए/अनपारंपरिक वोटर (जैसे युवा, महिलाएँ, गैर-यादव पिछड़े वर्ग) को पकड़ने में चूक हुई।
- महागठबंधन का एजेंडा “जन-उम्मीदों” (रोजगार, युवा, पलायन) को पूरी तरह न उभार पाने की वजह से उनकी अपील सीमित रही।
- वोट ट्रांसफर और गठबंधन मैकेनिज्म में गड़बड़
- वोट ट्रांसफर (जहाँ एक सहयोगी पार्टी के वोट दूसरे सहयोगी को जाने की उम्मीद होती है) में गठबंधन नकारात्मक रूप से प्रभावित हुआ क्योंकि सहयोगी पार्टियों के बीच सहयोग और संवाद कमजोर था।
- गठबंधन ने समय पर और प्रभावी साबित न होने वाले सीट-शेयर फॉर्मूले बनाए, जिससे मतदाता भ्रमित हुए और गठबंधन की एकता कम दिखी।
- NDA की ताकतवर रणनीति और लाभ
- NDA ने वेलफेयर (कल्याण) स्कीमों का जोरदार उपयोग किया — खासकर महिलाओं को लक्षित योजनाओं के जरिए उनका समर्थन मजबूत किया।
- NDA ने “जंगल राज” (पुरानी राजनीतिक हिंसा/अशांति) की पुरानी छवि को फिर से उठाया और उसे महागठबंधन (विशेषकर RJD) से जोड़कर डर का एजेंडा चलाया।
- साथ ही, NDA के अंदर बेहतर संगठन, बूथ-स्तर की मज़बूती और एक सुसंगत प्रचार रणनीति रही, जिसे महागठबंधन मुकाबला नहीं कर पाया।

- नीतीश कुमार का महिलाएं के लिए मास्टर स्टॉक्स
नीतीश कुमार के वो प्रमुख “मास्टर-स्ट्रोक” (रणनीतिक फैसले), जो महिलाओं के सशक्तिकरण (empowerment) और उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति सुधारने की दिशा में थे:
नीतीश कुमार का महिलाओं के लिए मास्टर स्टॉक्स (Master-strokes)
- मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना
- नीतीश सरकार ने “मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना” की घोषणा की है, जिसके तहत “हर परिवार की एक महिला” को शुरुआत में ₹10,000 दी जाएंगी ताकि वह स्वरोजगार शुरू कर सके।
- छह महीने बाद, अगर व्यवसाय अच्छा चलता है, तो अतिरिक्त “₹2 लाख तक” की आर्थिक सहायता (लोन-समर्थन) देने का वादा किया गया है।
- यह प्रमाणित करने की बात की गई है कि यह सहायता “माफ” की जा सकती है — यानी शुरुआती ₹10,000 को लौटाना ज़रूरी नहीं होगा।
- साथ ही, गांवों और शहरों में ऐसे “हाट-बाजार” विकसित किये जाएंगे, जहाँ महिलाएं अपने बनाए उत्पाद बेच सकें।
- यह योजना महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक बहुत बड़ा कदम है।
- सरकारी नौकरी में 35% आरक्षण
- नीतीश कुमार ने महिलाओं के लिए सरकारी नौकरियों में 35% “होरिज़ॉन्टल आरक्षण” देने की घोषणा की है। इसका मतलब है कि विभिन्न विभागों और सेवाओं में, हर स्तर पर, “महिला” को एक हिस्सा आरक्षित रहेगा।
- यह आरक्षण भर्ती प्रक्रिया में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने और उनकी आर्थिक तथा सामाजिक स्थिति मजबूत करने की दिशा में है।
- हाल ही में, यह कहा गया है कि इसमें उन महिलाओं को प्राथमिकता मिलेगी जो बिहार की “स्थायी निवासी” हों।
- आशा और ममता कार्यकर्ताओं के लिए प्रोत्साहन बढ़ाना
- नीतीश ने आशा और ममता (“Mamta”) वर्कर्स के इंसेंटिव (प्रोत्साहन राशि) में बड़ी वृद्धि की है। आशा वर्कर की प्रोत्साहन राशि “तीन गुना” बढ़ा दी गई है, और ममता वर्कर्स की राशि “दोगुनी” की गई है।
- यह निर्णय स्वास्थ्य-सेवा क्षेत्र में काम करने वाली महिलाओं (आशा वर्कर्स, मातृत्व-सहायक) के योगदान को मान्यता देने का संकेत है, और उन्हें आर्थिक रूप से मजबूत करने की दिशा में भी है।
- जीविका दीदियों को सहकारी संस्थाओं में अधिकार देना
- “जीविका दीदियों” (स्व-सहायता समूहों में जुड़ी महिलाओं) को सहकारी समितियों में सदस्यता देने का फैसला लिया गया है।
- इसके अलावा, उन्हें “कॉर्पोरेट / सहकारी चुनावों में वोटिंग का अधिकार” भी दिया गया है — यह राजनीति और आर्थिक निर्णयों में उनकी भागीदारी बढ़ाता है। (
- सरकार एक राज्योंस्तरीय वित्तीय संस्थान बनाने की तैयारी कर रही है, जो इन जीविका दीदियों को लोन देगा।
- यह कदम “जननीति + महिला सशक्तिकरण” की बहुत मजबूत मिसाल माना जा रहा है।
- पेंशन-स्कीम में बढ़ोतरी
- नीति-निर्माण में यह भी कदम उठाया गया है कि सामाजिक सुरक्षा पेंशन में वृद्धि हो, खासकर विधवा महिलाओं और बुजुर्ग महिलाओं को फायदा हो।
- इससे उन महिलाओं को मासिक आर्थिक सहारा मिलेगा, जो पूरी तरह से आर्थिक रूप से निर्भर-स्थिति में हो सकती थीं।
“नीतीश कुमार” के इन मास्टर-स्ट्रोक्स का तोड़ न ही “महागठबंधन” के पास था और न ही महिलाएं का विश्वास व साथ, वहीं महिलाएं का साथ और उनका विश्वास “नीतीश कुमार” के साथ होना “महागठबंधन” का मुख्या कारण था बिहार हारने का..।
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निष्कर्ष और बात करने वाली सीखें
- महागठबंधन की हार सिर्फ एक चुनावी परिणाम नहीं है, बल्कि यह “विरोधी राजनीति में रणनीतिक और संगठनात्मक कमजोरी” पर एक बड़ा संकेत है।
- केवल पुराने वोट बैंक (जातिगत या वंश-आधारित) पर भरोसा करना अब काफी नहीं है — विपक्ष को “नए मुद्दों”, नए वोटरों (जैसे युवा, महिलाएं), और बेहतर जमीन नेटवर्क पर काम करना होगा।
- गठबंधन बनाने की रणनीति में “सम्मान और बराबरी” की भावना होनी चाहिए — सिर्फ एक नेता के इर्द-गिर्द गठबंधन दिखे, तो वह प्रभावी नहीं होगा।
- विपक्ष को न सिर्फ “एंटी-इंकम्बेंसी” पर भरोसा करना चाहिए, बल्कि “एक सकारात्मक, निर्माणात्मक एजेंडा” पेश करना चाहिए जिसे आम जनता समझ सके और जिसे लागू किया जा सके।
- भविष्य में, महागठबंधन को सीट-शेयरिंग, उम्मीदवार चयन, और बूथ प्रबंधन जैसे ऑपरेशनल मामलों में अधिक सावधानी बरतनी होगी ताकि वोट लीकिंग और फूट से बचा जा सके।
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Note:
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