राहुल गांधी को 2 साल की सजा मिलने के बाद जिस रफ्तार से उनकी सदस्यता गई थी। आरोप पर रोक के बाद उसी रफ्तार से उनकी सदस्यता बहाल कर दी गई है। सोमवार को वो संसद पहुंचे और मंगलवार को मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पर भाषण भी देगा

राहुल की सजा पर बीजेपी से क्या हुई बड़ी चूक ?

राहुल गांधी को मार्च में सूरत की लोअर कोर्ट ने 2 साल की सजा सुनाई। गुजरात हाईकोर्ट ने भी इसे बरकरार रखा। इस पर भाजपा ने कहा- ये फैसला उचित और स्वागत योग्य है। बीजेपी ने यह प्रचारित किया कि उनकी पार्टी के एक नेता ने याचिका दायर की। इससे मामले ने राजनीतिक रंग ले लिया।

इस पर कई पॉलिटिकल पंडित सुप्रीम कोर्ट का फैसला राहुल गांधी के लिए नैतिक तौर पर बड़ी जीत है। भाजपा ने इस कानूनी मामले को राजनीतिक रंग देकर भूल कर दी। भारतीय जनता पार्टी सिर्फ इतना कहती कि यह कानूनी दांवपेच है। भाजपा ने राजनीतिक श्रेय लेने की कोशिश की। पॉलिटिकल जानकार के मुताबिक जब आप राजनीतिक श्रेय लेते हैं तो दांव उल्टा पड़ने पर इसका खामियाजा भी अक्सर भुगतना पड़ता है।

राहुल की सदस्यता बहाली से कांग्रेस को क्या फायदा होगा?

अभी तक बीजेपी के खिलाफ सिर्फ मणिपुर हिंसा बड़ा मामला था। अविश्वास प्रस्ताव को भी पीएम मोदी अपने भाषण से निशाना साध सकते थे, लेकिन अब उन्हें राहुल गांधी को सुनना पड़ेगा और पूरा देश भी सुनेगा। राहुल गांधी विपक्ष के पहले नेता थे जो सबसे पहले मणिपुर गए थे। इसके अलावा वो अडाणी जैसे मुद्दे दोबारा उठा सकते हैं। ये बात भाजपा को परेशान करने वाली साबित होगी।

राजनीतकार कहते हैं कि गांधी जी का एक बड़ा ही मशहूर कथन है कि कभी-कभी हम अपने विरोधियों की वजह से ही आगे बढ़ते हैं। BJP और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राहुल गांधी का जिस तरीके से हर स्तर पर विरोध किया और चारो तरफ़ घेरा, इससे राहुल गांधी की इमेज बहुत मजबूत हुई है। भारत जोड़ो यात्रा के बाद वह राष्ट्रीय स्तर पर बड़े नेता के तौर पर उभर कर आए हैं।

वहीं मणिपुर में बदहाल स्थिति ओर नूंह में हिंसा के बाद राहुल के मोहब्बत की दुकान जैसे नैरेटिव को पुश मिला है। राजनीति गुरू कहते हैं कि विपक्ष को भी इसी तरह के मुद्दे का इंतजार था।

 

राहुल गांधी के माफी न मांगने की रणनीति कितनी कारगर साबित हुई?

मोदी सरनेम मामले में दोषी पाए जाने के बावजूद राहुल गांधी ने माफी मांगने से इनकार कर दिया। पहले सूरत कोर्ट फिर गुजरात हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामे में भी राहुल गांधी ने कहा कि वो माफी नहीं मांगेंगे।

राजनीतिकार कहते हैं कि माफी नहीं मांगने की रणनीति से राहुल की इमेज को फायदा पहुंचेगा। राहुल अभी आरोप मुक्त नहीं हुए हैं, लेकिन अब इतनी कड़ी सजा नहीं होगी। राहुल की यही दृढ़ता या अड़ियलपन ही उनकी मजबूती है। यानी वो कम्प्रोमाइज नहीं करते हैं। वहीं दूसरे दल इस तरह का कम्प्रोमाइज करते रहे हैं। चाहे नीतीश कुमार हों, ममता बनर्जी, आम आदमी पार्टी, वाईएसआर कांग्रेस या बीजद।

राजनीति में लोग एक अल्टरनेटिव की बात करते हैं। नरेंद्र मोदी को भी 2014 में इसी का फायदा मिला। वो UPA सरकार में मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी के एकदम विपरीत बातें करते रहे और डटकर खड़े रहे। इसी तरह जो भी मोदी का एकदम विपक्षी होगा यानी उनके अंदाज से एकदम उल्टा होगा, वोटर उसके प्रति ही आकर्षित होंगे न कि मोदी के जैसा होने पर।

कुछ वरिष्ठ पत्रकार कहते हैं कि अगर कोई माफी मांगता है तो इसका साफ मतलब है कि उसने गलती की है। राहुल अगर माफी मांगते तो इससे जनता के बीच उनकी स्वीकार्यता कम हो जाती। ऐसे में माफी नहीं मांगकर राहुल ने अपनी मजबूत छवि पेश की। उन्होंने ये दिखाया कि वो डर कर पीछे हटने वाले नेताओं में नहीं हैं। चाहे संसद से बाहर कर दिया जाए, या चुनाव लड़ने से रोक दिया जाए, लेकिन माफी नहीं मांगेंगे। इस तरह जनता के बीच उन्होंने एक स्ट्रॉन्ग लीडर की इमेज पेश करने की कोशिश की है।

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