बिहार की धरती हमेशा से संघर्ष और प्रतिभा की जन्मभूमि रही है। यहाँ के नौजवान मेहनती हैं, काबिल हैं, पर अफसोस — उन्हें अपनी ही मिट्टी में मौका नहीं मिल पाता। लाखों युवाओं के सपने रोज़ ट्रेन की खिड़की से झांकते हैं, जब वे दिल्ली, मुंबई, पंजाब या गुजरात की ओर नौकरी की तलाश में निकलते हैं। सवाल उठता है — आखिर कब तक बिहार के युवाओं को घर छोड़कर जाना पड़ेगा?
बीते दो दशकों में बिहार में विकास के कई दावे हुए, योजनाओं के नाम पर खूब शोर हुआ, पर सच यह है कि आज भी लाखों डिग्रीधारी युवा बेरोजगार घूम रहे हैं। सरकारी भर्ती प्रक्रिया या तो वर्षों तक लटकी रहती है या फिर भ्रष्टाचार के जाल में फंस जाती है। बीपीएससी, एसएससी, टीईटी जैसी परीक्षाओं के नतीजे आने में सालों लग जाते हैं। कई बार तो परीक्षा होती है, रिजल्ट आता है, फिर पेपर लीक के नाम पर रद्द भी हो जाता है — और युवाओं का मनोबल टूट जाता है।
आज का युवा सिर्फ नौकरी नहीं चाहता, बल्कि सम्मानजनक जीवन और सुरक्षित भविष्य चाहता है। उसे यह नहीं चाहिए कि उसे झूठे वादों से बहलाया जाए। उसे चाहिए कि बिहार में उद्योग लगें, स्थानीय स्तर पर रोज़गार पैदा हो, शिक्षा की गुणवत्ता बढ़े, और सरकारी स्कूल-कॉलेज में भी वैसी ही व्यवस्था हो जैसी बड़े शहरों में है।
राजनीति में हर चुनाव में रोजगार का मुद्दा उठता है, लेकिन नतीजा वही “जुमलों” तक सीमित रह जाता है। इस बार बिहार का युवा ठान चुका है — अब वोट भावनाओं पर नहीं, भविष्य पर होगा। अब न जात-पात चलेगी, न झूठे वादों की राजनीति। इस बार हर वोट एक संदेश होगा — “हमें नौकरी चाहिए, अवसर चाहिए, बेहतर शिक्षा चाहिए।”
एक सच्चाई यह भी है कि बिहार के युवाओं ने देश के हर कोने में अपनी मेहनत और बुद्धिमानी से नाम कमाया है। डॉक्टर, इंजीनियर, शिक्षक, वैज्ञानिक, सेना के जवान — हर जगह बिहार की मिट्टी के लाल हैं। लेकिन यही नौजवान जब अपने राज्य में कुछ करना चाहता है, तो व्यवस्था उसे निराश कर देती है।
बिहार के युवाओं की पीड़ा
बिहार के युवाओं की पीड़ा अब सिर्फ “मुद्दा” नहीं रही, बल्कि यह चुनाव की दिशा तय करने वाली ताकत बन चुकी है।
इसलिए इस बार हर नौजवान का यह नारा होना चाहिए —
“वोट उसी को, जो रोजगार दे सके।”
“वोट उसी को, जो शिक्षा को मजबूत बनाए।”
“वोट उसी को, जो पलायन रोके।”

बिहार में प्रमुख आँकड़े
Bihar की कुल बेरोजगारी दर 2022-23 में करीब 3.4% थी, जबकि राष्ट्रीय औसत लगभग 3.2% रहा।
युवा (15-29 वर्ष, शहरी क्षेत्र) में बेरोजगारी का स्तर लगभग 10.8% है।
राज्य में श्रम भागीदारी दर (Labor Force Participation Rate) केवल 43.4% है, जो कि राष्ट्रीय औसत लगभग 56% से काफी कम है।
शिक्षण व बजट की दिशा में सकारात्मक कार्रवाई: शिक्षा के लिए अगले बजट (2025-26) में राज्य द्वारा कुल खर्च का 21.7% राशि आवंटित की गई है, जो अन्य राज्यों की औसत (लगभग 15%) से अधिक है।
प्रवासन-दृष्टि से महत्वपूर्ण तथ्य: राज्य से करीब 74.54 लाख लोग बाहर गए थे, जिनमें लगभग 30% (22.65 लाख) ने रोजगार-कारण से प्रवासन किया।
व्याख्या व भावनात्मक जोड़
3.4 % की बेरोजगारी दर एक तरह से “कम” लग सकती है, लेकिन असली विषय है – युवा और शहरी बेरोजगारी, जो 10.8 % के स्तर पर है। इसका मतलब है कि बहुत से युवा डिग्री लेकर भी काम नहीं पा रहे हैं।
श्रम-भागीदारी दर 43.4% बताती है कि राज्य में बहुसंख्य युवा/महिलाएँ पूरी तरह कार्यबल में शामिल नहीं हो पा रही हैं — यह एक बड़ी सामाजिक चेतावनी है।
शिक्षा पर आवंटन बढ़ना अच्छी बात है, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि पूरे राज्य में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा-और उसके बाद नौकरी तुरंत मिल रही है — यहाँ “वादा” और “वास्तविकता” में अंतर है।
प्रवासन संख्या बताती है कि किस तरह बिहार के युवा अपने घर-गाँव छोड़कर बेहतर अवसरों की तलाश में निकल रहे हैं — यह सिर्फ व्यक्तिगत कहानी नहीं, यह सामाजिक-राजनीतिक संकेत है कि “यहाँ राह नहीं मिली”।
क्योंकि अब बिहार के युवा सिर्फ सुनना नहीं चाहते — वे बदलाव देखना चाहते हैं।
और जब युवा जागता है, तो इतिहास बदल जाता है।
