बिहार की राजनीति में एक सवाल अब आम जनता के ज़ुबान पर है – अगर 20 साल से नीतीश कुमार सत्ता में हैं, तो अब भी लालू यादव को कोसना क्यों?

ये सवाल कोई विपक्षी पार्टी नहीं, बल्कि वो आम जनता पूछ रही है, जो हर चुनाव में उम्मीद लेकर वोट करती है। नीतीश कुमार 2005 से अब तक लगभग 20 साल से बिहार की सत्ता के केंद्र में रहे हैं। बीच में थोड़ा सा सत्ता में बदलाव हुआ, लेकिन चेहरे वही रहे – नीतीश कुमार। और अब जब जनता रोज़ाना बेरोज़गारी, पलायन, शिक्षा और स्वास्थ्य की बदहाली से जूझ रही है, तो जवाबदेही से भागना आखिर कब तक?

तथ्यों की ज़ुबानी सत्ता की कहानी

1. शिक्षा की हालत:

2024 की NSSO रिपोर्ट के मुताबिक बिहार में 16 से 25 साल के युवाओं में 41% बेरोजगारी की मार झेल रहे है।

स्कूलों में शिक्षक नहीं, कॉलेजों में क्लास नहीं, और BPSC की परीक्षाएं वर्षों तक अटकी रहती हैं।

पटना विश्वविद्यालय की रैंकिंग NIRF में 100 से भी बाहर है।

2. बिहार में स्वास्थ्य व्यवस्था:

बिहार में प्रति 10,000 आबादी पर सिर्फ 6 डॉक्टर हैं, जबकि WHO का मानक है 1 डॉक्टर प्रति 1,000।

AIIMS पटना जैसे संस्थान को छोड़ दें तो जिलों में सरकारी अस्पतालों की हालत खस्ताहाल है।

3. कानून व्यवस्था:

2023 NCRB डेटा के अनुसार बिहार देश के टॉप 5 राज्यों में आता है महिला अपराध, हत्या और अपहरण के मामलों में।

पटना, मुजफ्फरपुर, दरभंगा जैसे शहरों में दिनदहाड़े अपराध आम बात हो चुकी है।

महिलाओं के साथ दिन दहाड़े छेड़खानी और और बढ़ता अपराध।

जन्म प्रमाण पत्र से लेकर मृत्यु प्रमाण पत्र बनवाने के लिए रिश्वत और बढ़ता भ्रष्टाचार।

4. पलायन और रोजगार:

बिहार का लगभग 40% युवा उत्तर प्रदेश, दिल्ली, पंजाब और महाराष्ट्र में मज़दूरी करने को मजबूर है।

किसी भी जिले में कोई बड़ा इंडस्ट्री नहीं, IT सेक्टर की कोई पहचान नहीं।

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तो फिर दोष किसका?

हर बार जब सरकार से जवाब मांगा जाता है, तो कहा जाता है – “लालू यादव के 15 साल का जंगलराज याद है?”

सवाल ये है कि आपको सत्ता में आए 20 साल हो गए, आप भी कई बार केंद्र में मोदी सरकार के साथ रहे, फिर भी अगर हर समस्या के लिए पिछली सरकार को दोष देंगे तो आपकी उपलब्धियां क्या हैं?

कभी लालू पर भ्रष्टाचार का तंज, कभी कांग्रेस को कोसना, और कभी जाति समीकरण की बात – क्या बिहार की जनता को अब भी बहलाना इतना आसान है?

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पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव

इमोशनल पहलू – जनता की आवाज़

“हमारा बेटा इंजीनियर बन के दिल्ली चला गया, गांव में कोई कंपनी ही नहीं आई…”
एक पिता, मधेपुरा से

नीतीश बाबू से उम्मीद थी कि लड़कियों की पढ़ाई के लिए कॉलेज खुलवाएंगे, लेकिन अब भी 15 किलोमीटर दूर जाना पड़ता है।
एक छात्रा, सीतामढ़ी से

15 साल लालू का जंगलराज था, पर अब तो 20 साल से आप हैं, फिर क्यों हम रोज़ डर के साये में जीते हैं?
एक दुकानदार, आरा से

जनता अब पूछ रही है:

20 साल में क्या कोई नया IIM, IIT या AIIMS खुला?

कितने युवाओं को सरकारी नौकरी मिली?

कितने उद्योग लगे?

कितने मेडिकल कॉलेज चालू हुए?

कितनी महिलाएं आज सुरक्षित महसूस करती हैं?

अगर इन सवालों के जवाब में सिर्फ लालू यादव का नाम आता है, तो इसका मतलब है कि आप ने 20 साल में कुछ नहीं किया, सिर्फ दूसरों की गलतियों का बहाना ढूंढा।

राजनीति में पुरानी सरकारों की आलोचना करना गलत नहीं है, लेकिन अगर आप 20 साल तक सत्ता में रहकर भी खुद को बेचारा और विपक्ष को जिम्मेदार ठहराएं, तो जनता मूर्ख नहीं है।

अब समय आ गया है कि बिहार की सरकार काम गिनवाए, बहाने नहीं।

लालू यादव के 15 साल और नीतीश कुमार के 20 साल – दोनों को जनता ने देखा है। अब जनता तीसरे विकल्प की तलाश में है, जो विकास की बात करे, जवाबदेही से न भागे।

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