Kargil War Facts : कारगिल विजय दिवस हर साल 26 जुलाई को मनाया जाता है। यह दिन 1999 में भारत की विजय और वीर जवानों की बहादुरी को याद करने के लिए समर्पित है। इस युद्ध में हमारे सैनिकों ने दुर्गम पहाड़ियों पर दुश्मनों को पीछे धकेलते हुए अद्भुत साहस दिखाया। यह दिवस हमें देशभक्ति, बलिदान और सेना के अदम्य हौसले की प्रेरणा देता है। आइए, इन नायकों को श्रद्धांजलि अर्पित करें।
कारगिल विजय दिवस
1. कारगिल युद्ध कहाँ और क्यों हुआ?
कारगिल युद्ध जम्मू-कश्मीर के कारगिल ज़िले में एलओसी (LOC) के पास हुआ था।
पाकिस्तानी सेना ने घुसपैठियों के रूप में ऊँचाई वाली पहाड़ियों पर कब्जा कर लिया था।
उनका मकसद था — लद्दाख और कश्मीर के बीच संपर्क काटना और सीमा पर तनाव बढ़ाना।
2. युद्ध की शुरुआत – कब और कैसे?
युद्ध की शुरुआत 3 मई 1999 को हुई।
करीब 5000 पाकिस्तानी सैनिकों ने चुपके से ऊँचाई वाले इलाकों में कब्जा कर लिया था।
जैसे ही भारत सरकार को खबर मिली, ‘ऑपरेशन विजय’ शुरू किया गया।
यही ऑपरेशन भारत की जीत का कारण बना।
3. पाकिस्तान का धोखा – “मुझाहिदीन” का मुखौटा
पाकिस्तानी सेना ने दावा किया कि घुसपैठिए “मुझाहिदीन” हैं।
असल में, ये सभी प्रशिक्षित पाकिस्तानी सैनिक थे।
उनका मकसद था – सियाचिन ग्लेशियर पर भारत का दबाव घटाना और कश्मीर मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मंच तक पहुँचाना।
4. शांति समझौता टूटा – लाहौर से कारगिल तक
फरवरी 1999 में भारत-पाकिस्तान ने “लाहौर घोषणा पत्र” पर हस्ताक्षर किए थे।
लेकिन कुछ ही महीनों बाद पाकिस्तान ने विश्वासघात करते हुए कारगिल में घुसपैठ कर दी।
इससे दोनों देशों के बीच तनाव और अधिक बढ़ गया।
5. पाकिस्तान का ‘ऑपरेशन बद्र’
पाकिस्तान ने इस घुसपैठ को “ऑपरेशन बद्र” नाम दिया।
उद्देश्य था —
कश्मीर और लद्दाख को तोड़ना
सियाचिन से भारतीय सेना को पीछे हटाना
कश्मीर मुद्दे को दुनिया के सामने उठाना
6. भारतीय वायुसेना की भूमिका – ऑपरेशन ‘सफेद सागर’
भारतीय वायुसेना ने युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
वायुसेना ने मिग-21, मिग-23, मिग-27, जैगुआर और मिराज-2000 जैसे विमानों का इस्तेमाल किया।
ऑपरेशन ‘सफेद सागर’ के तहत दुश्मन की चौकियों पर सटीक हमले किए गए।
7. गोले और गोलियों की बारिश
इस युद्ध में लगभग 2.5 लाख बम और गोले चलाए गए।
हर दिन 5000 से ज़्यादा गोलियां चलाई गईं।
टाइगर हिल को वापस लेते समय सिर्फ एक दिन में 9000 गोलों की बमबारी हुई।
यह द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सबसे भारी बमबारी में से एक थी।
8. ऊंचाई पर लड़ा गया सबसे कठिन युद्ध
यह युद्ध समुद्र तल से 18,000 फीट की ऊंचाई पर लड़ा गया था।
पथरीले और बर्फीले इलाकों में लड़ना किसी चमत्कार से कम नहीं था।
लेकिन भारतीय जवानों ने कहा —
“मुश्किल वक्त ज्यादा नहीं टिकता, मजबूत लोग टिकते हैं।”
नमन उन 527 शहीदों को
इस युद्ध में भारत के 527 बहादुर सैनिक शहीद हुए और 1300 से अधिक घायल हुए।
उनकी कुर्बानी के कारण आज हम आज़ादी की साँस ले रहे हैं।
उनकी शहादत को याद रखने का सबसे अच्छा तरीका है —
एक अच्छा नागरिक बनना, ऐसा नागरिक जिसके लिए कोई मर मिटे।
चाह नहीं मैं सुरबाला के
गहनों में गूंथा जाऊँ,
चाह नहीं, प्रेमी-माला में
बिंध प्यारी को ललचाऊँ।
चाह नहीं, सम्राटों के शव
पर हे हरि, डाला जाऊँ,
चाह नहीं, देवों के सिर पर
चढ़ूँ भाग्य पर इठलाऊँ।
मुझे तोड़ लेना वनमाली!
उस पथ पर देना तुम फेंक,
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने
जिस पर जाएं वीर अनेक।
जय हिन्द!