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BJP Foundation Day : 6 अप्रैल 1980 को भारतीय राजनीति में आयी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) आज देश की प्रमुख राजनीतिक दल है। इसकी प्राथमिक सदस्यता में यह दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा दल है। जो दो सीटों पर सिमटने वाली पार्टी अब पिछले 2019 के लोकसभा चुनाव में यह 303 सीटों के साथ बड़ी जीत हासिल की थी।

श्‍यामा प्रसाद मुखर्जी और दीनदयाल उपाध्‍याय ने नींव रखी

बीजेपी

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) का इतिहास और उसकी महत्वपूर्ण भूमिका भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के इतिहास के साथ जुड़ा हुआ है।

श्यामा प्रसाद मुखर्जी जो नेहरू जी के मंत्रिमंडल में काम किए और फिर जनसंघ की स्थापना की, जो बाद में बीजेपी बनी। उनका दीपक चुनावी चिह्न था और उनकी जोड़ी दीनदयाल उपाध्याय के साथ पार्टी की बुनियाद रखी। बाद में, अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी ने पार्टी को विस्तार दिया और आज नरेंद्र मोदी और अमित शाह के नेतृत्व में भाजपा का मजबूत स्तंभ बना हुआ है।

भारतीय जनसंघ के नेता ने हमेशा कश्मीर की एकता, गोरक्षा, जमींदारी व्यवस्था, और परमिट-लाइसेंस-कोटा राज के खिलाफ बोलते रहे। लेकिन 1952 में हुए देश के पहले आम चुनाव में पार्टी को मात्र 3 सीटें ही मिली।

‘अटल और आडवाणी’ ने बदली बीजेपी की तस्वीर

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इसके बाद, जनता पार्टी के संघ के नेताओं ने नए राजनीतिक दल की आवश्यकता को महसूस किया। उन्होंने नई पार्टी की स्थापना के लिए योजना बनाई और 6 अप्रैल 1980 को मुंबई में एक नई राजनीतिक पार्टी की शुरुआत की। इस पार्टी का नाम रखा गया ‘भारतीय जनता पार्टी’। यह दिन भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसी दिन सन् 1930 में महात्मा गांधी ने डांडी यात्रा के बाद नमक के विरोध में नमक कानून को तोड़ा था। उस समय, ‘अटल’ और ‘आडवाणी’ भारतीय जनता में दो महत्वपूर्ण नेताओं के रूप में उभरे।

साल 1984 में देश ने एक अपूर्व और दुखद घटना का सामना किया, जब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की मृत्यु हुई। उसी साल, देश में आम चुनाव हुए, लेकिन बीजेपी को सिर्फ 2 सीटें ही मिलीं। इस दुखद घटना के बाद, साल 1986 में लालकृष्ण आडवाणी को पार्टी के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया।

उन्होंने अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण को लेकर राम जन्मभूमि आंदोलन की ध्वनि ऊंची की। पार्टी में एक ओर, लालकृष्ण आडवाणी जैसे हिंदू राष्ट्रवादी नेता मौजूद थे, जो हिंदू धर्म के प्रति काफी उत्सुक थे। वहीं, अटल बिहारी वाजपेयी गांधीवादी समाजवाद पर विश्वास रखते थे और उन्हें नरम मिजाज के रूप में जाना जाता था।

पार्टी ने उस समय एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया और अटल बिहारी वाजपेयी की जगह लाल कृष्ण आडवाणी को पार्टी के अध्यक्ष का पद सौंप दिया। 1980 से लेकर अगले 6 साल तक रहे वाजपेयी की जगह तेज-तर्रार और राम मंदिर के मुद्दे पर स्पष्ट रूप से बोलने वाले आडवाणी को पार्टी अध्यक्ष बनाने का फैसला पार्टी के लिए सही साबित हुआ। साल 1989 में भाजपा ने 85 सीटों पर विजय प्राप्त की।

देश में खिलने लगा ‘कमल’

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इसके बाद बीजेपी ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। साल 1991 के लोकसभा चुनाव में पार्टी ने 120 सीटों पर जीत हासिल की, फिर साल 1996 में यह आंकड़ा 161 तक पहुंचा। इस बार भी बीजेपी के पास सरकार बनाने के लिए पर्याप्त बहुमत नहीं था। हालांकि, सहयोगियों के समर्थन पर भरोसा करते हुए अटल बिहारी वाजपेयी को देश का प्रधानमंत्री बनाया गया, लेकिन दूसरी पार्टियों से समर्थन न मिलने की वजह से उनकी सरकार महज 13 दिन तक ही चली।

इसके अलावा, 1998 में भाजपा ने लोकसभा चुनाव में 182 सीटों पर जीत हासिल की। एक बार फिर राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी की गठबंधन सरकार में अटल बिहारी वाजपेयी को प्रधानमंत्री बनाया गया। यह सरकार 13 महीनों तक चली। इसके बाद साल 1999 में हुए चुनाव में भाजपा को 182 सीटें हासिल हुई।

दस साल तक विपक्ष की भूमिका निभाई

21वीं सदी की शुरुआत में हुए पहले लोकसभा चुनाव, यानी 2004 के चुनाव में, कांग्रेस की जीत ने बीजेपी के ‘इंडिया शाइनिंग और फील गुड’ के नारे को बेअसर साबित किया। न केवल 2004 में, बल्कि 2009 के चुनाव में भी बीजेपी को विपक्ष की जिम्मेदारी ही निभानी पड़ी।

‘मोदी-शाह’ की जोड़ी ने किया कमाल

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उस समय, गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का ‘गुजरात मॉडल’ देशभर में धूम मचा रहा था। गुजरात की राजनीति से बाहर निकलकर, वह केंद्र की राजनीति में कदम रखे। साल 2014 में बीजेपी ने उनका चेहरा लेकर चुनाव लड़ा।

मोदी ने ‘अच्छे दिन’ का संकल्प लेकर देशवासियों को भ्रष्टाचार मुक्त शासन का भरोसा दिया। उनके दृष्टिकोण ने जनता को प्रेरित किया और भाजपा को वोट देने के लिए मजबूर किया।

282 सीटों के साथ, पहली बार बीजेपी ने स्वयं के बल पर केंद्र में सरकार बनाने के लिए तैयारी की। इस जीत के पीछे गुजरात के तत्कालीन गृह मंत्री अमित शाह की रणनीति भी महत्वपूर्ण थी। अगले पांच सालों में, बीजेपी ने अपनी शक्ति को बढ़ाते हुए ताकतवर रूप में उभरी। 2019 के लोकसभा चुनाव में, पार्टी ने 303 सीटें हासिल करके कामयाब हुई।

 

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