बिहार, जो कभी प्राचीन शिक्षा, संस्कृति और समृद्धि का केंद्र हुआ करता था, आज यह बिहार बेरोजगारी और पलायन की त्रासदी से जूझ रहा है। यहाँ के लोग मेहनती, ईमानदार और संघर्षशील हैं, लेकिन हालात ऐसे बन गए हैं कि लाखों युवाओं को अपना घर, गाँव और अपनों को छोड़कर दूसरे राज्यों में काम की तलाश में भटकना पड़ता है। यह केवल एक आर्थिक समस्या नहीं है, बल्कि सामाजिक और भावनात्मक रूप से भी एक गहरी चोट है, जिससे हर बिहारी का दिल छलनी हो जाता है।

बेरोजगारी की जड़ें: विकास की धीमी रफ्तार

बिहार में बेरोजगारी की समस्या कोई नई नहीं है, बल्कि यह दशकों से बनी हुई है। यहाँ कृषि पर निर्भरता अधिक है, लेकिन आधुनिक कृषि तकनीक और संसाधनों की कमी के कारण खेती एक असुरक्षित पेशा बन चुका है। उद्योग-धंधों की कमी, सरकारी नौकरियों की सीमित संख्या, और निजी क्षेत्र के विकास में धीमापन बेरोजगारी को और बढ़ा रहे हैं।

शिक्षा के क्षेत्र में बिहार ने हाल के वर्षों में खूब तरक्की की है, लेकिन गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और व्यावसायिक प्रशिक्षण की कमी के कारण यहाँ के युवा शिक्षित होने के बावजूद भी बेरोजगार रह जाते हैं। जो सरकारी नौकरियाँ निकलती भी हैं, उनमें भी भ्रष्टाचार और राजनीति इतनी हावी हो चुकी है कि योग्य उम्मीदवारों को अवसर ही नहीं मिल पाता।

पलायन: मजबूरी या विकल्प?

बिहार के गाँवों में जब कोई लड़का बड़ा होता है, तो उसकी आँखों में अपने परिवार के लिए कुछ अच्छा करने का सपना होता है। लेकिन जैसे-जैसे वह बड़ा होता है, उसे यह एहसास होने लगता है कि बिहार में रोजगार के अवसर सीमित हैं। फिर क्या? मजबूरी में उसे दिल्ली, पंजाब, मुंबई, बेंगलुरु या अन्य राज्यों की ओर रुख करना पड़ता है।

बिहार

ट्रेन की खिड़की से जब वह अपने गाँव को पीछे छूटते हुए देखता है, तो उसकी आँखें नम हो जाती हैं। माँ के आँसू, पिता की चुप्पी, बहन की मायूसी और दोस्तों की बिदाई—यह सब दिल को झकझोर देने वाला होता है। वह शहरों में मजदूरी करता है, कारखानों में खटता है, होटल में बर्तन धोता है, रिक्शा चलाता है, लेकिन हर रात उसे अपने गाँव की याद सताती है।

पलायन के दुष्प्रभाव: टूटते परिवार और सूने गाँव
बिहार के हजारों गाँवों की कहानी एक जैसी है—जहाँ पहले बच्चों की किलकारियाँ गूंजती थीं, वहाँ अब बुजुर्गों की खाँसी और महिलाओं की उदासी दिखाई देती है। जब घर का कमाने वाला सदस्य ही बाहर चला जाता है, तो परिवार बिखर जाता है।

बुजुर्ग माता-पिता अकेले रह जाते हैं, जिनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं होता। बच्चों की पढ़ाई प्रभावित होती है, क्योंकि पिता की अनुपस्थिति का असर उनके मानसिक और आर्थिक विकास पर पड़ता है। गाँवों में विकास ठप हो जाता है, क्योंकि युवा वर्ग बाहर चला जाता है और उनकी कमाई का एक हिस्सा ही गाँव तक पहुँच पाता है।

बिहार में समाधान क्या हो सकता है?

बेरोजगारी और पलायन की समस्या का समाधान तभी संभव है जब सरकार, समाज और उद्योग जगत मिलकर ठोस कदम उठाएँ। कुछ महत्वपूर्ण सुझाव इस प्रकार हैं:

उद्योगों की स्थापना: बिहार में औद्योगिक विकास की भारी जरूरत है। अगर स्थानीय स्तर पर ही उद्योग-धंधे लगेंगे, तो रोजगार के अवसर बढ़ेंगे और लोगों को बाहर नहीं जाना पड़ेगा।

कृषि का आधुनिकीकरण: बिहार की अर्थव्यवस्था का आधार कृषि है। अगर किसानों को बेहतर तकनीक, बाजार और सरकारी सहायता मिले, तो कृषि एक आकर्षक व्यवसाय बन सकता है।

शिक्षा और कौशल विकास: केवल डिग्री लेने से कुछ नहीं होगा। अगर युवाओं को व्यावसायिक प्रशिक्षण और आधुनिक तकनीकी शिक्षा दी जाए, तो वे स्वरोजगार की ओर बढ़ सकते हैं।

स्टार्टअप और स्वरोजगार को बढ़ावा: सरकार को बिहार में स्टार्टअप्स और छोटे व्यवसायों को बढ़ावा देने के लिए विशेष योजनाएँ शुरू करनी चाहिए वो भी बिना पैरवी का।

सरकारी नौकरियों में पारदर्शिता: यदि सरकारी भर्तियों में भ्रष्टाचार और पेपर लीक खत्म हो और योग्यता के आधार पर रोजगार मिले, तो बेरोजगारी काफी हद तक कम हो सकती है।

बिहार
बिहार सीएम नीतीश कुमार और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी

निष्कर्ष: एक उम्मीद की किरण

बिहार के युवाओं में प्रतिभा की कोई कमी नहीं है, लेकिन सही अवसरों की जरूरत है। अगर सरकार, समाज और स्वयं युवा मिलकर बदलाव की कोशिश करें, तो वह दिन दूर नहीं जब बिहार फिर से आत्मनिर्भर बनेगा, और यहाँ के लोगों को रोजी-रोटी के लिए अपने घर से दूर नहीं जाना पड़ेगा।

हर बिहारी का सपना है कि उसके गाँव की मिट्टी में खुशबू बनी रहे, उसके खेतों में हरियाली रहे, और उसके अपनों के चेहरे पर मुस्कान बनी रहे। यह सपना तभी साकार होगा, जब हम सब मिलकर इस दिशा में काम करेंगे। बिहार को अब फिर से खड़ा होना होगा—अपने गौरवशाली अतीत की ओर लौटने के लिए, और एक उज्जवल भविष्य बनाने के लिए!

बिहार

देश दुनिया की खबरों की अपडेट के लिए AVN News पर बने रहिए।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *