बिहार की सियासत फिर एक बार करवट ले रही है। हवा में एक सवाल तैर रहा है — क्या नीतीश कुमार की अगुवाई वाली मौजूदा सरकार फिर से सूबे की जनता का भरोसा जीत पाएगी, या इस बार जनता बदलाव का बटन दबाएगी?
बिहार की राजनीति हमेशा से उठापटक और जोड़तोड़ की मिसाल रही है। कभी बीजेपी के साथ, तो कभी महागठबंधन में आकर नीतीश कुमार ने सत्ता की गद्दी तो संभाल ली, मगर इस बार का चुनाव में मामला थोड़ा अलग है। वजह है – जनता का बदला मूड, जो अब सिर्फ वादे नहीं, नतीजे और नीयत देखती है।
बिहार की जनता क्या कह रही है?
गांव-देहात से लेकर शहर की गलियों तक, बात करते हैं तो लोग खुलकर बोलते हैं:
“20 साल से सुशासन बाबू हैं, लेकिन नौकरी कहाँ है?”
“पानी, बिजली, स्कूल, अस्पताल का हाल वही पुराना है।”
“अबकी बार बदलना है, वरना अगली पीढ़ी भी ऐसे ही पलायन करेगी।”
जहाँ एक ओर कुछ लोग नीतीश सरकार की योजनाओं जैसे ‘हर घर नल जल’, ‘सात निश्चय योजना’ की तारीफ करते हैं, वहीं बड़ी तादाद में युवा वर्ग, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और कानून व्यवस्था पर नाराज़ भी दिखता है।
ताजा सियासी आंकड़े और संकेत:
2024 लोकसभा चुनाव में बीजेपी को बिहार में 17 सीटें मिलीं, जबकि नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू को सिर्फ 6 सीटें। ये खुद एक बड़ा संकेत है कि जनता का भरोसा अब डगमगाने लगा है।
आरजेडी (तेजस्वी यादव) ने युवाओं और बेरोजगारों को लेकर जो मुद्दा उठाया, वो लोगों को छू रहा है। युवाओं में एक भाव है — अब बारी नई सोच की है।

ग्राउंड रिपोर्ट्स और सर्वे कह रहे हैं कि इस बार एंटी-इनकंबेंसी (सरकार से नाराज़गी) का असर साफ दिख सकता है।
भावनात्मक पहलू: जनता का टूटा भरोसा
बिहार के युवा, जिनका सपना था कि यहीं नौकरी मिले, यहीं सम्मान मिले — आज दिल्ली, पंजाब, गुजरात, या मुंबई की फैक्ट्रियों में मज़दूरी कर रहे हैं। मां-बाप की आँखें हर त्यौहार बेटे का इंतज़ार करती हैं, मगर बेटा लौटे तो कैसे? ना रोज़गार है, ना भविष्य की कोई गारंटी।
“सरकार आती है, बड़े-बड़े भाषण देती है, लेकिन हमारे बेटे फिर ट्रेन पकड़ते हैं और बाहर चले जाते हैं।” — एक मां की बात, जिसने अपना बेटा पंजाब भेजा।
आने वाला वक्त क्या कहता है?
अगर विपक्ष (विशेषकर आरजेडी और कांग्रेस) बेरोजगारी, शिक्षा, स्वास्थ्य और पलायन जैसे मुद्दों पर फोकस करती है, तो नीतीश सरकार की राह मुश्किल होगी।
बीजेपी से गठबंधन की फिर से कोशिश करने वाले नीतीश कुमार की छवि अब स्थिर नहीं रही, और जनता अब ‘पलटी मारने वाले नेता’ के तौर पर उन्हें देखती है।
2025 विधानसभा चुनाव में त्रिकोणीय मुकाबला तय माना जा रहा है — जेडीयू-बीजेपी गठबंधन, महागठबंधन (आरजेडी-कांग्रेस-लेफ्ट) और तीसरी ताकत के तौर पर छोटे दल।
सूबे की राजनीति रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे बुनियादी मुद्दों पर
बिहार की राजनीति अब उस मोड़ पर है, जहाँ जनता वादों से नहीं, परिणामों से फैसला करेगी। जो नेता जनता की भावनाओं को समझेगा, उनके दुख-दर्द की बात करेगा और रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे बुनियादी मुद्दों को हल करेगा — उसी को गद्दी मिलेगी।
इस बार की जंग सिर्फ कुर्सी की नहीं, भरोसे की होगी।
बिहार की जनता अब जाग चुकी है। नारे और जातिवाद नहीं, इस बार सवाल है — “क्या सरकार हमारे बच्चों का भविष्य बना सकती है?” और इसी सवाल का जवाब तय करेगा बिहार की अगली सरकार।
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