कभी देश सेवा का सपना लिए राजनीति में आने वाले नेता आज सत्ता, पैसा और पावर की होड़ में दौड़ते नज़र आते हैं। भारत की राजनीति अब वैसी नहीं रही जैसी आज़ादी के बाद के दशकों में थी। जहां एक वक्त विचारधाराएं, सिद्धांत और जनसेवा केंद्र में हुआ करते थे, वहीं अब जाति, धर्म, ध्रुवीकरण, सोशल मीडिया ट्रेंड और प्रचार यानी दिखावे की राजनीति ने इसकी जगह ले ली है।

राजनीति का बदलता चेहरा – क्यों और कैसे?

1. लोकतंत्र से “लाइक्स” की लड़ाई तक
आज राजनीति में सोशल मीडिया का बोलबाला है। फेसबुक, X (ट्विटर), इंस्टाग्राम और यूट्यूब जैसे प्लेटफॉर्म नेताओं के नए हथियार बन चुके हैं। नेता अब लोगों के घर से ज्यादा उनके मोबाइल स्क्रीन पर नज़र आते हैं। लेकिन सवाल अब ये है कि क्या इससे असली समस्याएं हल हो रही हैं?

ताज़ा उदाहरण: हाल ही में कई राज्यों में चुनावों के दौरान देखा गया कि मुद्दे जैसे बेरोजगारी, महंगाई को छोड़कर नेताओं की बातें हिंदू-मुस्लिम, मंदिर-मस्जिद और बायकॉट के इर्द-गिर्द ही घूमती रहीं।

2. विचारधारा नहीं, अब चेहरा बिकता है

पहले कांग्रेस की समाजवाद, भाजपा की राष्ट्रवाद और वामपंथ की सर्वहारा नीति थी। लेकिन आज कोई भी नेता पाला बदल सकता है। एक दिन कांग्रेस, दूसरे दिन बीजेपी – विचारधारा अब “फॉलोअर्स” और सत्ता की कुर्सी के हिसाब से विचारधारा बदल जाती है।

राजनीति
नेता प्रतिपक्ष लोक सभा राहुल गांधी और पीएम नरेंद्र मोदी

3. जनता की भावनाओं से खेल

राजनीति अब दिल से नहीं, दिमाग से और रणनीति से खेली जाती है। लोगों की भावनाएं भड़काना, डर फैलाना, गुस्सा जगाना – ये सब अब वोट बटोरने के बड़ा हथियार बन चुके हैं।

उदाहरण: 2024 लोकसभा चुनाव में कई नेताओं ने पाकिस्तान, धर्मांतरण, लव-जिहाद जैसे मुद्दों पर बयान दिए, लेकिन किसानों की आय, MSP या महिला सुरक्षा जैसे मुद्दे बिल्कुल पीछे रह गए या गायब ही हो गए।

इमोशनल पहलू – जनता का दर्द कौन समझे?

जब कोई गरीब अपने बच्चों को अच्छे स्कूल में नहीं पढ़ा पाता, जब बेरोजगार युवा सालों तैयारी कर भी नौकरी नहीं पा पाता, जब एक वृद्ध मां अस्पताल में इलाज के लिए तड़पती है, तब वो धर्म, जाति या पार्टी नहीं देखती, वो सिर्फ इंसानियत और न्याय देखती है। लेकिन अफसोस! आज की राजनीति में ये सब चीजें गायब हैं।

किसानों की आत्महत्या की खबरें अब सुर्खियां नहीं बनतीं, दलितों पर अत्याचार पर नेता खामोश रहते हैं, और आदिवासी इलाकों में सड़क या पानी की मांग पर कोई चुनावी वादा नहीं किया जाता। क्योंकि इन मुद्दों से वोट बैंक नहीं बनता।

तथ्य बोलते हैं –

भारत में 2024 तक 3,000 से ज्यादा नेता पाला बदल चुके हैं। (ADR रिपोर्ट)

NCRB 2023 के मुताबिक, हर दिन औसतन 28 किसान आत्महत्या करते हैं।

CMIE के आंकड़े बताते हैं कि जुलाई 2025 में भारत की बेरोजगारी दर 8.1% थी – जो युवाओं में और भी ज्यादा है।

अब वक्त है राजनीति को बदलने का

भारत की राजनीति ने दिशा बदल ली है – विचारों से विघटन की ओर, मुद्दों से मजहब की ओर, सेवा से सेल्फी तक। लेकिन दोष सिर्फ नेताओं का नहीं है। हम जनता भी कहीं न कहीं इसमें भागीदार हैं। अगर हम जाति-धर्म छोड़कर नौकरी, शिक्षा, स्वास्थ्य और विकास के नाम पर वोट देंगे – तभी राजनीति की दिशा बदलेगी।

क्योंकि आखिर में लोकतंत्र जनता से है, जनता के लिए है – और जनता के द्वारा ही बदल सकता है।

एक आम भारतीय जो अब भी लोकतंत्र में उम्मीद देखता है।

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