आज कल के समय में ऑनलाइन ट्रांजेक्‍शन तेजी से बढ़ रहा है, लेकिन तमाम लोग आज भी लोग ऑनलाइन लेनदेन न करके चैक से पेमेंट करना पसंद करते हैं. वैसे भी बड़े लेन देन के लिए चैक का ही उपयोग किया जाता है. ऐसे में आपको चैक से पेमेंट बहुत सोच समझकर करना चाहिए क्‍योंकि चैक भरते समय बड़ी सावधानी बरतनी पड़ती है. और जरा सी चूक पर चैक बाउंस हो सकता है और चैक बाउंस होने पर आपको जुर्माना भी भरना पड़ सकता है. कुछ परस्थितियों में जेल की हवा भी खानी पड़ सकती है. अगर आप भी चैकबुक का इस्तेमाल करते हैं और कभी आपका चैक बाउंस न हो जाए, तो आपके लिए इसके नियम के बारे में जानना जरूरी है। तो चलो आज हम इस आर्टिकल के जरिए जानते है की क्या है चैक के नियम।

कई कारणों से होते है चैक बाउंस: कई कारणों से चैक बाउंस हो जाता है जैसे अकाउंट में बैलेंस न होना या फिर बैलेंस कम होना, सिग्‍नेचर का बदलना, शब्‍द लिखने में गलती, अकाउंट नंबर में गलती, ओवर राइटिंग आदि. इसके अलावा चैक की समय की सीमा समाप्‍त होना, चैककर्ता का अकाउंट बंद होना पर, चैक पर कंपनी की मुहर न होना, ओवरड्राफ्ट की लिमिट को पार करना आदि वजहों से भी चैक बाउंस हो सकता है. अगर किसी परस्थिति में चैक बाउंस हो जाता है, तो बैंक इसका फाइन आपके खाते से ही वसूल कर लेती है. चैक बाउंस होने पर देनदार को इसकी सूचना बैंक को देनी होती है, जिसके बाद उस व्यक्ति को एक महीने के अंदर अंदर भुगताना करना पड़ता है.

चैक बाउंस होने पर जुर्माना की रकम:  चैक बाउंस होने पर बैंक अपने ग्राहक से जुर्माना वसूलते हैं ये जुर्माना कई वजहों के हिसाब से अलग अलग हो सकता है  ये चार्जेस अलग-अलग बैंकों के अलग-अलग होते हैं  ये जुर्माना लगभग 100 रुपये से लेकर  800 रुपये तक हो सकता है उसे 2 साल तक की जेल या चैक में भरी राशि का दोगुना जुर्माना या दोनों लगाया जा सकता है. हालांकि ये उसी स्थिति में होता है जब चैक देने वाले के अकाउंट में पर्याप्‍त अकाउंट बैलेंस न हो और बैंक चैक को डिसऑनर कर दे।

क्या हो सकती है जेल:  भारत में चैक बाउंस होने को एक अपराध माना जाता है। नियमों के अनुसार, अगर कोई चैक बाउंस होने के बाद एक महीने के अंदर देनदार चैक का भुगतान नहीं कर पाता है, तो फिर उसके नाम एक लीगल नोटिस जारी हो सकता है. फिर इस नोटिस का जवाब उसे 15 दिनों के अंदर नहीं मिलता, तो ऐसे व्यक्ति के खिलाफ ‘Negotiable Instrument Act 1881’ के सेक्शन 138 के अंतर्गत केस तक किया जा सकता है. देनदार पर केस दर्ज होने के बाद उस पर जुर्माना लगाया जा सकता है या फिर दो साल की जेल हो सकती है या दोनों का प्रावधान भी हो सकता है।

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