Inaction of Parliament: भारत का संसद, लोकतंत्र का सबसे बड़ा मंच है जहां देश की जनता के मुद्दों पर चर्चा होती है और नीतियों को आकार दिया जाता है। लेकिन जब संसद के दोनों सदनों में कामकाज बाधित होता है, तो इसका सीधा असर देश की जनता और उनके पैसे पर पड़ता है।
संसद में गतिरोध: समस्या और कारण
संसद के सत्रों में बाधा आमतौर पर विपक्ष और सरकार के बीच आपसी सहमति की कमी या किसी विवादित मुद्दे पर सरकार की अनदेखी के कारण होती है। हाल के वर्षों में हमने देखा है कि राजनीतिक दल अपनी मांगों को लेकर संसद के काम को ठप कर देते हैं। इस मौजूदा समय में सरकार विपक्ष को कुछ भी तरजीह नहीं दे रही है। वह मनमाने ढंग से काम कर रही है। विपक्ष के नेताओं को बोलने नहीं दिया जाता।
भारत में विपक्ष की भूमिका
विपक्ष महत्वपूर्ण मुद्दों को उठाने की कोशिश करता है, लेकिन सरकार द्वारा उन पर चर्चा से बचने के कारण संसद ठप हो जाती है। विपक्ष अभी अदानी का मुद्दा जोर सौर से उठा रही है मगर मौजूदा सरकार अदानी के मामले में सरकार कुछ नहीं बोलती उल्टा वह विपक्ष के नेताओं को देश द्रोही जैसे शब्द बोल दिया जाता है।
सरकार की मनमानी: केंद्र सरकार कई बार अपनी नीतियों को बिना चर्चा और पारदर्शिता के लागू करने की कोशिश करती है, जो लोकतांत्रिक मूल्यों के बिलकुल खिलाफ है।
भारत में जनता के पैसे का नुकसान
भारत में संसद का एक मिनट चलने का औसत खर्च लाखों रुपये में होता है। यदि संसद कार्य नहीं करती, तो इसका सीधा मतलब यह है कि जनता के करों का पैसा बर्बाद हो रहा है।
संसदीय सत्र की लागत: संसद के हर सत्र के आयोजन पर करोड़ों रुपये खर्च होते हैं। जब काम नहीं होता, तो यह धन पूरी तरह से बर्बाद हो जाता है।
आर्थिक फैसलों में देरी: संसद के ठप होने से कई महत्वपूर्ण विधेयक और नीतिगत फैसलों पर चर्चा नहीं हो पाती, जिससे आर्थिक नुकसान होता है।
भारत सरकार की मनमानी और लोकतंत्र पर खतरा
जब भारत सरकार विपक्ष की बातों को सुनने से इनकार करती है और बिना चर्चा के विधेयकों को पारित करती है, तो यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया का सर्रा सर उल्लंघन है।
बिना चर्चा के कानून पारित करना: हाल के वर्षों में सरकार ने कई कानून बिना गहन चर्चा के ही पास किए, जिससे जनता के बीच असंतोष काफी बढ़ा है।
भारत में लोकतंत्र की अनदेखी: संसद की कार्यवाही को बाधित करके सरकार जनता की आवाज को दबाने की कोशिश करती है। इससे जनता में काफी निराशा होती है और जनता सोचती है कि हमारे नेता जिनको चुन कर हमने संसद में भेजा ओर नेता के आचरण से भी जनता दुखी होती है।
समाधान: संवाद और पारदर्शिता की जरूरत
सरकार और विपक्ष के बीच संवाद: दोनों ही पक्षों को बातचीत के जरिए समस्याओं का हल निकालना चाहिए ताकि संसद का काम सुचारू रूप से चले।
जनता की भागीदारी बढ़ाना: संसद में जनता के प्रतिनिधियों को अपने मुद्दों को प्रमुखता से उठाने का अवसर दिया जाना चाहिए। ओर जनता के प्रतिनिधियों को भी यह सोचना चाहिए कि जनता ने उसे चुन कर उम्मीदों के साथ भेजा है।
संसदीय सुधार:
संसद के समय और संसाधनों का बेहतर उपयोग सुनिश्चित करने के लिए ठोस सुधारों की जरूरत है।
इसका निष्कर्ष
संसद का ठप होना केवल एक राजनीतिक मुद्दा नहीं है, यह देश के हर नागरिक से जुड़ा हुआ है। संसद के कामकाज में बाधा से देश की जनता का नुकसान होता है और लोकतंत्र कमजोर होता है। इसलिए यह आवश्यक है कि सरकार और विपक्ष मिलकर संसद को उसके उद्देश्य को पूरा करने दें। जनता के पैसे का सही इस्तेमाल और लोकतंत्र को मजबूत बनाए रखना सभी की जिम्मेदारी है।